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ये जो इंडिया है ना... उत्तराखंड के सीएम कुछ भी कहें.. यहां पर हर कोई फटी जींस पसंद करता है. दिल्ली एनसीआर के फ़ेमस अट्टा मार्केट के फुटपाथ का हर छोटा स्टॉल फटी जींस बेचता है. कम फटी, ज़्यादा फटी, पूरी फटी. 400-500-600 के दाम पर. ज़्यादा महँगी भी नहीं. मतलब लाखों लड़कियां उन्हें ख़रीद सकती हैं और ख़रीदती भी हैं. दुकानदार कहते हैं, वो दिन में 15-20 जींस बेच लेते हैं और यहां कम से कम 30-40 दुकानें हैं. यानी सिर्फ़ अट्टा मार्केट में फटी जींस की सालाना 120 करोड़ रुपयों की बिक्री होती है. तो तीरथ सिंह रावत के लिए सीधा संदेश.. फटी जींस अभी चलन में रहेगी...
अब सीएम ने ये सफ़ाई दी है कि उन्हें लड़कियों की जींस से कोई समस्या नहीं है... सिर्फ़ फटी जींस से है. लेकिन मैं आपको बताता हूँ... अगर हम जींस की ठीक से मोरल पुलिसिंग करना चाहते हैं.. तो सीएम साहब को कुछ और भी संदेहजनक जींस की तरफ़ ध्यान देना चाहिए. जैसे कि स्किनी जींस, लो राइज़ जींस, हाई राइज़ जींस क्रॉप टॉप के साथ, साइड स्लिट बटन अप जींस, जिसमें पैर कुछ ज़्यादा ही दिखते हैं. इसके अलावा क्रोशे जींस.
लेकिन रिप्पड जींस के अलावा दूसरी कई चीजें हैं जिनके बारे में उत्तराखंड के सीएम को सोचना चाहिए. पहली बात कि वो कोविड 19 पॉज़िटिव पाए गए हैं. हम उनके पूरी तरह ठीक होने की कामना करते हैं. साथ में उम्मीद करते हैं कि अब वो कुंभ मेले के लिए कोविड से जुड़े नियम कायदों को हटाने की बात नहीं करेंगे और केंद्र सरकार की सलाह को मानेंगे.
लेकिन इससे भी ज़्यादा महत्वपूर्ण.. उन्हें उत्तराखंड की महिलाओं के सामने जो असली समस्याएँ हैं उनपर ध्यान केंद्रित करने की ज़रूरत है. नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे (NFHS) के मुताबिक जहां तमिलनाडु औऱ केल में 91% और 90% औरतों को उचित मेंस्ट्रुअल हाइजीन प्राप्त है. वहां उत्तराखंड में सिर्फ 55% महिलाओं को ही ये सुविधा है. इसके अलावा, उत्तराखंड में 15 और 49 साल की उम्र के बीच की महिलाओं में 45% एनीमिया से पीड़ित हैं. यानी खून में रेड ब्लड सेल की कमी है. जिससे वो कई बीमारियों का शिकार बन सकती हैं. क्या आप जानते हैं कि राष्ट्रीय औसत क्या है? सिर्फ 2.2%. और ये देखिए.. स्वास्थ्य सेवा में उत्तराखंड की रैंकिंग क्या है? 2019 में नीति आयोग द्वारा 21 राज्यों की सूची में उत्तराखंड की रैंकिंग क्या है? 17 वीं. सीएम को इस सब चीजों से चिंतित होना चाहिए. फटी जींस को लेकर नहीं.
हां, ये बात सही है कि ये अकेले रावत साहब की समस्या नहीं है. ये सब उन्हें विरासत में मिली है. लेकिन सीएम साहब क्या-क्या ठीक करना है.. उस लिस्ट में फटी जींस को भी क्यों शामिल करना है? एक और बात रावत साहब सेक्सिज्म में अकेले नहीं हैं. ना ही ये बीजेपी शासित राज्यों की बात है. सच्चाई ये है कि हर एक पॉलिटिकल पार्टी में ऐसे नेता हैं जिनकी सोच सेक्सिज्म को बढ़ावा देती है. और सिर्फ़ नेता ही नहीं, देश के सरकारी बाबू, देश की पुलिस, देश के न्यायाधीश-इनमें से भी कई ऐसी सोच रखते हैं.
आख़िर में मिताली राज के बारे में एक ख़्याल. भारत की नंबर वन महिला क्रिकेटर, हाल ही में उन्होंने 10,000 अंतरराष्ट्रीय रन पूरे किए. हमने तालियाँ बजाई. लेकिन एक बात पर नज़र डालिए. मिताली राज ने अपने करियर में 10 टेस्ट मैच खेले हैं और 663 रन बनाए हैं. हाँ, 22 सालो के करियर में उन्होंने 200 से ज़्यादा वनडे खेले. लेकिन ना के बराबर टेस्ट मैच. अब ऐसा करिए-सचिन तेंदुलकर के टेस्च करियर को भुला दीजिए. उन 200 टेस्ट मैच, 51 सेंचुरी, 16,000 रन को भूल जाइये. क्या हर क्रिकेट फ़ैन को बुरा नहीं लगेगा. लेकिन मिताली राज के साथ यही तो हुआ है. आर्थिक रूप से सम्पन्न बीसीसीआई को महिला क्रिकेट पर और ज़्यादा खर्च नहीं करना चाहिए? करना चाहिए.. लेकिन ऐसा होगा नहीं. ऐसा इसलिए क्योंकि लिंगभेद इस देश में हर कदम पर मौजूद है.
ये जो इंडिया है ना… हमें फटी जींस को स्वीकार करने की जरूरत है .. हमें इस देश की हर महिला की पसंद नापसंद को बिना किसी शर्त के खुले दिल से स्वीकार करने की जरूरत है..
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