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वीडियो एडिटर: पूर्णेन्दु प्रीतम
आपकी तरह .. मैं भी ड्रामा देख रहा हूं, सुशांत सिंह राजपूत की मौत के आसपास का मीडिया सर्कस.
आपकी तरह… मैंने सुप्रीम कोर्ट वर्सेस वरिष्ठ वकील प्रशांत भूषण की कहानी देखी.
आपकी तरह… मैं भारत की कोविड की वजह से बढ़ते मौत के आंकड़े देख रहा हूं… चीन ने LAC पर भारतीय क्षेत्र को हथियाया… भारत की अर्थव्यवस्था को लुढकते हुए देखा.
और आपकी तरह मैं जिस भावना के साथ रह रहा हूं वो है, ये जो इंडिया है ना ... हम सच्चाई से सामना करने में बहुत अच्छे नहीं हैं. हम सच्चाई से दूर भागते हैं, हम इसे नकारते हैं, हम इस पर हमला करते हैं, हम इसे एक मजाक में बदल देते हैं... हम इसे अनदेखा करते हैं. हम कड़वी सच्चाइयों को अनदेखा करते हैं, हम उन लोगों को भी सजा देते हैं जो हमे आइना दिखाते हैं.
सुशांत सिंह राजपूत मामले को देखें तो हम सभी ने एक कमाल के एक्टर को खो दिया. इसके अलावा इस कहानी में और जो हताहत हुआ, वो है - सच्चाई.
सभी अपने तरीके से सच्चाई को बता रहे हैं . रोजाना. दो महीने से ज्यादा हो गए . ये देखने में बेस्वाद हो गया है और दर्शक भी नाटक से चिपके हुए हैं. हर हैशटैग के चपेटे में हैं. #SushantTruthNow #1stStepToSSRJustice #SushantWasKilled #SushantRheaTwist #ArrestRheaNow #SSRWarriors #DishaSushantMurderLink #globalprotest4ssr #CBITakesOver #CBIForSSR…और भी बहुत सारे हैं.
दुर्भाग्यपूर्ण तथ्य ये है कि इसमें से कोई भी, हमें सच्चाई के करीब नहीं पहुंचा पा रहा है. क्या हम सभी को अपने अंदर झांकना चाहिए ? हां. क्या हम ऐसा करेंगे? नहीं.
और क्या आपको याद है कि 14 जून को सुशांत की मौत के एक दिन बाद क्या हुआ था ?
15 जून को भारत की धरती पर हमारे 20 जवान शहीद हो गए, भारत की तरफ LAC पर गोदी मीडिया ने कुछ दिन सेना का गुणगान किया, जब कुछ चीनी ऐप्स पर प्रतिबंध लगा दिया गया तो हम वाह-वाह करने लगे लेकिन अभी भी पैंगोंग झील और देपसांग में भारतीय जमीन पर चीनी सैनिक हैं
इसके अलावा, सिर्फ रिकॉर्ड के लिए - 14 जून को, भारत में 3.3 लाख कोरोना मामले थे, आज हमारे पास 33 लाख मामले हैं. 14 जून को 9,500 लोगों की मौत हुई थी. आज 60,000 लोग मर चुके हैं. 800 से ज्यादा भारतीय रोज मर रहे हैं . दुनिया के किसी भी अन्य देश की तुलना में अधिक. क्या हम जानते हैं क्यों?
क्या हमारी सरकार हमें बता रही है कि क्यों? क्या हम अपनी सरकार से पूछ रहे हैं कि क्यों? हमारे स्वास्थ्य मंत्री ने इन सभी सवालों के जवाब देने के लिए हम सभी को कब संबोधित किया? क्या हममें से ज्यादातर लोग जानते हैं कि भारत का स्वास्थ्य मंत्री कौन है? ये प्रश्न हमें परेशान क्यों नहीं करते? क्या हम जानना नहीं चाहते हैं? हमें इसके बजाय सिर्फ सुशांत हैशटैग की हथकड़ी में क्यों रखा गया है?
लेकिन क्या अर्थव्यवस्था को फिर से जिंदा करने, सबसे बड़े नुकसान के लिए प्रत्यक्ष वित्तीय मदद देने, नौकरियां पैदा करने, मांग पैदा करने के लिए पर्याप्त कदम उठाए जा रहा है? क्या हमारी सरकार हमें बता रही है? क्या मीडिया पूछ रहा है? निश्चित रूप से हमारा ज्यादा सरोकार रोजगार के सवालों से होना चाहिए न कि कंगना रनौत के ताजा ट्वीट से. संयोग से, उनकी सबसे हालिया धारणा ये है कि भारत में जाति व्यवस्था अब मायने नहीं रखती. जातिगत अत्याचार कुछ ही लोग करते हैं. तो, यहां कंगना के 8.7 लाख ट्विटर फॉलोअर्स के लिए एक तथ्य है - 2018 में, भारत में कुल 42,800 जाति से जुड़े अपराध हुए. सरकारी डेटा. बस अपने बारे में एक और कड़वी सच्चाई . जिसे हम नजरअंदाज करते हैं और नकारते हैं.
लगातार कोरोना के खौफ में जी रहे लोग, लगातार रोजगार की चिंता से परेशान लोग थोड़ी देर के लिए सुशांत राजपूत वाले मीडिया सर्कस का हिस्सा बन सकते हैं लेकिन हमारी न्यायपालिका के पास क्या बहाना है?
भारत के कई शीर्ष कानूनविदों ने सर्वोच्च न्यायालय के फैसले पर सवाल उठाया है - भारत के सर्वोच्च न्यायालय को केवल एक ट्वीट से क्यों खतरा है? क्या सुप्रीम कोर्ट आलोचना से ऊपर है? न्यायालय को आईना दिखाने वाले किसी व्यक्ति को मित्र के रूप में क्यों नहीं देखा जा सकता. एक विरोधी के रूप में क्यों देखा जा रहा है? भूषण को अदालत में अपने दावे को साबित करने की भी अनुमति नहीं थी . जबकि इसका हक कानून में भी है. साफ है कि आज सच्चाई के बारे में कुछ ऐसा है, जिससे सुप्रीम कोर्ट भी असहज हो रहा है.
लेकिन, ये जो इंडिया है ना ... इसे सच को गले लगाना चाहिए, यहां तक कि कड़वा, असहज, दर्दनाक सच. क्योंकि यही एक परिपक्व और सही मायने में लोकतांत्रिक राष्ट्र को परिभाषित करता है।
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