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38 साल की गीता* (बदला हुआ नाम) के लिए, दिल्ली की सड़कों पर कमाना अब किसी बुरे सपने जैसा है. गीता अपनी पहचान एक ट्रांसजेंडर के तौर पर देती हैं. कमाई का कोई और जरिया नहीं होने के कारण गीता दिल्ली के कनॉट प्लेस में भीख मांगकर रोजाना 500 रुपए जुटा लेती हैं.
हालांकि सुप्रीम कोर्ट के सितंबर 2018 में धारा 377 पर आए फैसले के बाद गीता के लिए चीजें थोड़ी बदलीं. सुप्रीम कोर्ट ने ऐतिहासिक फैसला सुनाते हुए समलैंगिकता को अपराध की कैटेगरी से बाहर कर दिया था. इस फैसले के एक सप्ताह बाद, पत्रकारों को एक ट्रांस कार्यकर्ता डॉ कार्तिक बिट्टू ने जानकारी दी कि तीन ट्रांसजेंडर भिखारी कनॉट प्लेस पुलिस स्टेशन में शिकायत दर्ज करवाएंगी. गीता उनमें से एक थी. 7 साल पहले पालिका बाजार में दिल्ली पुलिस के तीन बीट कॉन्स्टेबलों ने कथित तौर पर गीता का रेप किया था.
शिकायत नहीं दर्ज कराने को लेकर गीता ने क्विंट को बताया-
गीता के मुताबिक उनकी 2 और दोस्त जो इस अपराध का शिकार हुई थीं वो काफी डरी हुई थीं. इससे गीता की हिम्मत भी कमजोर पड़ गई जिस डर ने उन्हें पुलिस के पास जाने से रोक रखा था.
गीता की गुरु ने उसे पुलिस में शिकायत दर्ज कराने से मना किया था क्योंकि उन्हें डर था कि इसका असर उनकी रोजमर्रा की जिंदगी पर पड़ सकता है. लेकिन गुरु के समझाने के बावजूद गीता ने अब जाकर शिकायत दर्ज कराने का फैसला किया.
गीता को अब सिर्फ इंसाफ चाहिए और पुलिस के जुल्म के बिना पैसे कमाने का अधिकार. क्या उसकी ये मांग ज्यादा है?
द क्विंट ने भी दिल्ली पुलिस को इस मामले से जुड़े सवालों की एक सूची भेजी है लेकिन अबतक कोई जवाब नहीं मिला है.
1) 3 अक्टूबर 2018 को कनॉट प्लेस पुलिस स्टेशन में गीता की ओर से दर्ज कराई गई शिकायत का स्टेटस क्या है?
2) क्या आप मामले में एफआईआर दर्ज करने में हुई देरी के पीछे की वजह बता सकते हैं? किस आधार पर पुलिस ने सीआरपीसी के सेक्शन 166 ए और ललिता कुमारी मामले में सुप्रीम कोर्ट के गाइडलाइन- जिसमें कहा गया है कि ऐसे मामलों में एफआईआर दर्ज करना अनिवार्य है, को नजरअंदाज कर दिया?
3) 377 मामले में सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद, दिल्ली पुलिस अपने कर्मियों को संवेदनशील बनाने के लिए किस तरह की कोशिशें कर रही है?
दिल्ली पुलिस से जवाब मिलते ही इस खबर को अपडेट किया जाएगा.
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