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वीडियो एडिटर: मोहम्मद इब्राहिम
प्रोड्यूसर: कौशिकी कश्यप
कैमरपर्सन: अभिषेक रंजन
ये एक बहुत ही हैरान करने वाली स्थिति है कि किस तरह से पीएम नरेंद्र मोदी की पसंदीदा स्कीम, घरेलू स्कीम- स्टैंडअप इंडिया, स्टार्टअप इंडिया, डिजिटल इंडिया, मेक इन इंडिया और न जाने कितनी योजनाओं को नकारा गया है.
पिछले एक महीने में दो हजार भारतीय स्टार्टअप को कंपनी मामलों के मंत्रालय मिनिस्ट्री आॅफ काॅरपोरेट अफेयर्स से नोटिस मिला है. इसमें उनसे इक्विटी फंड जुटाने के लिए ‘प्रीमियम को सही ठहराने’ को कहा गया है. नोटिस में कहा गया है कि जिस कीमत पर उन्होंने शेयर बेचे थे, अगर वे उसे सही साबित नहीं कर पाते हैं, तो जुर्माना भरने और टैक्स चुकाने को तैयार रहें. यह पुराने जख्म पर ताजा नमक छिड़ककर उसे हरा करने का मामला है. यह एक ‘अपराध’ के लिए दूसरी सजा है.
दो साल पहले इनकम टैक्स डिपार्टमेंट ने इसी तरह के नोटिस भेजे थे. उनमें टैक्स की मांग की गई थी और ‘एंजेल टैक्स’ के तहत उनके खिलाफ कार्यवाही शुरू हुई थी.
यह अजीब किस्म का टैक्स था. इसमें स्टार्टअप की वैल्यू तय करने का अधिकार वैसे इंस्पेक्टर्स को दिया गया था, जिन्हें इस बारे में कुछ पता नहीं होता. जरा सोचिए, प्राइवेट इक्विटी से लेकर वेंचर कैपिटल फंड के सबसे सफल पेशेवर भी 10 में से एक बार ही सही वैल्यूएशन तय कर पाते हैं. उसकी वजह यह है कि वैल्यूएशन भी खूबसूरती की तरह देखने वालों की आंखों में बसती है!
मिसाल के लिए, अगर पांच निवेशकों ने 2012 में फ्लिपकार्ट की वैल्यू 1 अरब डॉलर, 2 अरब डॉलर, 3 अरब डॉलर, 10 अरब डॉलर या 15 अरब डॉलर लगाई होती, तो उनमें से कौन सही या कौन गलत होता? साफ है कि हर शख्स का वैल्यूएशन उसके:
हर शख्स ने इन इंडिविजुअल फैक्टर को अलग-अलग वेटेज दिया होता और उनमें से हरेक का कंपनी के लिए वैल्यूएशन अलग-अलग हो सकता था. और शायद सबका अंदाजा सही होता, क्योंकि फ्लिपकार्ट आखिरकार 2018 में 20 अरब डॉलर की कीमत पर बिकी.
इसलिए अगर मनमाने ढंग से कोई अधिकारी फ्लिपकार्ट की वैल्यू 0.5 अरब डॉलर तय करता है तो वह ऊपर जिन निवेशकों का जिक्र किया गया है, उन पर क्रमशः 20 करोड़ डॉलर, 60 करोड़ डॉलर, 1 अरब डॉलर, 3.8 अरब डॉलर और 5.8 अरब डॉलर का टैक्स थोप सकता है, वह भी तब जबकि उन्हें एक रुपये तक का कैश न मिला हो!
आपको क्या लगता है? क्या ऐसा टैक्स सिस्टम होने पर किसी भी काल्पनिक निवेशक ने फ्लिपकार्ट में पैसा लगाया होता, जहां उसके साथ अनिश्चित ‘मुनाफे’ पर टैक्स देने के लिए जोर-जबरदस्ती की जाए.
यह टैक्स एक मजाक है, ट्रेजडी है. इसे प्रधानमंत्री मोदी ने भारतीय स्टार्टअप पर थोपा है. यह स्टैंड-अप इंडिया, स्टार्ट-अप इंडिया, डिजिटल इंडिया, मेक इन इंडिया और भगवान जाने और कितनी योजनाओं की भावनाओं के खिलाफ है.
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