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यूं तो किसी शहर में रैली का होना एक आम पॉलिटिकल घटना ही है, लेकिन पटना के जयप्रकाश नारायण एयरपोर्ट से बीर चंद पटेल मार्ग पर बने चाणक्य होटल की तरफ बढ़ते हुए मुझे महसूस होने लगा कि लालू प्रसाद यादव की ‘भाजपा भगाओ, देश बचाओ’ रैली उतनी भी आम नहीं है.
शहर के हर गली-चौराहे पर हरे रंग के बड़े-बड़े होर्डिंग्स की शक्ल में रैली के इश्तेहार लगे थे. राष्ट्रीय जनता दल के अध्यक्ष लालू यादव और उनके परिवार के अलावा ब्लॉक प्रमुखों और जिलाध्यक्षों सरीखे लोकल नेताओं के मुस्कुराते चेहरे पोस्टरों में देश बचाने की अपील कर रहे थे.
नये शहर में मेरा पहला खबरी था रामनिवास. एयरपोर्ट से ली गई प्री-पेड टैक्सी के ड्राइवर रामनिवास से मैंने पूछा- रामनिवास जी, रैली में भीड़ होगा क्या?
रामनिवास ने उखड़े अंदाज में जवाब दिया- भीड़ तो होना ही है सर. पैसा देकर ही ना लाना है पब्लिक.
लेकिन कई इलाकों में तो पब्लिक बाढ़ से परेशान है, वो क्यों आएंगे?- बिहार में आई भयंकर बाढ़ का जिक्र करते हुए मैंने बात आगे बढ़ाई.
लेकिन रामनिवास जी अपनी बात पर अडिग थे- अरे सर, इधर का पब्लिक ऐसा ही है. दो सौ रुपया मिल जाएगा, खाना मिल जाएगा और इस बहाने पटना शहर भी घूम लेंगे. है के नहीं?
लेकिन आगे की बातचीत में मैंने अंदाजा लगाया कि रामनिवास जनता दल यूनाइटेड यानी नीतीश कुमार खेमे के हैं और उनकी बातचीत में जानकारी से ज्यादा पॉलिटिकल खुंदक का पुट है. टैक्सी होटल की तरफ बढ़ रही थी. इस दौरान जब-जब मेरी नजर शीशे के बाहर सड़क पर गई, हरे रंग के होर्डिंग्स तैरते नजर आए.
पोस्टरों पर छाए 'तेजस्वी बाहुबली'
एक खास बात- ज्यादातर पोस्टरों पर लालू यादव से ज्यादा उनके बेटे और बिहार के पूर्व उपमुख्यमंत्री तेजस्वी यादव की तस्वीरें थीं. कई पोस्टरों पर उन्हें ‘बाहुबली’ की पोशाक में दिखाया गया था और 26 अगस्त को तो हैशटेग #BahubaliTejashwi बाकायदा ट्विटर पर ट्रेंड कर रहा था.
27 अगस्त, 2017 यानी रविवार का अगला दिन मेरे शक को यकीन में बदलने आया था. सुबह सात बजकर पचपन मिनट पर मैंने रैली-स्थल यानी पटना के एतिहासिक गांधी मैदान जाने के लिए ओला कैब बुक की. ड्राइवर अमरजीत कुमार ने फोन पर गांधी मैदान सुनते ही हाथ खड़े कर दिए- उधर नहीं जा पाएंगे सर, उधर गाड़ी नहीं जाने दे रहे.
खैर जनाब, मरता क्या ना करता. मैं होटल से बाहर निकला. बाहर निकलते ही मेरा सामना हुआ एक भारी भीड़ से. ‘गांधी मैदान जाना है, देश को बचाना है’ के नारों के साथ हर तरफ लोगों की भीड़ नजर आ रही थी.
होटल से आईटी चौराहे तक मुझे एक ऑटो ड्राइवर ने छोड़ा, 10 रुपये लेकर. वहां से मैंने डाकबंगला चौराहे की तरफ पैदल मार्च शुरू किया. सड़कों पर भारी बैरिकेटिंग के साथ पुलिस वालों की मौजूदगी और अलग-अलग इलाकों से आए लोगों की भीड़ मेरे साथ चल रही थी. आसमान में छाए बादल गर्मी से राहत दे रहे थे.
बापू के 70 फुट ऊंची मूर्ति वाले गांधी मैदान के 12 नंबर गेट से मैं अंदर घुसा, तो हर तरफ लोग ही लोग नजर आ रहे थे. उस वक्त तक नौ बज चुके थे और रैली शुरू होने का वक्त साढ़े ग्यारह का था. मैदान में बड़े-बड़े स्पीकर के अलावा लाइफ साइज एलईडी स्कीन लगे थे. लेकिन हर कोई स्टेज के नजदीक से नजदीक आना चाहता था. आलम ये कि मीडिया स्टैंड पर मौजूद करीब दो दर्जन कैमरे और 40-50 पत्रकारों को लोगों ने स्टेज के सामने धकेल मारा और खुद स्टैंड पर जम गए.
गरीब रैली, लाठी रैली, परिवर्तन रैली जैसी देसी टच रैलियां करने वाले लालू यादव की रैली में एक भारी-भरकम सोशल मीडिया टीम की मौजूदगी ध्यान खींच रही थी. ये सोशल मीडिया आर्मी कांग्रेस समर्थक के तौर पर टीवी बहसों में नजर आने वाले शहजाद पूनावाला की अगुवाई में काम कर रही थी. शहजाद ने बताया:
भीड़ में मौजूद भागलपुर से आई एक महिला ने मुझे बताया कि बाढ़ के बावजूद वो अपने पैसे खर्च करके रैली में आई है.
मुझे ये बताते वक्त उसके दांत भिंचे हुए थे.
दरभंगा से आया श्याम कुमार ये बताते वक्त बेहद गुस्से में नजर आ रहा था.
महात्मा गांधी से जयप्रकाश नारायण और सुभाषचंद्र बोस से मोहम्मद अली जिन्ना तक के जमावड़ों का गवाह रहा गांधी मैदान आधे से ज्यादा भर चुका था. लोगों से बात करने पर मुझे अंदाजा लगा कि भीड़ में लालू के एम-वाई (मुस्लिम-यादव) वोटबैंक के अलावा ओबीसी और दलित-महादलित भी अच्छी खासी तादाद में हैं.
हालांकि बाद में लालू प्रसाद यादव के ट्विटर हैंडल से जारी हुई भीड़ की एक फोटो ने सोशल मीडिया पर खासा बवाल मचाया और भीड़ को लेकर असमंजस पैदा कर दिया.
‘भाजपा भगाओ, देश बचाओ रैली’ का ऐलान लालू यादव ने नीतीश कुमार से गठबंधन टूटने से पहले किया था. उस वक्त इस रैली को बीजेपी के खिलाफ विपक्षी एकता का दबाव मापने के बैरोमीटर की तरह देखा गया. नीतीश के बीजेपी में जाने से इस मुहिम को धक्का लगा. बहुजन समाज पार्टी की अध्यक्ष मायावती ने भी आने से मना कर दिया. सोनिया और राहुल गांधी ने भी खुद आने के बजाए अपने नुमाइंदे भेजने की बात कह दी.
लेकिन मंच पर समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष अखिलेश यादव और तृणमूल सुप्रीमो ममता बनर्जी जैसे क्षेत्रीय क्षत्रपों के साथ डेढ़ दर्जन पार्टियों के नेताओं की मौजूदगी रैली की फीकी पड़ी चमक को संभालने का काम कर रही थी. मुझे हैरानी उस वक्त हुई, जब जेडीयू के बागी नेता शरद यादव के स्टेज पर आते ही मैदान तालियों से गूंज उठा. तो क्या जेडीयू के वोट बैंक में शरद अब भी कोई कीमत रखते हैं. क्या उनके लालू खेमे में जाने से नीतीश का वोटबैंक टूटेगा?
मुझे तेजस्वी यादव के भाषण का इंतजार था. मैं देखना चाहता था कि खुद को नीतीश और बीजेपी की चाल का शिकार बताकर सहानुभूति लेने की कोशिश रहे छोटे यादव में कितना दम है. राबड़ी देवी, मीसा यादव और तेजप्रताप यादव के साथ स्टेज पर मौजूद लालू परिवार के पांच सदस्यों में से सबसे पहला भाषण तेजस्वी ने ही दिया.
परिवार पर लगे भ्रष्टाचार के आरोप और जांच एजेंसियों के शिकंजे पर जवाब देते हुए तेजस्वी ने स्टेज से एलान किया:
लालू यादव ने भी अपने भाषण में बार-बार तेजस्वी का जिक्र किया.
इसके बाद अखिलेश यादव, ममता बनर्जी, गुलाम नबी आजाद, हेमंत सोरेन, बाबूलाल मरांडी सरीखे नेताओं ने बीजेपी विरोधी सेक्युलर मोर्चा बनाने की जरूरत पर ताल ठोकी.
इस रैली के जरिये लालू यादव का एक मकसद ये बताना था कि वो आरजेडी की लालटेन तेजस्वी को ही थमाना चाहते हैं. उनका ये संदेश तो लोगों तक पहुंच गया है, लेकिन अब जिम्मेदारी तेजस्वी यादव की है, वो विपक्ष के खाली स्पेस का फायदा किस हद तक उठा पाते हैं.
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