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NHRC के आंकड़ों के मुताबिक देश में हर दिन औसतन 7 लोगों की हिरासत में मौत (Custodial deaths) रिपोर्ट होती है. पिछले 3 सालों का डेटा कहता है कि हिरासत में मौत के मामले में उत्तर प्रदेश नंबर 1 है. लेकिन ये तो सिर्फ आंकड़े हैं, हकीकत इससे कहीं ज्यादा भयावह है क्योंकि हिरासत में मौत के कई मामले तो कभी रिपोर्ट ही नहीं होते. और जो रिपोर्ट होते हैं उनमें पीड़ित परिवार को इंसाफ मिलने की उम्मीद न के बराबर होती है.
जैसे गाजीपुर में हत्या के आरोपी पुलिसवाले वाले को गृह मंत्रालय ने इनाम दिया. आरोप है कि मिर्जापुर में 60 साल के बीजेपी नेता पर पुलिस ने इतना जुल्म ढाया कि उनकी सदमे में मौत हो गई. आजमगढ़, जौनपुर, मऊ और भी कई जगहें हैं ...जहां पुलिस ने हैवानियत की हदें पार कीं लेकिन न्याय आज तक नहीं मिला.
Custodial deaths पर क्विंट के इस स्पेशल प्रोजेक्ट के लिए मैं करीब 3000 किलोमीटर का सफर तय करके यूपी के कोने-कोने से आपके लिए वो कहानियां लेकर रहा हूं जहां अभी भी इंसाफ नहीं पहुंचा है. इन पीड़ित परिवारों की आवाज बुलंद करने में हमारी मदद कीजिए. ये कहानियां आपतक पहुंचाने में ढेर सारा वक्त और पैसा खर्च होता है. सीरीज को पूरा करने के लिए हमें करीब 5 लाख अस्सी हजार रुपये चाहिए. अगर आप चाहते हैं कि हम इंसाफ की लड़ाई की ये कहानियां आपतक पहुंचाएं तो नीचे दिए गए लिंक पर क्लिक कर हमारी मदद कर सकते हैं.
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