Home Created by potrace 1.16, written by Peter Selinger 2001-2019Videos Created by potrace 1.16, written by Peter Selinger 2001-2019रुचिर शर्मा Exclusive: आर्थिक तरक्की के लिए 'तानाशाही' जरूरी है?

रुचिर शर्मा Exclusive: आर्थिक तरक्की के लिए 'तानाशाही' जरूरी है?

क्विंट के एडिटोरियल डायरेक्टर संजय पुगलिया की रुचिर शर्मा से खास बातचीत

क्विंट हिंदी
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क्विंट के एडिटोरियल डायरेक्टर संजय पुगलिया की रुचिर शर्मा से खास बातचीत
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क्विंट के एडिटोरियल डायरेक्टर संजय पुगलिया की रुचिर शर्मा से खास बातचीत
(फोटो- क्विंट हिंदी)

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कोरोना वायरस संकट के बाद पूरी दुनिया की इकनॉमी को झटका लगा है. भारत की इकनॉमी की हालत भी खस्ता हो गई है. ऐसे में अब कोरोना संकट के माहौल में इकनॉमिक रिकवरी का रास्ता क्या हो? किसी देश के लिए इकनॉमिक पावर बनने का रास्ता क्या हो? और इस सब में लोकतंत्र की क्या भूमिका हो? इन तमाम सवालों को फोकस में रखते हुए मॉर्गन स्टेनली इन्वेस्टमेंट मैनेजमेंट के चीफ स्ट्रैटजिस्ट रुचिर शर्मा ने नई किताब लिखी है जिसका नाम है- '10 रूल्स ऑफ सक्सेसफुल नेशंस'.

क्विंट के एडिटोरियल डायरेक्टर संजय पुगलिया ने लेखक और निवेशक रुचिर शर्मा से इकनॉमी और लोकतंत्र के कई मुद्दों पर दिलचस्प बातचीत की है.

भारत की तरक्की का फॉर्मूला क्या है?

भारत में कोई भी सरकार आए लेकिन सरकारों का फंडामेंटल डीएनए समाजवाद या फिर यथास्थितिवाद की तरफ रहता है. अगर कैपिटलिज्म के नजरिए से देखें तो कुछ सरकारों ने कदम उठाए है लेकिन वो क्रोनी कैपिटलिज्म रहा है. ऐसी बहुत कम सरकारें होती हैं जो पूरी तरह से पूंजीवाद में यकीन रखती हैं. पूंजीवाद का असल मतलब ये है कि प्राइवेट सेक्टर को ज्यादा से ज्यादा आजादी दी जाए. लेकिन भारतीय कुलीन वर्ग के डीएनए में ही है कि ज्यादा से ज्यादा कंट्रोल किया जाए. हर नेता चाहता है कि सरकारी खर्च को ज्यादा कैसे बढ़ाएं. गरीबों को मदद करने के नाम पर हजारों स्कीम लॉन्च कर चुके हैं, लेकिन 70 साल बाद उसका असर क्या हुआ.

क्या हम सिर्फ संकट में सुधार करते हैं?

हमारे देश में आर्थिक सुधार 1980 में देखने को मिले थे. उस वक्त भारत एक बैलेंस ऑफ पेमेंट की समस्या से जूझ रहा था. हमें कर्ज लेने के लिए IMF के पास जाना पड़ा. इंदिरा गांधी ने थोड़े सुधार किए, फिर 80 के दशक में थोड़े रिफॉर्म देखने को मिले. इसके बाद 1991 में जब बहुत बड़ा संकट आया तो फिर सुधार देखने को मिले. भारत का इतिहास रहा है कि जब भी हम संकट में होते हैं तभी हम सुधार करते हैं. अब लॉकडाउन के बाद इकनॉमी की हालत फिर से खराब हो गई है तो सरकार फिर से रिफॉर्म्स की तरफ ध्यान दे रही है.

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राजनीतिक और आर्थिक फैसलों में तालमेल क्यों नहीं?

अगर हम अमेरिका के चुनावों का इतिहास उठाकर देखें तो इकनॉमिक्स और पॉलिटिक्स में काफी मजबूत संबंध होता है. लेकिन भारत में ये संबंध उतना मजबूत नहीं दिखता है. 1980 के बाद 30 बार राज्यों में 8% से ज्यादा की इकनॉमिक ग्रोथ देखने को मिली. लेकिन इनमें से आधे मौके पर इन राज्यों के मुख्यमंत्रियों ने चुनाव हारा है. ये दुनिया में कहीं नहीं हुआ है. भारत में एक बात और खास होती है कि अगर किसी सरकार के दौरान महंगाई ज्यादा रहती है तो सरकार जाने की संभावना रहती है.

नेताओं के पहले और दूसरे टर्म में क्या फर्क?

शेयर बाजार में सबसे ज्यादा रिटर्न तब आते हैं, जब देश में एक नया नेता चुनकर आता है और वो सुधार करता है. वहीं जब नेता को सत्ता में रहते हुए वक्त हो जाता है तो शेयर बाजार का प्रदर्शन पहले कार्यकाल के मुकाबले काफी कम रहता है. अमेरिका में इसको लेकर कहावतें भी चलती हैं.

अच्छे अरबपति और खराब अरबपति में क्या फर्क?

हमें ये देखना चाहिए कि अगर किसी देश में वेल्थ तैयार हो रही है तो क्या उस देश के लोग उसके पक्ष में हैं या नहीं. रूस जैसे देश में अगर आप काफी अमीर हैं तो आप प्रसिद्ध नहीं होते. वहीं अमेरिका में आप अमीर हैं तो आपको यहां ज्यादा इज्जत मिलती है. टेक्नोलॉजी या मैन्युफैक्चिंग या इजाद से बनाई गई दौलत को काफी इज्जत मिलती है. ऐसे लोग अच्छे अरबपति होते हैं. वहीं अगर किसी के पास सरकार की मदद से दौलत आई है तो वो खराब अरबपति होते हैं.

क्या लोकतंत्रिक व्यवस्था में तेज तरक्की नहीं होती?

भारत में कई लोग ऐसा मानते हैं कि चीन ने इतनी ज्यादा आर्थिक तरक्की हासिल की क्यों कि वो वहां एक अधिकारवादी सरकार है. लेकिन हमें चीन के अलावा बाकी मिडिल ईस्ट, अफ्रीका के कई सारे अधिकारवादी शासन वाले देशों को भी देखना चाहिए. वहां पर इस तरह के देश बर्बाद ही रहे हैं. चीन ने इसलिए विकास किया क्योंकि उनके पास अच्छा नेतृत्व था. लेकिन ऐसा हमेशा नहीं होता. लोकतंत्र में लोगों के पास बदलाव का विकल्प होता है.

भारत में निवेश के मौके क्यों हो रहे कम?

भारत में अच्छी क्वालिटी वाली कंपनियां रही हैं. लेकिन पिछले 3-4 साल में निवेश लायक कंपनियां कम हुईं. भारत में निवेश के विकल्प कम हो रहे हैं. आम निवेशक के लिए भी अच्छे विकल्प कम हो रहे हैं.

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Published: 29 Sep 2020,11:32 PM IST

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