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इस साल भारत और इजराइल द्विपक्षीय कूटनीतिक संबंधों की 25वीं वर्षगांठ का जश्न मना रहे हैं. लेकिन ये दोनों देश आज जिस तरह अपनी दोस्ती को खुले तौर पर स्वीकार करते हैं, वह हमेशा से उस रूप में नहीं था.
1950 में भारत ने इजराइल को मान्यता तो दी, पर भारत की तरफ से ये निर्णय इजराइल की स्थापना के लगभग दो साल बाद लिया गया. जवाहरलाल नेहरू द्वारा दो साल की देरी से लिया गया यह निर्णय उस उलझन का परिणाम था, जो भारतीय नेताओं के मन में इजराइली रिश्तों के लिए चल रही थी. यहूदियों के प्रति मित्रतापूर्ण व्यवहार होने के बावजूद भारत को यहूदी राष्ट्र इजराइल से पूर्ण कूटनीतिक संबंध स्थापित करने में 42 साल लग गए.
अरब देशों के भारत के संबंध, भारत में मुसलमानों की बड़ी संख्या तथा फिलिस्तीन विवाद इसके मुख्य कारण थे. लेकिन इन सब परेशानियों के बावजूद जवाहरलाल नेहरू से लेकर मोरारजी देसाई तक सभी ने कृषि की उन्नति से लेकर राष्ट्रीय सुरक्षा तक इजराइल से निःसंकोच सहायता ली. भारत के साथ औपचारिक संबंध न होने के बावजूद इजराइल ने नेशनल सिक्योरिटी से लेकर फूड सिक्योरिटी तक अपना सहयोग दिया.
1965 के भारत-पाकिस्तान युद्ध बाद 1968 में रिसर्च एंड एनालिसिस विंग की स्थापना की गई. तब तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने रामेश्वर नाथ काओ को इजराइली इंटेलिजेंस एजेंसी मोसाद के साथ संबंध बनाने के लिए कहा. दोनों देशों के बीच नजदीकी इंटेलिजेंस संबंध राष्ट्रीय सुरक्षा की नजर से महत्वपूर्ण थे.
1977 में जनसंघ सरकार के कार्यकाल में दोनों देशों के बीच दोस्ती एक नई दिशा में बढ़ी. लगभग इसी समय इजराइल के विदेश मंत्री मोशे दयान (Moshe Dayan) ने भारतीय प्रतिनिधियों से मिलने के लिए नेपाल की गोपनीय यात्रा भी की. कई जानकारों का मानना है कि इस यात्रा का मुख्य उदेश्य पाकिस्तान के कठुआ स्थित यूरेनियम एनरिचमेंट प्लांट पर संयुक्त हमले की संभावनाओं पर विचार करना था. इसके परिणामस्वरूप पाकिस्तान को प्लांट की सुरक्षा में जमीन से हवा में मार करने वाली मिसाइलों को तैनात करना पड़ा. इजराइल के द्वारा इराक के परमाणु संयंत्र पर हमले ने इस भय को और भी बढ़ा दिया था.
यह वो समय था, जब अंतराष्ट्रीय राजनीति में बड़े-बड़े बदलाव हो रहे थे. ऐसे समय में भारत और इजराइल, दोनों देशों को एक-दूसरे के साथ की जरूरत थी. परिणामस्वरूप नेहरू और इंदिरा गांधी की फिलिस्तीन समर्थक नीति से एक कदम आगे बढ़कर राजीव गांधी ने इजराइल के प्रधानमंत्री से यूनाइटेड नेशन्स में मुलाकात की. राजीव गांधी के कार्यकाल में संयुक्त राष्ट्र की जनरल असेंबली की सालाना मीटिंग में भारत के प्रधानमंत्री का इजराइल के प्रधानमंत्री से मिलना दोनों देशों के संबंधों में बदलाव का परिचायक था.
ऐसा माना जाता है कि पाकिस्तानी परमाणु प्रोग्राम में तेजी से होती वृद्धि इस बदलाव के कुछ महत्वपूर्ण कारणों में से एक था.
1998 में भारतीय जनता पार्टी के सत्ता में आने के बाद दोनों देशों के बीच संबंध और भी मजबूत होते गए. कारगिल युद्ध के कठिन समय में इजराइल द्वारा भारत की सहायता ने संबंध को एक नए शिखर पर पहुंचाया.
रिश्ते की गाड़ी को 2003 में प्रधानमंत्री शेरॉन की भारत यात्रा ने एक नए युग में पहुंचा दिया. यह बात ध्यान देने योग्य है कि प्रधानमंत्री शेरॉन की यह यात्रा भारत द्वारा इजराइल को मान्यता देने के 53 साल बाद हुई. उस समय के भारतीय प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने प्रधानमंत्री शेरॉन शानदार स्वागत किया. दोनों ने दिल्ली स्टेटमेंट ऑन फ्रेंडशिप एंड कोऑपरेशन बिटविन इंडिया एंड इजराइल पर भी हस्ताक्षर किए.
पर्यावरण संरक्षण, ड्रग्स की रोकथाम, स्वास्थ्य, शिक्षा के क्षेत्र में सहयोग तथा आतंकवाद जैसे विषयों पर भी एग्रीमेंट किए गए. साथ ही राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए बेहद जरूरी बराक मिसाइल और फाल्कन (Phalcon Airborne Warning and Control Systems (AWACS) सिस्टम की खरीद पर विचार किया गया.
प्रधानमंत्री शेरोन की भारत यात्रा ने आने वाले समय में दोनों देशों के बीच सुरक्षा के क्षेत्र में एग्रीमेंट करने की संभावनाओं को और बढ़ा दिया. इस समय तक भारत अपनी स्पेशल फोर्सेस के लिए तावूर 21 (Tavor-21) असाल्ट राइफल तथा गलील (Galil) स्नाइपर राइफल खरीद रहा था. रेडिफ के अनुसार, शेरोन की भारत यात्रा के समय लालकृष्ण अडवाणी चाहते थे कि इजराइल भारत को 3,000 कमांडो वाला आतंकरोधी दस्ता बनाने में मदद करे.
इसी श्रृंखला में अक्टूबर, 2015 में राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने इजराइल की ऐतिहासिक यात्रा की. इस यात्रा के दौरान 10 अकादमिक, आर्थिक व सांस्कृतिक समझौतों पर हस्ताक्षर किए गए.
शिक्षा के क्षेत्र में जवाहरलाल नेहरू यूनिवर्सिटी के बेन गुरियन और हिब्रू यूनिवर्सिटी ऑफ जेरूसलम के साथ तीन MoU साइन किए किए गए. भारत के राष्ट्रपति की इजराइल यात्रा के लगभग एक साल बाद नवम्बर 2016 में इजराइल के राष्ट्रपति रिवेन रिवलिन ने भारत की यात्रा की. राष्ट्रपति अपने साथ डेलिगेट्स का एक बड़ा समूह लेकर आए, जिनमें शिक्षाविदों तथा डिफेन्स इंडस्ट्री के लोग भी शामिल थे.
यात्रा के दौरान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और राष्ट्रपति रिवेन रिवलिन ने कृषि और मैनजमेंट ऑ वाटर रिसोर्सेज पर एग्रीमेंट तथा MoU पर हस्ताक्षर किए. साथ ही रक्षा क्षेत्र में और आतंकवाद के खिलाफ सहयोग को और आगे बढ़ाने पर बल दिया गया.
भारत की रक्षा जरूरतों को पूरा करने में इजराइल ने एक महत्वपूर्ण भूमिका अदा की है. अभी तक इजराइल भारत को बराक 1, एयर कॉम्बेट मॉनिटरिंग सिस्टम, दवोरा MK 2 (dvora ) पेट्रोल बोट, सेअर्चेर मानवरहित विमान (UAV), नाइट विन कैमरे, लैसर गाइडेड बम, मिग उपग्रडिंग तकनीक, स्माल आर्म्स एंड एम्युनिशन, अर्ली वार्निग फॉल्कान रडार इत्यादि प्रदान कर चुका है.
साथ ही इजराइली IAI भारतीय नौसेना के लिए बराक 8 मिसाइलों के निर्माण में लगी है. यह मिसाइल रूसी ओब्सोलेट तकनीक की जगह लेगी. भारत-पाकिस्तान सीमाओं की सुरक्षा में भी इजराइली तकनीक का एक महत्वपूर्ण स्थान है. आने वाले समय में इजराइल द्वारा भारत को नई बॉर्डर मैनजमेंट तकनीक से लैस करने की भारी संभावनाएं हैं.
अपनी इजराइल यात्रा के दौरान गृहमंत्री राजनाथ सिंह ने इजराइली बॉर्डर पोस्ट पर जाकर नई बॉर्डर मैनजमेंट तकनीक का निरीक्षण भी किया था. यह पांच स्तरीय बॉर्डर मैनजमेंट तकनीक लाइन ऑफ कंट्रोल और इंटरनेशनल बॉर्डर पर होने वाली घुसपैठ पर लगाम लगाने में महत्वपूर्ण साबित हो सकती है. जम्मू-कश्मीर में होने वाली आतंकी घुसपैठ के मद्देनजर यह भारत के लिए प्रभावशाली है.
रक्षा सहयोग के अलावा दोनों देशों के बीच दिविपक्षीय संबंधों को मजबूत करने में कृषि और विज्ञान के क्षेत्र में सहयोग ने भी एक महत्वपूर्ण भूमिका अदा की है. भारत-इजरायल सहयोग के तहत आठ राज्यों में सेंटर फॉर एक्सिलेंस स्थापित किया जा चुका है, जिनमें सब्जियों, फूलों और फलों के उत्पादन में प्रौद्योगिकी के इस्तेमाल को प्रदर्शित किया जाता है. अब तक 15 सेंटर फॉर एक्सिलेंस की स्थापना देश के कई राज्यों में हो चुकी है, जिनमें हरियाणा और महाराष्ट्र शामिल हैं.
दोनों देशों के बीच मधुर संबंध होने के बावजूद अभी तक किसी भी भारतीय प्रधानमंत्री ने इजराइल की यात्रा नहीं की है. प्रधानमंत्री चुने जाने के बाद से नरेंद्र मोदी ने पूर्वी एशिया में कई मित्र देशों की यात्राएं की हैं, पर जेरूसलम अभी भी दूर है. उम्मीद है कि इस साल जून में प्रधानमंत्री मोदी इजराइल की यात्रा पर जा सकते हैं. अगर ऐसा हुआ, तो ये दोनों देशों के आपसी संबंधों को एक नई दिशा में ले जाएगा.
(जतिन कुमार जेएनयू के स्कूल ऑफ इंटरनेशनल स्टडीज में रिसर्च स्कॉलर हैं. इस आलेख में प्रकाशित विचार उनके अपने हैं. आलेख के विचारों में क्विंट की सहमति होना जरूरी नहीं है.)
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