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अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन पद संभालने के बाद अपनी पहली पश्चिम एशिया यात्रा पर इजरायल गए. वो वेस्ट बैंक भी गए और फिलिस्तिनियों के साथ एक संयुक्त बयान भी दिया. थोड़ी सी आर्थिक मदद का भी ऐलान किया. उन्होंने फिलिस्तिनियों के लिए अलग राज्य और इजरायल और फिलिस्तीन के बीच शांति की पैरवी की. लेकिन शांति प्रक्रिया की राह क्या होगी, अभी साफ नहीं है.
इजरायल के बाद बाइडेन जेद्दा, सऊदी अरब पहुंचे. यहां उन्होंने एक क्षेत्रीय अरब शिखर सम्मेलन में शिरकत की. इस सम्मेलन में सऊदी अरब के अलावा कुवैत, संयुक्त अरब अमीरात, ओमान, बहरीन, कतर, इराक, जॉर्डन और इजिप्ट के नेता भी पहुंचे. पद संभालने के 18 महीने बाद बायडेन की यात्रा नियत की गई थी. व्हाइट हाउस के अधिकारियों के बयानों से पता चलता है कि इस यात्रा के निम्नलिखित मकसद हैं
इजरायल को इस क्षेत्र से और जोड़ने में मदद करना.
सऊदी अरब और यमन के बीच लंबे समय तक चलने वाले युद्धविराम को मजबूत करना
ईरान के साथ रुके हुए परमाणु समझौते पर सऊदी अरब, इजरायल और पश्चिम एशिया के दूसरे भागीदारों को एक साथ खड़ा करना
और इस क्षेत्र में चीन और रूस के असर को कम करना.
यरुशलम की यात्रा के बाद बायडेन वेस्ट बैंक के शहर रामल्लाह में फ़िलिस्तीनी अथॉरिटी के अध्यक्ष महमूद अब्बास से मिले. यहां उन्होंने फिलिस्तिनियों के लिए 316 मिलियन डॉलर की मदद का ऐलान किया. लेकिन शांति वार्ता का कोई रोडमैप फिलहाल नजर नहीं आ रहा. यह वार्ता अप्रैल 2014 से थमी हुई है जब तेल अवीव ने बस्तियों के निर्माण को रोकने, फिलिस्तीनी बंदियों को रिहा करने और दो-राज्यों के समाधान से इनकार कर दिया था.
2020 में राष्ट्रपति कैंपेन के दौरान बायडेन ने कहा था कि वह फिलिस्तीनियों की सुरक्षा, आर्थिक विकास और मानवीय सहायता पर केंद्रित कार्यक्रमों को वित्तीय मदद देंगे और ट्रंप ने जिस तरह फिलिस्तानी अथॉरिटी से कूटनीतिक संबंध तोड़े हैं, उसे बहाल करेंगे.
बायडेन की टीम ने निम्नलिखित बिंदुओं के साथ फिलिस्तीनी-इजरायल संघर्ष और उसके समाधान की बात कही थी:
बायडेन हर फिलीस्तीनी और हर इजरायली की कीमत समझते हैं. वह यह सुनिश्चित करने के लिए काम करेंगे कि फिलिस्तीनियों और इजरायलियों को स्वतंत्रता, सुरक्षा, समृद्धि और लोकतंत्र का आनंद मिले.
उनकी नीतियां दो-राष्ट्र समाधान की प्रतिबद्धता पर आधारित होंगी, जिसमें इजरायल और भविष्य का फिलिस्तीन राज्य शांति और सुरक्षा के साथ जिए और एक दूसरे को मान्यता दे.
वह ऐसे किसी भी एकतरफा कदम का विरोध करते हैं जो दो राज्यों के समाधान को कमजोर करता है. बायडेन विलय और बस्तियों के विस्तार का विरोध करते हैं और राष्ट्रपति के तौर पर भी ऐसा ही करते रहेंगे.
वह अमेरिकी कानून के मद्देनजर फिलिस्तीनियों को आर्थिक और मानवीय सहायता बहाल करने के लिए तत्काल कदम उठाएंगे जिसमें शरणार्थियों को सहायता देना शामिल है और गाजा के मानवीय संकट को दूर करने के लिए काम करेंगे.
पूर्वी यरुशलम में अमेरिकी वाणिज्य दूतावास को फिर से खोला जाएगा.
वाशिंगटन में पीएलओ मिशन को फिर से खोलने के लिए काम करेंगे.
लेकिन राष्ट्रपति बायडेन ने डोनाल्ड ट्रंप की नीति में कोई बड़ा बदलाव नहीं किया, और वह फिलिस्तीनियों के लिए जुबानी जमा खर्च करते रहे.
यह सच है कि उनके प्रशासन ने 2021 में फिलिस्तीनी शरणार्थियों के लिए संयुक्त राष्ट्र एजेंसी (यूएनआरडब्ल्यूए) को वित्तीय मदद बहाल कर दी थी, जिसे 2018 में ट्रंप ने रोक दिया था. अमेरिका यूएनआरडब्ल्यूए का सबसे बड़ा डोनर है. लेकिन इसके अलावा बायडेन ने फिलिस्तीनियों को किया कोई भी वादा पूरा नहीं किया. उन्होंने शांति वार्ता फिर से शुरू करने की बात कही थी लेकिन इस सिलसिले में कोई प्रगति नहीं हुई है.
जब ट्रंप राष्ट्रपति थे, तब अमेरिका ने पूर्वी यरुशलम में अपने वाणिज्य महादूतावास को बंद कर दिया, जो फिलिस्तीनी अथॉरिटी तक वॉशिंगटन की पहुंच का मुख्य केंद्र था. ट्रंप ने इसका विलय अमेरिकी दूतावास के साथ कर दिया था. दूतावास को तेल अवीव से यरुशलम में रीलोकेट करने के मद्देनजर यह कदम उठाया गया था.
26 मई, 2021 को अधिकृत वेस्ट बैंक के रामल्लाह में फिलिस्तीनी अथॉरिटी के अध्यक्ष महमूद अब्बास के साथ एक संयुक्त न्यूज कांफ्रेंस के दौरान, अमेरिकी विदेश मंत्री एंटनी ब्लिंकन ने कहा था:
ब्लिंकन ने विशेष रूप से कहा कि अमेरिका फिलिस्तीनी लोगों के लिए यरुशलम में वाणिज्य दूतावास को फिर से खोलेगा. उन्होंने मानवीय सहायता देने का वचन दिया था, जिसमें गाजा के लिए 55 लाख यूस डॉलर्स की तत्काल आपदा सहायता और संयुक्त राष्ट्र राहत और कार्य एजेंसी के लिए 3.2 करोड़ अमेरिकी डॉलर्स की आपातकालीन फंडिंग शामिल है.
जहां तक फिलिस्तीनियों का संबंध है, बायडेन ने अपने वादे नहीं निभाए. उन्होंने अपनी चुप्पी तब भी नहीं तोड़ी, जब प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू और उनके बाद नफ्ताली बेनेट के कार्यकाल के दौरान अधिकृत फिलिस्तीनी क्षेत्रों में अवैध निर्माण जारी रहा, जबकि सभी उन दोनों के नजरिये से वाकिफ थे.
पिछले तीन महीनों में इजराइली सैन्य बलों ने 60 से ज्यादा फिलिस्तीनियों को मौत के घाट उतारा है. लेकिन बायडेन ने हत्याओं की निंदा नहीं की. 11 मई को वेस्ट बैंक के शहर जेनिन में अल जजीरा की रिपोर्टर शिरीन अबू अकलेह की निर्मम हत्या को कौन भूल सकता है? फिलिस्तीनी-अमेरिकी पत्रकार शिरीन को तब गोली मारी गई थी, जब जब वह फिलिस्तीनियों पर इजरायली हमले की रिपोर्ट कर रही थीं
बायडेन और उनके प्रशासन ने इस हत्या की भत्सर्ना नहीं की, बल्कि बहुत होशियारी से इसे आंकने की कोशिश करता हुए एक बयान जारी किया. इसमें कहा गया कि इजरायल के ठिकानों से गोलियां "शिरीन अबू अकलेह की मौत के लिए जिम्मेदार थीं". हालांकि उसने इस हादसे को यह कहते हुए खारिज कर दिया कि यह अनजाने में "दुखद हालात का नतीजा" है.
जब से बाइडेन ने कुर्सी संभाली है, इजरायल ने अपनी हरकतें बढ़ाई हैं. वह फिलिस्तीनी घरों को बड़ी मात्रा में नुकसान पहुंचा रहा है और बस्तियां बढ़ाता जा रहा है. इस साल के पहले छह महीनों में, इजरायल ने अधिकृत वेस्ट बैंक की अवैध बस्तियों में 4,427 हाउसिंग यूनिट्स को मंजूरी दी है.
पूर्वी यरुशलम सहित अधिकृत वेस्ट बैंक में 1,269 घरों-दफ्तरों-इमारतों को तोड़ा गया है जिसके चलते कुल 1,657 लोग विस्थापित हुए थे.
नॉर्वेजियन रिफ्यूजी काउंसिल (एनआरसी) के एक हालिया विश्लेषण में कहा गया है कि जनवरी 2021 में बाइडेन राष्ट्रपति की कुर्सी पर बैठे हैं और तब से लेकर अब तक इजरायल ने हर दिन औसतन तीन फिलिस्तीनियों को विस्थापित किया है.
फिलिस्तीनी राष्ट्रपति महमूद अब्बास के फतह गुट के प्रवक्ता ओसामा अल कावस्मी ने उम्मीद जताई थी कि यह यात्रा एक राजनीतिक प्रक्रिया को आगे बढ़ा सकती है जो इजरायल के कब्जे को खत्म कर सकती है.उन्होंने कहा था कि राष्ट्रपति महमूद अब्बास ने अमेरिकी प्रशासन से दो-राज्य समाधान को आगे बढ़ाने के लिए सार्थक कदम उठाने का आह्वान किया है.
हालांकि, फिलीस्तीनी लिबरेशन ऑर्गनाइजेशन (पीएलओ) के एक अधिकारी, वासेल अबो यूसुफ का कहना था कि उन्हें कोई उम्मीद नहीं कि इस दौरे का कोई राजनीतिक नतीजा निकलेगा. उन्होंने कहा-“अमेरिका हमेशा से इजरायल सरकार का समर्थन करता है. उसके अपराधों को ढंकता-मूंदता रहा है.
फिलिस्तीनी नागरिक भी यह दोहराते हैं. गाजा के फाडी खलील का कहना था कि फिलिस्तीनी लोगों के पास वह जरिया नहीं कि वे बाकी देशों पर दबाव डालें कि उनकी बात सुनी जाए. उनके मुताबिक, अमेरिकी राष्ट्रपति की यात्रा एक दस्तूर जैसी है. वह और कुछ नहीं करेंगे, बस आर्थिक सहायता दे देंगे.
बाइडेन की यात्रा का एक ही मकसद था- पश्चिम एशिया में एक सैन्य गठबंधन बनाना. इसमें इजरायल और अरब देश शामिल हैं ताकि ईरान से मुकाबला किया जा सके. इसके अलावा इजरायल और दूसरे अरब देशों के रिश्ते सामान्य हो सकें. यह बात और है कि इसकी कीमत फिलिस्तीनियों को चुकानी पड़ सकती है.
(लेखक कतर के द पेनिनसुला न्यूजपेपर के सीनियर एडिटर हैं. इस लेख में व्यक्त विचार लेखक के अपने हैं. क्विंट न तो इसका समर्थन करत है और न ही इसके लिए जिम्मेदार है.)
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