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द नीलेश मिसरा शो: 3 लड़कियों की कहानी जिन्होंने अपने नियम खुद बनाए

3 ऐसी लड़कियों की कहानियां, जिन्होंने अपने जज्बे से नई लकीर खींची

नीलेश मिसरा
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नीलेश मिसरा के साथ, देश के आईने में छिपी वो कहानियां जिनका अक्स आप अक्सर अनदेखा कर देते हैं
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नीलेश मिसरा के साथ, देश के आईने में छिपी वो कहानियां जिनका अक्स आप अक्सर अनदेखा कर देते हैं
(फोटो: क्विंट)

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हमारे हीरो हमारे आसपास रहते हैं, अपनी छोटी-छोटी लड़ाइयां लड़ते हुए, अपने लिए नए रास्ते बनाते हुए, दूसरों को नए रास्ते दिखाते हुए...पर अक्सर हम अपने आसपास रहने वाले उन हीरोज को नजरअंदाज कर देते हैं. ‘द नीलेश मिसरा शो’ ऐसे ही हीरोज को आपके सामने लेकर आ रहा है. इस शो के हर एपिसोड में उन लोगों की, उन मुद्दों की बात होगी, जो बदलते हुए भारत का आईना हैं, जो आने वाले कल की उम्मीद हैं. ऐसे अनसंग हीरो, वो आम से दिखने वाले लोग जो दुनिया में जज्बा भरते हैं. वो मुद्दे जो आपकी जिंदगी पर सीधा असर डालते हैं, वो कहानियां जो कही ही नहीं गईं, आपको सुनाएगा और दिखाएगा ये खास शो. देश के सबसे बड़े रुरल मीडिया प्लेटफार्म गांव कनेक्शन और क्विंट आपके लिए हर हफ्ते लेकर आएंगे ‘द नीलेश मिसरा शो’.

'द नीलेश मिसरा शो' के पहले एपिसोड की स्टार हैं, तीन लड़कियां- शीलू सिंह राजपूत, प्रिया कुमारी और डिंपी तिवारी. गांवों और छोटे-छोटे कस्बों से निकली इन तीनों लड़कियों ने समाज के बनाए नियमों को मानने से इनकार करके अपने लिए नए नियम बनाए. आप भी जानिए इन 'तीन लड़कियों' की कहानी.

शीलू सिंह राजपूत

उत्तर प्रदेश के रायबरेली की रहने वाली शीलू सिंह राजपूत ने जब आल्हा गायिका बनने का सपना देखा तो उसने नहीं सोचा था कि वो कितनी लड़कियों के लिए रास्ते खोलने वाली हैं. शीलू जिस गांव से आती हैं, वहां फैमिली फंक्शन में भी फिल्मों के गाने पर डांस करने से पहले तक लड़कियां कई बार सोचती हैं, लेकिन शीलू आल्हा गायिका बनना चाहती थीं. आल्हा बुंदेलखंड का एक लोक गीत है, जिसे शीलू से पहले सिर्फ पुरुष गाते आए थे. लेकिन शीलू ने पुरुषों के माने जाने वाले इस क्षेत्र में ना सिर्फ कदम रखा बल्कि खूब नाम भी कमाया.

शीलू जब बुलंद आवाज में आल्हा गाती है तो सुनने वालों में जोश उफान पर होता है(फोटो: द नीलेश मिसरा शो)

पिछले कुछ सालों में शीलू सिंह राजपूत इस लोक गायकी का बड़ा नाम बन गई हैं. वो मंच पर तब दांत भींचते हुए तलवार भांजती हैं, मंच के सामने बैठी भीड़ तालियां बजाती रह जाती है. अपने घर की लकड़ी की दहलीज लांघकर इस मंच तक पहुंचने के लिए शीलू को कई जतन करने पड़े, ताने सहने पड़े. गांव और रिश्तेदार तो दूर घर के लोगों का विरोध झेलना पड़ा, (वीडियो में देखिए शीलू का संघर्ष) लेकिन अब शीलू हजारों लड़कियों की रोल मॉडल हैं.

प्रिया कुमारी

ये एक ऐसी लड़की की कहानी है जिसके लिए कुदरत और दुनिया ने सारे रास्ते बंद कर दिए थे, लेकिन इस लड़की ने अपनी हिम्मत से अपने लिए पगडंडियां बना डालीं. उत्तर प्रदेश के सोनभद्र की रहने वाली प्रिया कुमारी एथलीट बनना चाहती है, एवरेस्ट पर चढ़ना चाहती है. वो माउंटेनयरिंग के शुरुआती कोर्स कामयाबी से पूरा कर चुकी है. और अब 'मिशन एवरेस्ट' में जुटी है. जहां से प्रिया आती है, वहां लड़कियों का स्कूल तक जा पाना भी एवरेस्ट फतह करने से कम नहीं है. लेकिन एक छोटे से गांव में रहकर भी प्रिया ने एक बड़ा सपना देखा और सिर्फ अपने दम पर उस सपने को पूरा करने निकल गई.

प्रिया का सपना बहुत ऊंचा, एवरेस्ट जैसा नहीं बल्कि एवरेस्ट ही!(फोटो: द नीलेश मिसरा शो)
प्रिया की मां उसे जन्म देते ही मरने के लिए कूड़े के ढेर पर छोड़कर चली गईं. उसे एक महिला सामाजिक कार्यकर्ता ने उठाया और मां बनकर पाला. प्रिया जब सिर्फ 16 साल की थी, जब उसे पालने वाली मां की भी मौत हो गई. उसके एक मात्र रिश्तेदार बचे मामा के लड़के उसकी प्रॉपटी के दुश्मन बन गए थे. वो शादी कर प्रिया की जिम्मेदारी से मुक्ति चाहते थे, प्रिया एवरेस्ट की सफेद चादर पर तन के खड़े होना चाहती थी. मार-पीट, धमकी से सिलसिला आगे बढ़ गया और एक दिन प्रिया अपना घर छोड़कर भाग आई.

जेब में करीब 100 रुपए, थोड़ी सी भूख, पकड़े जाने का डर और आंखों में कई सपने, मंजिल तक पहुंचने का जुनून लिए, वो उन्हीं पैसों के सहारे दिल्ली पहुंची, फिर एक एनजीओ की मदद से देहरादून में माउंटेनयरिंग का कोर्स किया. प्रिया हिमालय की कुछ चोटियों पर चढ़ चुकी है, लेकिन आज भी उसके लिए माउंट एवरेस्ट चढ़ना उसकी जिंदगी का सबसे बड़ा मकसद है.

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डिंपी तिवारी

किक बॉक्सिंग में नेशनल लेवल पर गोल्ड समेत पांच मेडल और ताइक्वांडों में सिल्वर मेडल जीतने वाली ये लड़की रायबरेली जिले के छोटे से गांव से आती है. ऐसी कई लड़कियां और लड़के मिल जाएंगे, जो खेलों में अपनी प्रतिभा का लोहा मनवा चुके हैं, लेकिन डिंपी तिवारी की कहानी कुछ अलग है. जिन हालातों से लड़कर वो प्ले ग्राउंड तक पहुंची है. अपने विरोधी खिलाड़ी को हराने से पहले उसने समाज को हराया, उसने उन रिश्तेदारों और दकियानूस लोगों को हराया है, जो लड़कियों को घर की चारदीवारी में बांधे रखने के हिमायती हैं. ये कहानी हजारों लड़कियों के लिए प्रेरणा है.

डिंपी तिवारी की किक आसपास की लड़कियों को हौसला देती है(फोटो: द नीलेश मिसरा शो)

डिंपी तिवारी के पिता सूर्य प्रताप तिवारी फौजी थे. ज्यादा शराब पीने की वजह से उनकी मौत हो गई. डिंपी उस वक्त सिर्फ 13 साल की थी. बड़ी बहन की शादी तय हो चुकी थी, लेकिन दहेज देने के लिए पैसे नहीं थे. ऐसे में बड़ी बहन की शादी और परिवार की जिम्मेदारी डिंपी पर आ गई. पड़ोस के स्कूल में लड़कों को किक बॉक्सिंग करते देखकर डिंपी को भी ये खेल सीखने की चाह हुई. रास्ता आसान नहीं था.

रिश्तेदार उसकी शादी करके अपने सिर का बोझ उतार लेना चाहते थे. लेकिन डिंपी ने न सिर्फ किक बॉक्सिंग करना जारी रखा, बल्कि घर की जिम्मेदारियां भी अपने ऊपर ले लीं. डिंपी ने आस-पास के स्कूलों में लड़कियों को सेल्फ डिफेंस की ट्रेनिंग देना शुरू किया. साथ ही राष्ट्रीय खेलों में भी हिस्सा लेती रही. आज डिंपी नेशनल लेवल की किक बॉक्सिंग प्लेयर है और इंटरनेशनल मुकाबलों की तैयारी कर रही है. इसके साथ ही वो सैकड़ों लड़कियों और पुलिस के सिपाहियों को सेल्फ डिफेंस, यानी आत्म रक्षा की ट्रेनिंग दे रही है.

शीलू सिंह राजपूत, प्रिया कुमारी और डिंपी तिवारी जैसी लड़कियों की लड़ाई और जीत सिर्फ उनकी नहीं है...ये लड़ाई उनकी जैसी हजारों-लाखों लड़कियों की जीत है, जिन्हें अपने अधिकारों और अपनी जगह पाने के लिए रोज ऐसी कई लड़ाइयां लड़नी पड़ती हैं. ऐसे ही नायक, नायिकाओं की कहानियां हर हफ्ते देखिए 'द नीलेश मिसरा शो' में.

(अापके आसपास कितने लोग होंगे जो चुपचाप एक नया सपना गढ़ रहे हैं, उसे पूरा करने के लिए मेहनत कर रहे हैं और उसे सच भी कर रहे हैं. हो सकता है, आप उन्हें जानते हों. हो सकता है, आप भी उनमें से एक हों. समाज के बनाए नियमों से परे जाकर, अगर आप भी लड़ रहे हैं अपने हक की लड़ाई और खींच रहे हैं एक नई लकीर तो हमें लिख भेजिए अपनी कहानी, myreport@thequint.com पर. हम दुनिया तक पहुंचाएंगे, आपकी कहानी. )

(क्विंट हिन्दी, हर मुद्दे पर बनता आपकी आवाज, करता है सवाल. आज ही मेंबर बनें और हमारी पत्रकारिता को आकार देने में सक्रिय भूमिका निभाएं.)

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