Home Created by potrace 1.16, written by Peter Selinger 2001-2019Videos Created by potrace 1.16, written by Peter Selinger 2001-2019योगी आदित्यनाथ की गाय को लेकर चिंता हकीकत या सियासत| कथा जोर गरम

योगी आदित्यनाथ की गाय को लेकर चिंता हकीकत या सियासत| कथा जोर गरम

योगी जी जितने कदम उठा रहे हैं वो गाय का या लोगों का नुकसान ही कर रहे हैं.

नीरज गुप्ता
वीडियो
Updated:
<b>यूपी के 68 जिलों में गोशाला बनाने की चर्चा, </b><b>लेकिन अब तक नहीं ली जा सकी है जमीन</b>
i
यूपी के 68 जिलों में गोशाला बनाने की चर्चा, लेकिन अब तक नहीं ली जा सकी है जमीन
(फोटो: कामरान अख्तर/ द क्विंट)

advertisement

कैमरापर्सन: सुमित बदोला

वीडियो एडिटर: पूर्णेन्दु प्रीतम

बचपन से पढ़ते रहे हैं कि Man is a social Animal.. यानी इंसान एक सामाजिक प्राणी है. अब इसमें ये भी जुड़ चुका है कि Cow is a political Animal यानी गाय एक राजनीतिक प्राणी है. ऐसा कहना इसलिए गलत नहीं होगा क्योंकि उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ का हर कदम ये एलान कर रहा है कि हमारी ‘पूज्य गाय माता’ एक राजनीतिक प्राणी है. वजह ये कि गाय की सुरक्षा और देखभाल के नाम पर योगी जी जितने कदम उठा रहे हैं वो असल में या तो गाय का या लोगों का नुकसान ही कर रहे हैं.

कथा जोर गरम है कि उत्तर प्रदेश के 68 जिलों में जिन गोशालाओं के निर्माण की बात योगी आदित्यनाथ ने की थी उनके लिए जमीन तक आवंटित नहीं हो पाई है. लिहाजा गोशालाओं का काम रुका पड़ा है, किसान परेशान हैं कि छुट्टा घूम रहीं गाय उनके खेतों की खड़ी फसल बर्बाद कर रही हैं.

यूपी के अलीगढ़ के आसपास ‘अन्नदाता’ और गाय माता का विवाद इतना बढ़ा कि किसानों ने गोवंश के जानवरों को दौड़ा-दौड़ा कर पीटा और स्कूलों और हेल्थ सेंटरों में बंद कर दिया.

इसके बाद आनन-फानन में यूपी सरकार ने घोषणा कर दी कि सूबे के 68 जिलों में गाय आश्रय स्थल यानी गोशालाएं बनाई जाएंगी. इसके लिए एक्साइज और कुछ दूसरे महकमों से 0.5% गाय कल्याण सेस वसूला जाएगा. सरकार खुद भी गांव पंचायतों, नगर पालिकाओं और निगमों को 100 करोड़ रूपये देगी.

लेकिन कई जिलों में गोशाला की जमीन की अब तक पहचान भी नहीं हो पाई है. जिला अधिकारियों को इस बाबत 2 बार चिट्ठी भेजी जा चुकी है.

इसके अलावा केंद्र सरकार नाराज है कि यूपी में 20वीं पशुधन गणना के लिए जानवरों की गिनती का काम धीमी गति से चल रहा है. 1 अक्टूबर 2018 को केंद्र ने आदेश दिया था कि तमाम राज्य अपने जानवरों की गिनती कर सरकार को बताएं.

यूपी के अफसरों की शिकायत है कि किसानों ने अपने गाय-बैलों को सड़क पर खुला छोड़ दिया है लिहाजा पशुधन की गिनती नहीं हो पा रही है. 7 दिसंबर 2018 को एक वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के दौरान इस मुद्दे पर केंद्र ने यूपी के अफसरों की खिंचाई की थी.

यानी गाय के नाम पर हो रही बड़ी-बड़ी बातों के बारे में हम कह सकते हैं- नाम बड़े और दर्शन छोटे!

अब एक और मजेदार बात सुनिए. साल 2014 से 2017 के बीच देशभर में गोमांस के नाम पर पुलिस और पशुपालन विभाग के लोगों ने जो छापेमारी की, उसमें से ज्यादातर गाय का मांस था ही नहीं.

हैदराबाद के NRCM यानी National Research Centre on meat ने इस दौरान यूपी, महाराष्ट्र बिहार, केरल, गोवा, पंजाब जैसे तमाम राज्यों से आए 112 बीफ-सैंपल का डीएनए टेस्ट किया जिनमें से सिर्फ 8 गाय के निकले. यानी तकरीबन 7%. बाकि सैंपल बैल, भैंस, बकरी और दूसरे जानवरों के थे.

मतलब गोमांस का जो हव्वा देशभर में खड़ा किया गया उसमें सियासत ज्यादा थी और हकीकत कम!

गाय के नाम पर आयोग बन रहे हैं, मंत्रालय बन रहे हैं, टैक्स वसूला जा रहा है लेकिन गाय या तो बीमार होकर गोशालाओं में मर रही है या सड़क पर प्लास्टिक चबाती हुई लाठी-डंडे खा रही है.

तो योगी आदित्यनाथ समेत गाय की सुरक्षा के तमाम स्वसंभू ठेकेदारों से हमारी गुजारिश है कि गाय की पूंछ पकड़कर चुनावी नदी में भले ही तैरिये लेकिन उसके नाम पर भावनाएं भड़काना और नफरत फैलाना बंद कीजिए.

(क्विंट हिन्दी, हर मुद्दे पर बनता आपकी आवाज, करता है सवाल. आज ही मेंबर बनें और हमारी पत्रकारिता को आकार देने में सक्रिय भूमिका निभाएं.)

Published: 05 Jan 2019,05:00 PM IST

ADVERTISEMENT
SCROLL FOR NEXT