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देश में नागरिकता कानून और NRC पर बवाल मचा हुआ है. जगह-जगह विरोध प्रदर्शन हो रहे हैं. लोग पूरे देश में NRC लागू होने की बात से गुस्से में हैं. इसी बीच खबर आई कि 24 दिसंबर 2019 को कैबिनेट ने 3,941.35 करोड़ रुपए NPR (नेशनल पॉपुलेशन रजिस्टर) को अपडेट करने के लिए आवंटित कर दिए हैं.
अब जानते हैं कि क्या विवादित नेशनल रजिस्टर ऑफ सिटिजन का NPR से कोई कनेक्शन है? NPR का नागरिकता संशोधन कानून से कोई लिंक है? गृह मंत्री अमित शाह ने एक इंटरव्यू में कहा है कि NPR का NRC से कोई कनेक्शन नहीं है और भविष्य में भी इसका इस्तेमाल NRC के लिए नहीं किया जाएगा.
सुप्रीम कोर्ट के वकील गौतम भाटिया का कहना है, “ये कोई काल्पनिक चीज या ऐसी चीज नहीं है कि ये भविष्य की बात है, ये अभी हो रहा है. CAA और NRC के लिए NPR पुल की तरह काम कर रहा है. सरकार ने जो नया डेटा मांगा है, इसका पता उससे ही चलता है. CAA को लेकर गंभीर बात ये है कि इसका कनेक्शन NRC से है, NPR में लोगों को अपने माता-पिता का जन्म स्थान और उनकी जन्मतिथि बतानी होगी जो पहले नहीं होता था. ये बहुत पेचीदा है. इसे समझने के लिए हमें CAA को देखना होगा, ये वो कानून है जो भारतीय नागरिकता को समझाता है और अभी इसमें संशोधन हुआ है."
गौतम बताते हैं कि NPR में जो माता-पिता का जन्मस्थान और जन्मतिथि मांगा जाता है, ये प्रावधान सीधे नागरिकता कानून के सेक्शन 3 से मिलता है. ये जानकारी नागरिकता देने के लिए जरूरी है. गौतम का कहना है कि ये तीनों आपस में कनेक्टेड हैं- जो CAA में ओवरलैप हो रहा है. CAA में नागरिकता देने के लिए जो जानकारी मांगी गई है और जो NPR में जानकारी मांगी गई है, वो दोनों एक जैसी हैं.
गौतम का कहना है कि जो अभी नागरिकता कानून आया है उसे भविष्य में आने वाले NRC से अलग नहीं देख सकते हैं, लेकिन इनके बीच में जो पुल का काम कर रहा है NPR, जिसपर अभी काम चल रहा है.
इसका जवाब देने के लिए इंडिपेंडेंट रिसर्चर श्रीनिवास कोड़ाली बताते हैं कि कारगिल की लड़ाई के बाद इसकी शुरुआत हुई और 26/11 के आतंकवादी हमले के बाद इसे और बढ़ाया गया.
श्रीनिवास आगे बताते हैं कि कारगिल युद्ध के बाद NPR पर थोड़ा काम हुआ, उसके बाद 2008 में 26/11 हमले के बाद ये काम और आगे बढ़ा.
श्रीनिवास ने अपनी रिसर्च में पाया कि जब NPR पर काम चल रहा था तब देशभर में आधार कार्ड से एक नया डेटाबेस तैयार हो रहा था, जिसमें बायोमेट्रिक डेटा इकट्ठा किया गया. NPR और आधार में राज्य स्तर पर डेटा हब बनाए गए. इसमें धर्म और जाति का डेटा इकट्ठा किया गया. इन प्रोजेक्ट के दौरान जो डेटा NPR और आधार के जरिए इकट्ठा किया गया वो राज्यों के साथ भी साझा किया गया.
इतना ही नहीं इन रजिस्टर से चुनाव आयोग ने भी जानकारी का एक्सेस लेना चाहा था. NPR ने ये डेटा चुनाव आयोग से 2015 में साझा किया और 2016 तक शेयर किया गया, जब तक सुप्रीम कोर्ट और संसद ने इसमें हस्तक्षेप नहीं किया.
श्रीनिवास ने बताया, "रजिस्टर जनरल ऑफ इंडिया जैसी एंटिटी ये जानकारियां साझा करने लगे. जिसके कारण ये हुआ कि कई वोटर आईडी की जानकारियां डिलीट हो गईं और इसकी जानकारी वोटर को नहीं थी."
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