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वीडियो एडिटर- अभिषेक शर्मा
अभी हाल ही में उत्तर प्रदेश के सीएम योगी आदित्यनाथ ने कहा था, 'कोरोना के भूत को हमने बोतल में बंद कर दिया.' लेकिन अगर कोरोना के भूत को कथित तौर पर बोतल में बंद कर दिया है तो फिर उत्तर प्रदेश में डेंगू और वायरल फीवर के ड्रैकुला को आजाद क्यों छोड़ दिया गया?
यूपी में आगरा, फिरोजाबाद, लखनऊ, गोरखपुर, मथुरा, मेरठ, बागपत, कानपुर हर तरफ बुखार और डेंगू ने बच्चों से लेकर बड़ों को अपनी गिरफ्त में ले लिया है. कोरोना काल में नदी, रेत, श्मशान में लाशों की कतारें सबने देखी, लेकिन लगता है कोरोना को बोतल में कैद करने का दावा करने वाले राज्य में हेल्थ सिस्टम अब भी जंजीरों में जकड़ा हुआ है. अब जब दावों के हवाई किले बनाए जाएंगे और अस्पताल बेहाल होंगे तो हम पूछेंगे जनाब ऐसे कैसे?
पिछले एक महीने में उत्तर प्रदेश में बुखार, डेंगू से करीब 200 से ज्यादा जानें चली गई हैं, जिसमें ज्यादातर बच्चे हैं. आप उत्तर प्रदेश के अलग-अलग शहरों के अस्पतालों की तस्वीर देखिएगा तो रोगंटे खड़े हो जाएंगे. कहीं मां-बाप बच्चे को गोद में उठाकर अस्पताल के चक्कर काट रहे हैं तो कहीं अपनों की जिंदगी के लिए लोग अधिकारियों के पांव पकड़ रहे हैं. क्विंट की टीम फिरोजाबाद गई थी. आप भी देखिए वहां हो क्या रहा है.
अब सवाल है कि जब कोरोना की दूसरी लहर कम हुई तब ही सूबे के मुखिया योगी आदित्यनाथ ने कहा था कि उनकी सरकार कोविड की तीसरी लहर से निपटने के लिए तैयार है. हमने मतलब यही समझा कि अस्पतालों में इंतजाम चाक चौबंद होंगे. तो फिर ये तैयारी चार महीने बाद भी क्यों नहीं दिखी? क्यों इन बच्चों के मां-बाप अस्पताल में दर दर भटक रहे हैं?
सरकार दावा कर रही थी कि जिला और सरकारी अस्पतालों के पीडियाट्रिक वार्ड में बेड की क्षमता भी बढ़ाई जा रही है. लेकिन 4 महीने बाद ही बुखार ने सारे दावे की हकीकत सामने ला दी. कहीं साइकिल पर बीमार बच्चे को लेकर जाना पड़ रहा है तो कहीं अस्पताल की सीढ़ियों पर बच्चा उलटी कर रहा है.
कोरोना के दूसरी लहर के बीच केंद्रीय स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय ने एक रूरल हेल्थ स्टेटिस्टिक्स रिपोर्ट 2019-20 जारी की थी, जिसके मुताबिक देश के सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्रों (सीएचसी) में 76.1 फीसदी विशेषज्ञ डॉक्टरों की कमी है. सीएचसी में फिजिशियन कैटेगरी के तहत सबसे ज्यादा कमी राजस्थान (419) और उत्तर प्रदेश (402) में है.
रूरल हेल्थ स्टेटिस्टिक्स रिपोर्ट के मुताबिक, उत्तर प्रदेश के ग्रामीण इलाकों के प्राइमरी हेल्थ सेंटर यानी पीएचसी में 3578 स्वीकृत पद हैं, जिनमें से 2759 भरे हुए हैं और 819 खाली हैं. जाहिर है जब गांव में हेल्थ सिस्टम का डब्बा गोल होगा तो पूरा दबाव शहरों के अस्पतालों पर पड़ेगा और व्यवस्था चरमरा जाएगी. यूपी में कोरोना काल में यही हुआ, डेंगू में भी यही हो रहा है.
क्विंट को फिरोजाबाद में लोकल लेवल पर इलाज का जो निजी इंतजाम दिखा वो पाषाण कालीन लगा. लेकिन सरकार इंतज़ाम कम होने से लोग यहीं इलाज कराने को मजबूर दिखे. आरोप लग रहा है कि सरकार अस्पताल और इलाज को मैनेज करने के बजाय कुछ और ही मैनेज करने में लगी है?
बीबीसी की एक रिपोर्ट कह रही है कि कानपुर के कुरसौली में तेज बुखार से अब तक 13 लोगों की मौत हुई है, लेकिन जिला प्रशासन दावा कर रहा है कि गांव में डेंगू से कोई मौत नहीं हुई है. लेकिन सवाल है कि मौत तो हुई है न. क्विंट की टीम को फिरोजाबाद में वैष्णवी का केस मिला. 14 सितंबर को फिरोजाबाद मेडिकल कॉलेज में 6 साल की वैष्णवी की मौत हो गई लेकिन सरकारी आंकड़ों में उस दिन कोई मौत नहीं हुई.
राज्य में जब ये सब हो रहा है तो प्रदेश में फिर से अब्बा जान, कब्रिस्तान, श्मशान हो रहा है. प्रदेश में मरने वाले बच्चे अब्बा, अब्बू, पिता, बाबा, पापा, डैडी सब बोलते होंगे. फोकस मौतों को रोकने पर होना चाहिए.
गोरखपुर में इंसेफ्लाइटिस हो, बरेली में मलेरिया हो, फ़िरोज़ाबाद में डेंगू हो या पूरे राज्य में कोरोना का प्रकोप. ये बीमारियां हर बार बताती हैं कि इस सिस्टम को झूठ की गोली नहीं बल्कि ईमानदारी की वैक्सीन चाहिए. नहीं तो हम पूछेंगे जनाब ऐसे कैसे?
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