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वीडियो एडिटर- पूर्णेन्दु प्रीतम
43 शहर. 1 लाख 86 हजार ट्रांजैक्शन. 2 लाख टन अनाज. और एक राज्य. राशन घोटाले के इस धमाके ने पूरे उत्तर प्रदेश को हिला कर रख दिया है. इस ऑपरेशन को जिस तरह से अंजाम दिया गया वो और भी हैरान करने वाला है. ताज्जुब होता है ये सोचकर कि जिस आधार की दुहाई पूरा सरकारी अमला देते नहीं थकता, उसी आधार को ‘आधार’ बनाकर 2 लाख टन अनाज, सिस्टम से गायब कर दिया गया और उसका पैसा हजम कर लिया गया.
राशन की कई दुकानों के साथ खाद्य और रसद विभाग के कंप्यूटर ऑपरेटरों के खिलाफ केस दर्ज किया गया है. ये घोटाला सिर्फ एक या दो शहरों तक सीमित नहीं है. नोएडा, गाजियाबाद, लखनऊ, इलाहाबाद, मुजफ्फरनगर, आगरा, मेरठ जैसे तमाम शहरों में ये जाल फैला हुआ था.
सरकारी अफसरों पर आरोप
इस कंप्यूटर ऑपरेटर ने सिलसिलेवार ढंग से क्विंट को पर्दे के पीछे की कहानी बताई:
खेल छोटी सी दिखने वाली लेकिन बड़े काम की ePOS (इलेक्ट्रोनिक पॉइंट ऑफ सेल) मशीन से होता था. इन्हीं मशीनों के जरिए घोटाले को अंजाम दिया जाता था. जबकि ये मशीनें राशन दुकानों से अनाज की कालाबाजारी रोकने के लिए ही लगाई गई थीं.
1. कुछ प्राइवेट कंप्यूटर ऑपरेटरों को सूबे के कई शहरों में तैनात किया गया. जिसके बाद उन्हें राशन के असल हकदारों के ऑनलाइन डेटाबेस की पहुंच दे दी गई.
2. ऊपर से निर्देश मिलने पर कंप्यूटर ऑपरेटर, असल हकदार के आधार नंबर को खुद के आधार नंबर से बदल देता था. लेकिन, हकदार का नाम नहीं बदला जाता था.
3. इसके बाद वो ePOS मशीन पर अपना अंगूठा लगाता था. मशीन उसके आधार नंबर की वजह से आसानी से उंगलियों के निशान को मैच कर देती थी.
4. ऑथेंटिकेशन होने पर मशीन से एक रसीद निकलती थी जिस पर नाम कंप्यूटर ऑपरेटर का नहीं बल्कि असल हकदार का ही होता था.
क्यों? क्योंकि डेटाबेस में कंप्यूटर ऑपरेटर सिर्फ अपना आधार नंबर डालता था ये भली-भांति जानते हुए कि ePOS मशीन से जो रसीद निकलती है उस पर आधार नंबर नहीं बल्कि सिर्फ नाम होता है.
5. जैसे ही ये फर्जी ट्रांजैक्शन पूरा होता, ऑपरेटर डेटाबेस में एंट्री करता, अपना आधार नंबर हटाता और वापस असल हकदार का नंबर डाल देता.
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