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मां काली के परमभक्त रामकृष्ण परमहंस धर्म को मंदिर, मस्जिद या गिरजाघर का मोहताज नहीं मानते थे. रामकृष्ण परमहंस ने इस्लाम को भी समझा था और ईसाई धर्म से भी सीखा था.
कहा जाता है कि गोविंद राय नाम के एक सूफी साधक की वजह से वो इस्लाम के मुरीद हुए थे. उनकी बोली और पहनावे में भी इसका असर दिखने लगा था. मणि मल्लिक के घर बाइबल के संदेश सुनकर रामकृष्ण परमहंस का मन जीसस में भी रमने लगा था.
रामकृष्ण का जन्म 18 फरवरी, 1836 को एक ब्राह्मण परिवार में हुआ था. 23 साल की उम्र में 5 साल की सारदामणि मुखोपाध्याय से उनकी शादी हुई थी. मगर उनका मन आध्यात्म में रमता था. उनकी सीख आज भी कारगर हैं. हार मानने वालों के लिए वो कहते थे-
परमहंस का एक किस्सा काफी मशहूर है. कहा जाता है कि जाति व्यवस्था तोड़ने के लिए परमहंस ने अछूत कहे जाने वाले एक परिवार का दास बनने का ऐलान कर दिया था. 16 अगस्त, 1886 को परमहंस ने देह त्याग दी थी, लेकिन सिर्फ 50 साल के जीवन में परमहंस कई सदियों की रूढ़ियां तोड़ गए.
दुनिया को भारत और धर्म का ज्ञान देने वाले विवेकानंद ने परमहंस के विचारों को पूरी दुनिया तक पहुंचाया था. विवेकानंद को समझाते हुए एक बार रामकृष्ण परमहंस ने कहा था
रामकृष्ण की शिक्षा आज की पीढ़ी के लिए भी है. जिंदगी में प्रेम की अहमियत को रामकृष्ण ने कुछ ऐसे समझाया था- 'इंसान की जिंदगी का सर्वोच्च उद्देश्य और लक्ष्य... प्रेम है'
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