Home Created by potrace 1.16, written by Peter Selinger 2001-2019Voices Created by potrace 1.16, written by Peter Selinger 2001-2019Citizenq Created by potrace 1.16, written by Peter Selinger 2001-2019विश्व हिंदी दिवस 2020: बहुत याद आते हैं राममनोहर लोहिया

विश्व हिंदी दिवस 2020: बहुत याद आते हैं राममनोहर लोहिया

सोशल मीडिया और WhatsApp के जमाने में बढ़ी हिंदी की धमक

राजू पाण्डेय
सिटिजनQ
Updated:


एक स्टडी के मुताबिक, अमेरिकी डॉक्टर्स के बीच बोली जाने वाली दूसरी सबसे बड़ी गैर-इंग्लिश भाषा हिंदी है
i
एक स्टडी के मुताबिक, अमेरिकी डॉक्टर्स के बीच बोली जाने वाली दूसरी सबसे बड़ी गैर-इंग्लिश भाषा हिंदी है
(सांकेतिक तस्‍वीर: iStock)

advertisement

हिंदी को विश्व भाषा के रूप में प्रतिष्ठित करने का संकल्प ही विश्व हिंदी दिवस के आयोजन का आधार है. पूर्व प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह ने 10 जनवरी 2006 को हर साल विश्व हिंदी दिवस के आयोजन की घोषणा की थी. 10 जनवरी इसलिए, क्योंकि दुनियाभर में हिंदी के प्रचार प्रसार के लिए होने वाले विश्व हिंदी सम्मेलनों की शुरुआत 10 जनवरी 1975 को नागपुर में हुई थी.

ऐसी बहुत सी बातें हैं जिन्हें लेकर हिंदी प्रेमी गर्व कर सकते हैं.

  • हिंदी विश्व की सबसे ज्यादा बोली जाने वाली भाषाओं में से एक है. विवाद सिर्फ इस बात पर है कि यह किस क्रम पर है
  • रामचरित मानस और प्रेमचंद साहित्य के अनुवाद पूरी दुनिया में लोकप्रिय हैं
  • हिंदी फिल्में और उनका गीत संगीत पूरी दुनिया को दीवाना बनाता रहा है
  • विश्व के 40 देशों के 600 से भी ज्यादा विश्वविद्यालयों और कॉलेजों में हिंदी पढ़ाई जाती है
  • मॉरीशस, फिजी, नेपाल, श्रीलंका, संयुक्त अरब अमीरात, संयुक्त राज्य अमेरिका, रूस, चीन, नार्वे, फिनलैंड, हंगरी, बेल्जियम, जापान, इटली, दक्षिण अफ्रीका, सूरीनाम और कई अफ्रीकी देशों में हिंदी का पठन- पाठन हो रहा है
  • इन देशों में हिंदी के पाठकों और लेखकों की एक बड़ी संख्या है

लेकिन विडंबना है कि हमारे देश में जो नियम-कायदे बनाते हैं, जो फैसले लेते हैं उनकी भाषा अंग्रेजी ही है. भारतीय राजनीति का बेबाक और बिंदास चेहरा रहे राममनोहर लोहिया ने 60 साल पहले ही इस स्थिति को भांप लिया था. उन्होंने लोकसभा में पुरजोर लहजे में अपनी बात रखते हुए कहा था:

अंग्रेजी को खत्म कर दिया जाए. मैं चाहता हूं कि अंग्रेजी का सार्वजनिक प्रयोग बंद हो, लोकभाषा के बिना लोक राज्य असंभव है. कुछ भी हो अंग्रेजी हटनी ही चाहिये, उसकी जगह कौन सी भाषाएं आती हैं यह प्रश्न नहीं है. हिन्दी और किसी भाषा के साथ आपके मन में जो आए सो करें, लेकिन अंग्रेजी तो हटना ही चाहिये और वह भी जल्दी. अंग्रेज गये तो अंग्रेजी चली जानी चाहिये.
राममनोहर लोहिया

लोहिया का ‘अंग्रेजी हटाओ’ आंदोलन

लोहिया जानते थे कि विधायिका, कार्यपालिका और न्यायपालिका में अंग्रेजी का प्रयोग आम जनता की प्रजातंत्र में शत प्रतिशत भागीदारी के रास्ते का रोड़ा है. उन्होंने इसे सामंती भाषा बताते हुए इसके प्रयोग के खतरों से बारंबार आगाह किया और बताया कि यह मजदूरों, किसानों और शारीरिक श्रम से जुड़े आम लोगों की भाषा नहीं है. उन्होंने लिखा:

हर भाषा से शब्द अपना कर ही हिंदी बनेगी और ताकतवर(फोटो: Altered by The Quint)
यदि सरकारी और सार्वजनिक काम ऐसी भाषा में चलाये जाएं, जिसे देश के करोड़ों आदमी न समझ सकें, तो यह केवल एक प्रकार का जादू-टोना होगा.
राममनोहर लोहिया

अफसोस की बात है कि लोहिया के अंग्रेजी हटाओ आंदोलन (1957) को हिंदी का वर्चस्व स्थापित करने की कोशिश के तौर पर देखा गया. जबकि लोहिया ने बार-बार यह स्पष्ट किया कि अंग्रेजी हटाओ का अर्थ हिंदी लाओ कदापि नहीं है. उन्होंने क्षेत्रीय भाषाओं की उन्नति और उनके प्रयोग की खुल कर वकालत की. उनके अनुसार अंग्रेजी हटाओ का अर्थ मातृभाषा लाओ था.

लोहिया जिस 7 लाख शब्दों वाली हिंदुस्तानी की वकालत करते थे वह संस्कृत शब्दों की जटिलता से युक्त हिंदी और दुरूह फारसी शब्दों से भरी पड़ी उर्दू से कहीं अलग आम अवाम की जबान थी.
ADVERTISEMENT
ADVERTISEMENT

14 सितम्बर 1949 में हिंदी को संविधान सभा ने राजभाषा का दर्जा तो दे दिया लेकिन जब 26 जनवरी 1950 को देश लोकतंत्रात्मक गणराज्य बना तो ये फैसला लिया गया कि 1965 तक राज्यों के भीतर हिंदी के साथ साथ अंग्रेजी को भी संपर्क भाषा बनाए रखा जाए.

लेकिन 15 वर्ष पूरे होने से पहले, दक्षिण भारतीय राज्यों में लंबे समय से चल रहे हिंसक और उग्र हिंदी विरोधी आंदोलन के कारण सरकार ने 24 जनवरी 1965 को घोषणा की कि हिंदी के साथ अंग्रेजी भविष्य में भी संपर्क भाषा बनी रहेगी.

हिंदी की बढ़ती ताकत

आज हिंदी विश्व भाषा का रूप लेती दिखती है तो इसका कारण इसमें बाजार की बढ़ती दिलचस्पी है. भारतीय ग्राहकों पर विश्व बाजार की नजर है.

गूगल, ट्रांसलेशन, ट्रांस्लिटरेशन, फोनेटिक टूल्स आदि के क्षेत्र में नई नई रिसर्च कर अपनी सेवाओं को बेहतर कर रहा है. हिंदी और भारतीय भाषाओं की पुस्तकों का डिजिटलाइजेशन जारी है. फेसबुक और व्हाट्स एप हिंदी और भारतीय भाषाओं के साथ तालमेल बिठा रहे हैं. यही हाल माइक्रोसॉफ्ट का है.

मोबाइल कंपनियां ऐसे हैंडसेट्स बना रही हैं जो हिंदी और भारतीय भाषाओं को सपोर्ट करते हैं. बहुराष्ट्रीय कंपनियां हिंदी जानने वाले कर्मचारियों को वरीयता दे रही हैं. हॉलीवुड की फिल्में हिंदी में डब हो रही हैं और हिंदी फिल्में देश के बाहर देश से अधिक कमाई कर रही हैं. हिंदी, विज्ञापन उद्योग की पसंदीदा भाषा बनती जा रही है.

सोशल मीडिया ने हिंदी में लेखन और पत्रकारिता के नए युग का सूत्रपात किया है और कई जनांदोलनों को जन्म देने और चुनाव जिताने-हराने में उल्लेखनीय और हैरान करने वाली भूमिका निभाई है. हिंदी भाषा के इस बढ़ते प्रभाव के बीच हिंदी भाषा के रक्षक लोहिया बहुत याद आते हैं.

(राजू पांडेय छत्तीसगढ़ के रहने वाले हैं. ये समसामयिक विषयों पर लिखते हैं. इस आर्टिकल में छपे विचार उनके अपने हैं. इसमें क्‍व‍िंट की सहमति होना जरूरी नहीं है)

(क्विंट हिन्दी, हर मुद्दे पर बनता आपकी आवाज, करता है सवाल. आज ही मेंबर बनें और हमारी पत्रकारिता को आकार देने में सक्रिय भूमिका निभाएं.)

Published: 10 Jan 2018,06:52 PM IST

ADVERTISEMENT
SCROLL FOR NEXT