Home Created by potrace 1.16, written by Peter Selinger 2001-2019Videos Created by potrace 1.16, written by Peter Selinger 2001-2019‘हमारे नेता गांधी जी की सुनते हैं, पिटने पर भी रंज नहीं करते’

‘हमारे नेता गांधी जी की सुनते हैं, पिटने पर भी रंज नहीं करते’

मशहूर व्यंग्यकार शरद जोशी की रचना ‘देश गांधी मार्ग पर चल रहा है’, सुनिए संपत सरल की जुबानी

मौसमी सिंह
वीडियो
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<div class="paragraphs"><p>‘हमारे नेता गांधी जी की सुनते हैं, पिटने पर भी रंज नहीं करते’</p></div>
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‘हमारे नेता गांधी जी की सुनते हैं, पिटने पर भी रंज नहीं करते’

(फ़ोटो: अरूप मिश्रा/क्विंट हिंदी)

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वीडियो एडिटर: पुर्णेन्दु प्रीतम

इलस्ट्रेशन: अरूप मिश्रा

एंकर: संपत सरल

सत्य और अहिंसा का मार्ग बताने वाले गांधी जी के ‘गांधी मार्ग’ पर तो सारा देश चल रहा है, लेकिन उनके बताए गए मार्ग पर कितने लोग चल रहे हैं ये सोचने वाली बात है.

‘जादू की सरकार’ में मशहूर व्यंग्यकार शरद जोशी का एक व्यंग्य ‘देश गांधी मार्ग पर चल रहा है’ में उन्होंने देश के नेताओं और गांधी जी के आदर्शों का संबंध बताया है.

‘देश गांधी मार्ग पर चल रहा है’

आजादी के बाद देश के हर नगरपालिका और नगर निगम ने अपने शहर की एक सड़क का नाम ‘महात्मा गांधी मार्ग’ रख दिया है. इससे सुविधा ये हो गई कि शहर के नेता जब अपने भाषण में कहते हैं कि देश महात्मा गांधी मार्ग पर चल रहा है तो वे गलत नहीं कहते, वाकई चल रहा है .आप चाहें तो सारे शहरों के महात्मा गांधी मार्ग की लंबाई जोड़ ये भी बता सकते हैं कि हमारा देश महात्मा गांधी के मार्ग पर रोज कितने किलोमीटर चलता है.

सरकार को करना ये चाहिए की बॉम्बे आगरा रोड और ग्रांड ट्रंक रोड का नाम बदलकर  ‘महात्मा गांधी मार्ग’ रख दे ताकि गर्व से हम संसार को ये बता सकें कि भारत की जनता ही नहीं, हमारे ट्रक और ऑटो तक महात्मा गांधी मार्ग पर चल रहे हैं. एक सज्जन ने मुझसे सीधा सवाल किया, सवाल सीधा नहीं था, पूछने का ढंग सीधा था.

क्या हमारा देश गांधी जी के बताए मार्ग पर चल रहा है?

मैं कोई चुनाव में खड़ा हुआ हूं, जो तुम मुझसे ये प्रश्न पूछ रहे हो?

क्योंकि प्रश्न कर दिया था, इसलिए मैंने चिंतन आरंभ कर दिया. जिस होटल में मैं चाय पीने जाता हूं, उसका मालिक कहीं से राष्ट्रीय विचारधारा का है. उसने होटल के दीवार में गांधी जी के अमर वाक्य फ्रेम में जड़वाकर टांग दिए हैं. मैंने उन वाक्यों को पढ़ा, उन पर विचार किया और आज मैं कह सकता हूं कि आज हमारा देश चल रहा हो या नहीं, मगर खड़ा तो गांधी जी के मार्ग पर है.

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‘एक बार में इकट्ठा खाना शरीर के लिए हानिकर है, वैसे ही एक समय में अधिक काम आत्मा को दुख देता है’
महात्मा गांधी

हमारे देश के सभी नेता इस बात को मानते हैं. वे कभी भी ज्यादा काम कर अपनी आत्मा को दुख नहीं देते. यहां काम से गांधी जी का तात्पर्य परिश्रम से है, वो नहीं जो लोग समझते हैं. हमारे नेता आत्मा को प्रसन्न रखने के लिए चुनाव का मौसम छोड़ कभी परिश्रम नहीं करते और हमारे नेता एक बार में इकट्ठा तो कभी नहीं खाते. चंदा हो, रिश्वत हो, कमीशन हो या सहकारी संस्थाओं में गबन. वो ये काम अत्यंत धीरे-धीरे और प्रेम से करते हैं. वो उन्हें हानि भी नहीं करता और उससे उन्हें कोई कष्ट भी नहीं होता.

‘यदि ईश्वर हमें लालच में डालता है तो उससे बचने का रास्ता भी बताता है’
महात्मा गांधी

हमारे नेता भी इसी कारण लालच में फंस जाते हैं. फंसने के बाद वो ईश्वर से पूछते हैं- हे ईश्वर ! बोल अब क्या करें? उनका ईश्वर भी उनके ही जैसा जवाब देता है, जांच कमीशन बिठाकर उसकी रिपोर्ट गायब कर दे. वे यही करते हैं और बच जाते हैं.

यही तो कुछ बात है कि गांधी जी के मार्ग पर चलने वाले हमारे नेता विरोधियों की परवाह नहीं करते.

‘धीरज रखो, विश्वास रखो और निराशा को मन में कभी स्थान न दो’
महात्मा गांधी

हमारे नेता कभी निराश नहीं होते. विरोधी उनकी कितनी ही पोल खोले, वे कर्मक्षेत्र नहीं छोड़ते. तिकड़म चालू रखते हैं. चुनाव में खड़े हो जाते हैं.

‘जो अनिवार्य है उस पर रंज करना व्यर्थ है’
महात्मा गांधी

हमारे नेताओं को पीट जाने पर भी रंज नहीं होता. वे फिर खड़े हो जाते हैं. अगर वे विधानसभा सदस्य हैं तो मंत्री बनने का प्रयास करते हैं, मंत्री हैं तो मुख्यमंत्री बनने का.

‘रोज अपने आप की जांच करते रहे और सोचते रहे कि अभी कितनी दूरी तय करनी बाकी है’
महात्मा गांधी

हमारे मंत्री रोज सोचते हैं कि अब मुख्यमंत्री बनने में कितनी दूरी बाकी है. आजकल चुनाव चल रहे हैं, नेता यहां से वहां दौड़ रहा है. भाषण कर रहा है. चुनाव के बाद ये सबको भूल जाएंगे. अपने बंगलों में पड़े रहेंगे.

‘कोई समय बोलने और काम करने का होता है तो किसी समय मौन और अकर्मण्यता धारण करनी पड़ती है’
महात्मा गांधी

जैसे ही चुनाव हो जाएंगे, ये लोग अकर्मण्य हो जाएंगे, मौन हो जाएंगे. गांधी जी ने यही कहा था. इस देश में अर्थ का अनर्थ इसी तरह होता है. अनर्थ में अर्थ भी यही निकलते हैं. देश जिधर भी चले, कहा यही जाएगा कि वो गांधी के बताए मार्ग पर चल रहा है.

इस देश के लोगों ने गांधी को देखा है. जिन्होंने नहीं देखा, उन्होंने गांधी पर बनी फिल्म देखी है. लोग इस नतीजे पर पहुंचें कि जो गांधी बना है, वो एक्टर है मगर कम गांधी नहीं है. लोगों ने अगले चुनाव में एक्टरों को चुनकर लोकसभा में भेजा ताकि देश गांधी मार्ग पर आगे बढ़ सके.

ओ बेन किंग्सले, तुम आओ और हमारे गांधी बन जाओ. इस देश को नेता नहीं, नेताओं का सा एक्टिंग करने वाला चाहिए. इस देश को गांधी का अर्थ नहीं, गांधी के डायलॉग चाहिए. तुम आओ और हमारे नेता बन जाओ. तुम डायलॉग बोलते रहना और हम जो जी में आए करते रहेंगे.

‘मुझे भविष्य जानने की इच्छा नहीं है. यदि वर्तमान पर्याप्त आकर्षक है तो भविष्य उससे बहुत भिन्न नहीं होगा’
महात्मा गांधी

ओ बेन किंग्सले, इस देश का वर्तमान बहुत आकर्षक है और मैं सच कहता हूं कि यदि ऐसा ही चलता रहा तो भविष्य इससे भिन्न नहीं होगा.

(हैलो दोस्तों! हमारे Telegram चैनल से जुड़े रहिए यहां)

Published: 30 Jan 2021,11:46 AM IST

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