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दिल्ली में स्कूलों ने नर्सरी एडमिशन के लिए 15 फरवरी को लिस्ट जारी की, जिसका बेसब्री से इंतजार था. लेकिन इसके बाद नन्हें मुन्हें बच्चों के पैरेंट्स तनाव में हैं. क्विंट ने 3 साल के बच्चे की मां कनिका खैबरी कुकरेजा से बात की. उन्होंने एडमिशन कराने के उस दर्द को बयां किया जो हर साल सैकड़ों छोटे-छोटे बच्चों के पैरेंट्स झेलते हैं.
दिल्ली में नर्सरी एडमिशन कराना बहुत बड़ा टास्क है. इसकी प्रक्रिया हर साल दिसंबर में शुरू होती है और मार्च के अंत तक चलती है. कुकरेजा कहती हैं कि इसकी चर्चा काफी पहले से शुरू हो जाती है, रात का खाना भी मुश्किल हो जाता है और जब तक बच्चे को एडमिशन नहीं मिलता तब तक राहत नहीं मिलती.
10 जनवरी 2018 को कुकरेजा ने एक फेसबुक पोस्ट के जरिए दिल्ली में स्कूल एडमिशन के बारे में चिंता जाहिर की और दूसरे पैरेंट्स से भी कहा कि वो अपना अनुभव शेयर करें. जब बाकी पैरेंट्स ने भी अपनी परेशानी बताना शुरू किया तो पता चला कि वो उनके और दूसरे पैरेंट्स की दिक्कतें काफी हद तक एक जैसी थीं.
नर्सरी एडमिशन के लिए कुछ मानदंड हैं, जिसके जरिए बच्चे को पॉइंट मिलते हैं. एक रैंक लिस्ट बनती है, जिस बच्चे को ज्यादा पॉइंट मिलते हैं, उसका लिस्ट में पहले नाम आता है. ये पॉइंट कुछ इस तरह होते हैं कि आप स्कूल से कितनी दूरी पर रहते हैं, पैरेंट्स पूर्व छात्र होने चाहिए या बच्चे के भाई बहन उसी स्कूल में होने चाहिए.
हालांकि, कुकरेजा की परेशानी तब बढ़ जाती है, जब हर स्कूल अपने हिसाब से मानदंड तय करने लगता है.
दिल्ली के स्कूलों में एडमिशन के लिए घर के पते के तौर पर आधार कार्ड, राशन कार्ड, बिजली या गैस का बिल देना होता है. ऐसे में दिल्ली के बाहर से आने वाले लोगों के लिए घर के पते का प्रूफ देने में काफी दिक्कत आती है. इसके लिए कहा गया कि आम आदमी पार्टी के ऑफिस जाया जाए. लेकिन वहां भी कुकरेजा ने पाया कि हर कोई अपनी जिम्मेदारी टाल रहा है.
कुकरेजा यह भी कहती हैं कि अगर सरकारी स्कूलों को ही इतना बेहतर बनाया जाए जिसमें अच्छा इंफ्रास्ट्रक्चर, बेहतर टीचर हों. तो कोई अपने बच्चे को सरकारी स्कूल में एडमिशन दिलाने के लिए दो बार सोचेगा भी नहीं. इसके अलावा फ्री स्ट्रक्चर और लकी ड्रॉ सिस्टम भी काफी गलत है.
कैमरा पर्सन: अभय शर्मा
वीडियो एडिटर: पुरुणेंदू प्रीतम और मोहम्मद इरशाद आलम
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