Home Created by potrace 1.16, written by Peter Selinger 2001-2019Videos Created by potrace 1.16, written by Peter Selinger 2001-2019गिरता रुपया और बदहाल इकनॉमी क्या ‘2013’ की याद दिलाते हैं?

गिरता रुपया और बदहाल इकनॉमी क्या ‘2013’ की याद दिलाते हैं?

हमें तय करना है कि टीवी पर चल रही जिन्ना और बाबर जैसे मुद्दों की बहस का हमारी जेब पर क्या असर होगा? 

मयंक मिश्रा
वीडियो
Updated:
टीवी डिबेट में सब इसमें उलझे पड़े हैं, कौन सी पार्टी किस जाति को रिप्रेजेंट कर रही है? किस पार्टी का कौन सा धर्म है?
i
टीवी डिबेट में सब इसमें उलझे पड़े हैं, कौन सी पार्टी किस जाति को रिप्रेजेंट कर रही है? किस पार्टी का कौन सा धर्म है?
(फोटो: क्विंट हिंदी)

advertisement

टेलीविजन न्यूज की बहस में तमाम नए-नए आइटम, नए-नए शब्द जुड़ रहे हैं. कुछ पर्सनैलिटी ऐसी हैं जो अभी राष्ट्रीय जुनून बन गई हैं. उनमें जो नाम तुरंत याद आते हैं वो है मोहम्मद अली जिन्ना और दूसरे बाबर. उनकी विरासत को माइक्रोस्कोप से खंगाला जा रहा है. एक और बात जिसपर सबसे ज्यादा डिबेट हो रही है वो है- कौन सी पार्टी किस जाति को रिप्रेजेंट कर रही है? किस पार्टी का कौन सा धर्म है?

ADVERTISEMENT
ADVERTISEMENT
लेकिन इन बहस को सुनने के बाद मेरे मन में यही सवाल आते हैं. क्या इन बहस से मुझे नौकरी मिलेगी? क्या इससे मेरा पेट भर जाएगा? बच्चे स्कूल जा पाएंगे? मैं हाॅस्पिटल का बिल भर पाऊंगा?

नहीं, इससे उलट इस बहस से निवेश का माहौल खराब होगा. इससे टैक्स कलेक्शन में कमी आएगी. वेलफेयर स्कीम नहीं चल पाएंगीं. अर्थव्यवस्था की रफ्तार धीमी पड़ जाएगी.

मेरी नजर जिन हेडलाइंस पर पड़ती है, वो हेडलाइंस हैं-

  • रुपए में भारी कमजोरी
  • एक्सपोर्ट्स का नहीं बढ़ना. ज्यादा रोजगार देने वाले दो सेक्टर्स मुश्किल में- टेक्सटाइल्स और जेम्स एंड ज्वैलरी के एक्सपोर्ट में लगातार गिरावट
  • व्यापार घाटा फिर से बढ़ रहा है
  • पेट्रोल-डीजल की कीमतें तो लंबे वक्त से शिखर के आसपास

आप 5 साल पहले 2013 को याद कीजिए ऐसी ही हेडलाइंस सुनने को मिलती थीं. 2013 मनमोहन सरकार का अंतिम साल था. उस वक्त सबसे ज्यादा बात हो रही थी कि कमजोर प्रधानमंत्री की वजह से रुपया कमजोर हो रहा है. रुपए का कमजोर पड़ना कमजोर अर्थव्यवस्था का संकेत है. ये फिर से दोहराया जा रहा है. डॉलर के मुकाबले रुपया 69 के मनोवैज्ञानिक बैरियर को पार कर गया है और एक्सपर्ट कह रहे हैं कि कमजोरी और भी बढ़ सकती है.

दूसरी हेडलाइन है पेट्रोल और डीजल की. देश में पेट्रोल और डीजल की कीमत अपने ऊंचे स्तर पर है और यही हाल 2013 में था. 2013 में कच्चे तेल के दाम  95 डॉलर पर बैरल थे. अभी कच्चे तेल के दाम 70 डॉलर के आसपास है लेकिन पेट्रोल-डीजल की कीमत साल 2013 से ज्यादा है.

रुपए की कमजोरी बड़ी मुसीबत है क्योंकि इससे इंपोर्टेड आइटम महंगा होगा. देश में इंपोर्ट होने वाला सबसे बड़ा आइटम क्रूड ही है. इंटरनेशनल मार्केट में क्रूड महंगा हो रहा है और रुपया कमजोर मतलब पेट्रोल-डीजल पर इसका दोहरा असर पड़ रहा है.

पेट्रोल-डीजल की कीमत बढ़ना मतलब महंगाई बढ़ना तय.

लेकिन इन बैचेनी वाली खबरों के बीच हम मोहम्मद अली जिन्ना पर माथापच्ची कर रहे हैं

एक और हेडलाइन जो आपको 2013 की याद दिलाएगी वो है महंगाई दर. ताजा आंकड़े के मुताबिक महंगाई दर साढ़े चार साल के सबसे ऊंचे स्तर पर है. आलू-प्याज की कीमतें महंगाई दर बढ़ा रही हैं. सब्जियों-फलों की कीमत तेजी से बढ़ रही है. माॅनसून का रुख बाकी खाने-पीने की चीजों की कीमतों पर भी असर डालेगा. रुपए की कमजोरी और सब्जियों-फलों के दाम बढ़ने से महंगाई की दर बढ़नी शुरू हो गई है.

साल 2013 में भी इसे लेकर बहुत ज्यादा चर्चा और चिंता थी.

साल 2013 की हेडलाइंस में रुपए की कमजोरी, व्यापार घाटा का बढ़ना, महंगाई दर का बढ़ना छाया रहता था. और ठीक इसके बाद साल 2014 के चुनाव में कांग्रेस का इतिहास में सबसे खराब प्रदर्शन रहा था.

अब फिलहाल छाए हेडलाइंस के बीच ये हमें तय करना है कि इन मुद्दों-बहस का हमारी जेब पर क्या असर होगा?

(हैलो दोस्तों! हमारे Telegram चैनल से जुड़े रहिए यहां)

Published: 21 Jul 2018,05:25 PM IST

Read More
ADVERTISEMENT
SCROLL FOR NEXT