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वीडियो एडिटर: पूर्णेंदु प्रीतम
यूपी के सीएम आदित्यनाथ आजादी का नारा लगाने वालों को देशद्रोह के मुकदमे वाले चाबुक से सबक सिखाना चाहते हैं, वो सजा देने की चेतावनी दे रहे हैं, सजा भी कठोर नहीं, कठोरतम.
योगी आदित्यनाथ ने कहा, ''उत्तर प्रदेश की धरती पर मैं इस बात को कहूंगा. धरना प्रदर्शन के नाम पर कश्मीर में जो कभी आजादी के नारे लगाते थे. अगर इस तरह के नारे लगाने का काम करोगे तो ये देशद्रोह की कैटेगरी में आएगा और फिर. इस पर कठोरतम कार्रवाई सरकार करेगी.''
सवाल उठता है कि देशद्रोह (राजद्रोह) कानून में इस बारे में क्या लिखा है? क्या महज नारा लगाने से कोई देशद्रोही बन जाएगा? एक शब्द में कहें तो जवाब है... नहीं, मिस्टर सीएम नहीं.
ये बातें मैं नहीं कह रहा, बल्कि हमारे आजाद मुल्क का कानून और देश की सबसे बड़ी अदालत मतलब सुप्रीम कोर्ट के फैसले के आधार पर बोल रहा हूं.
राजद्रोह कानून को भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 124ए के तहत परिभाषित किया गया है. राजद्रोह कानून कहता है-
दोषी साबित होने पर उम्रकैद और जुर्माना या 3 साल की कैद और जुर्माना या सिर्फ जुर्माने की सजा दी जा सकती है.
ये धारा अंग्रेजों के जमाने की है. मतलब गांधी से लेकर तिलक तक, जब अंग्रेजों के खिलाफ लिखते थे बोलते थे, तो अंग्रेजों को घबराहट होती थी. तब वो अपनी आलोचना का बदला लेने के लिए इस कानून का इस्तेमाल करते थे. भारत में इस कानून की नींव रखने वाले ब्रिटेन ने भी करीब 10 साल पहले राजद्रोह के कानून को खत्म कर दिया.
अब आपको आजाद हिंदुस्तान में राजद्रोह से जुड़े कुछ मामलों के बारे में बताते हैं-
फिर से पढ़ लीजिए महज नारेबाजी करना देशद्रोह के दायरे में नहीं आता.
एक और केस है. बलवंत सिंह बनाम पंजाब सरकार. पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की हत्या वाले दिन 31 अक्टूबर 1984 को चंडीगढ़ में बलवंत सिंह नाम के एक शख्स ने 'खालिस्तान जिंदाबाद' के नारे लगाए थे. इस मामले में इन दोनों पर राजद्रोह का मुकदमा चलाया गया. लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने राजद्रोह के तहत सजा देने से इनकार कर दिया था.
क्या ये देशद्रोह है?
हकीकत तो ये है कि जो भी अपने देश में गैरबराबरी और डर से आजादी की मांग कर रहा है, वो अपने देश को बेहतर बनाने की बात कर रहा है. ऐसा करने वाले लोगों से जब सीएम कहेंगे कि आजादी का नारा नहीं लगा सकते तो वो तो पूछेंगे जरूर- जनाब ऐसे कैसे?
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Published: 23 Jan 2020,10:25 PM IST