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कैमरा: अथर राथर
वीडियो एडिटर: अभिषेक शर्मा
'मेरा बेटा चला गया...मैं लोगों को क्या समझाऊं?'
'मुझे नहीं पता मैं घर कब लौटूंगी, लौटूंगी भी या नहीं'
'उन्होंने हमें कौनसी मुफ्त सुविधा दी? हां मुफ्त में गोलियां दी हैं'
उत्तर पूर्वी दिल्ली में हुई हिंसा की हर घर में एक डरावनी कहानी है. कुछ ने अपने करीबियों को हिंसा में खो दिया तो किसी के मकान को जला डाला गया. किसी घर का चिराग बूझ गया तो किसी के सपनों को जमींदोज कर दिया गया. हिंसाग्रस्त इलाकों की महिलाओं ने ‘द क्विंट’ को हिंसा के इस खौफनाक मंजर के बारे में बताया. उन पर जो बीती उसे सुनाते हुए उनके आंसू नहीं थम रहे थे. 54 साल रामसखी सोलंकी दिल्ली के शिव विहार में पिछले 3 दशकों से रह रही हैं, उनका बेटा राहुल सोलंकी घर से निकला ही था कि हिंसा भड़की. गोली चली और राहुल की जान चली गई.
सोलंकी उन 53 लोगों में से हैं जिन्होंने हिंसा में अपनी जान गंवाई.
राहुल की मां का दावा है कि वो उसे 3-4 नर्सिंग होम लेकर गए थे लेकिन किसी ने उसे भर्ती नहीं किया
इन वाकयों से इन महिलाओं में गुस्सा भरा हुआ है. गुस्सा उस भीड़ पर जिसने हिंसा भड़काई, और नाराजगी उस सरकार पर जिसने वक्त रहते काम नहीं किया
उषा चौधरी का घर हिंसा में नहीं जला लेकिन दिल्ली में हुई हिंसा ने उनके मन पर एक गहरी चोट जरूर दी है, वो डरा हुआ महसूस करती हैं.
लेकिन उषा की तरह खजूरी खास में रहने वालीं हलीमा को अपने दो बच्चों के साथ घर छोड़ना पड़ा.
ऐसी कई महिलाएं हैं जिनके पास ऐसे ही सवाल हैं लेकिन इन सवालों के जवाब शायद ही कभी मिले...
'हिंदू महिलाएं विधवा हो गयीं, मुसलमान महिलाएं विधवा हो गयीं, लोग मर रहे हैं, इन सब से किसको फायदा हो रहा है? नेताओं को फायदा मिल रहा है' ये कहना है उषा का जो हिंदू,मुस्लिम, सिख और इसाई महिलाओं की तरफ से एक सवाल उठा रही हैं...
(अस्मिता नंदी के इनपुट के साथ )
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