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तृणमूल कांग्रेस (TMC) की नेता महुआ मोइत्रा जब से पश्चिम बंगाल के कृष्णानगर से सांसद बनी हैं, तब से वह लगातार लोकसभा में अपने जोरदार भाषणों के लिए जानी जाती हैं. जब उन्होंने सदन के पटल पर अपना पहला आक्रामक भाषण दिया था, तब उन्होंने हलचल पैदा कर दी थी. उस उग्र भाषण में मोइत्रा ने 'फासीवाद के सात लक्षण' की ओर इशारा किया और यह दिखाने का प्रयास किया कि केंद्र की भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) सरकार किस तरह से उस (फासीवाद) रास्ते पर चल रही है.
महुआ मोइत्रा ने इस हफ्ते की शुरुआत में एक बार फिर नरेंद्र मोदी सरकार की तीखी आलोचना की है. इस बार इसमें एक दिलचस्प मोड़ आया. सरकार के ही आंकड़ों (अक्टूबर में औद्योगिक उत्पादन 4 प्रतिशत कम होकर 26 महीने के निचले स्तर पर पहुंच गया था और विदेशी मुद्रा भंडार एक साल के भीतर 72 बिलियन यूएस डॉलर गिर गया था) पर ध्यान आकर्षित करते हुए मोइत्रा ने सरकार का मजाक उड़ाते हुए पूछा, "अब पप्पू कौन है?"
इसमें कोई शक नहीं है कि "पप्पू" बीजेपी का पसंदीदा शब्द है, जोकि पार्टी द्वारा राहुल गांधी के लिए गढ़ा गया है, जो उनकी (राहुल की) तथाकथित अक्षमता और असंबद्धता को व्यक्त करने के लिए बुना गया था. वहीं अब मोइत्रा ने भी कहा कि सत्ताधारी पार्टी ने इस शब्द को "बदनाम करने, अत्यधिक अक्षमता को दर्शाने" के लिए गढ़ा था. इसके बाद मोइत्रा ने एक के बाद एक आंकड़ों का हवाला देते हुए यह सिद्ध करने का प्रयास किया कि सही मायने में यह बीजेपी के नेतृत्व वाली केंद्र सरकार है, जो बेजोड़ अक्षमता और अयोग्यता का प्रदर्शन कर रही है, इसलिए असल में वो खुद 'पप्पू' है.
अगर आपने अपनी आंखें बंद करके इस भाषण को सुना तो आप यह सोचने की गलती कर सकते हैं कि यह स्पीच टीएमसी के बजाय किसी कांग्रेस सांसद द्वारा लिखी और प्रस्तुत की गई. ये गलती इसलिए हो सकती है क्योंकि यह बीजेपी पर एक जोरदार हमला था, जिसमें राहुल गांधी को "पप्पू" बताने का विरोध किया गया था. (वहीं एक बात यह भी है कि इस समय कांग्रेस में ऐसा कोई नजर नहीं आता जो इतनी उग्र स्पष्टता, अधिकार और वाकपटुता से सरकार पर सवाल उठा सके और उस पर हमला कर सके.)
आप में से किसी को यह बात आश्चर्य में डाल सकती है. लेकिन यह कोई नई बात नहीं है. इस साल की शुरुआत में टीएमसी महासचिव और बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के भतीजे अभिजीत बनर्जी से एक वित्तीय घोटाले में उनकी कथित संलिप्तता के संबंध में जब प्रवर्तन निदेशालय (ED) ने कई घंटों तक पूछताछ की थी तब उन्होंने ( अभिजीत बनर्जी ने) गृह मंत्री अमित शाह को "भारत का सबसे बड़ा पप्पू" कहा था. उसके बाद, टीएमसी के कई नेताओं को अमित शाह की तस्वीर वाली टी-शर्ट पहने और "भारत का सबसे बड़ा पप्पू" नारा लिखे हुए देखा गया.
इसलिए, मोइत्रा का भाषण वास्तव में बनर्जी की कथित "पप्पू" कहानी को आगे बढ़ा रहा होगा. वाकई में, पार्टी प्रवक्ता डेरेक ओ ब्रायन सहित कई टीएमसी नेताओं ने उनके भाषण की प्रशंसा की है.
यह सवाल काल्पनिक हो सकता है, लेकिन हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि लोकसभा में अपनी उग्र और भड़कीली उपस्थिति के बावजूद, ऐसा लगता है कि हाल ही में मोइत्रा टीएमसी के शीर्ष नेताओं के उतने करीब नहीं रही हैं. मोइत्रा ने इस साल जुलाई में एक मूवी पोस्टर (जिसमें देवी काली की एक सिगरेट पीते हुए तस्वीर दिखाई गई थी) पर एक सवाल पर प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए कहा था कि बंगाल में, देवी "मांस खाने वाली और शराब को स्वीकार करने वाली" थीं. जब बीजेपी और हिंदुत्व ब्रिगेड ने देवी-देवताओं के अपमान का रोना रोया और मोइत्रा के खिलाफ "धार्मिक भावनाओं को आहत करने" के लिए कई मामले दर्ज किए, तो टीएमसी ने खुद को मोइत्रा की टिप्पणी से दूर कर लिया था.
उस समय मोइत्रा को जरूर यह लगा होगा कि उनके एक बयान के लिए, जिसकी सच्चाई हर बंगाली जानता है, उनकी खुद की पार्टी (टीएमसी) ने उनसे किनारा कर लिया. हालांकि जब मोइत्रा पर हर तरफ से हमला किया गया तब उन्होंने सभी को चुनौती देते हुए कहा था "यह सही है! अगर गलत है तो आप साबित कीजिए."
दिसंबर 2021 में टीएमसी मीटिंग का एक वीडियो सोशल मीडिया पर जमकर वायरल हुआ, वीडियो में ममता को मोइत्रा पर चिल्लाते और यह कहते हुए दिखाया गया कि पार्टी तय करेगी कि कौन चुनाव लड़ेगा और कौन नहीं. "हमारे बीच विचारों को लेकर कोई असहमति नहीं होनी चाहिए, सभी को मिलकर काम करना चाहिए." ममता की टिप्पणियों का सही मायने में संदर्भ क्या था, भले ही यह किसी को न पता हो, लेकिन उनके तीखे तेवर से यह स्पष्ट हो गया था कि वह मोइत्रा से नाखुश थीं.
गोवा विधान सभा चुनाव में मोइत्रा को नवंबर में टीएमसी की गोवा इकाई का इंचार्ज बनाया गया था, लेकिन राज्य में चुनाव से पहले ही इस साल की शुरुआत में उन्हें उस पद से हटा दिया गया था.
टीएमसी के सूत्रों का कहना है कि अपनी सभी उपलब्धियों के बावजूद मोइत्रा का व्यक्तित्व अक्खड़ है, वे लोगों से ठीक से इंटरैक्ट नहीं कर सकती हैं. हालांकि वह संसद में उपयोगी हो सकती हैं. लोकसभा में टीएमसी के नेता सुदीप बंद्योपाध्याय भी हैं, लेकिन वे चुटीले भाषणों और आक्रामक हस्तक्षेपों के लिए नहीं जाने जाते हैं. जाहिर तौर पर ऐसा प्रतीत होता है कि उन्हें (महुआ को) यह बताया गया हो कि खुद को आगे बढ़ाने के बजाय अपने निर्वाचन क्षेत्र पर ध्यान देना चाहिए.
हालांकि मोइत्रा कांग्रेस में एंट्री करने के बाद जल्द ही, टीएमसी में शामिल हो गई थीं. शायद वे यह महसूस कर रही थीं कि ममता बंगाल में बढ़ रही हैं. 2011 में टीएमसी सत्ता में आई थी, जबकि कांग्रेस गिरावट की स्थिति में थी.
पिछले दस वर्षों से भी अधिक समय बीतने के बाद, बंगाल में कांग्रेस का सितारा ज्यादा धूमिल हुआ है यानी उसकी स्थिति और खराब हुई है. 2019 के लोकसभा चुनावों में कांग्रेस पार्टी ने बंगाल में सिर्फ दो सीटों पर जीत हासिल की थी जबकि 2021 के बंगाल विधानसभा चुनावों में कांग्रेस के खाते में एक भी सीट नहीं आयी थी.
शायद यही वह वजह या तर्क हो सकता है कि भले ही महुआ मोइत्रा टीएमसी में उपेक्षित और अपमानित महसूस कर रही हों और कांग्रेस में जाने पर विचार कर सकती हों लेकिन वह अच्छी तरह जानती हैं कि वह कांग्रेस के टिकट पर एक भी सीट नहीं जीत पाएंगी.
अगर मोइत्रा की "पप्पू" वाली स्पीच में जितना दिख रहा है बात उससे कहीं अधिक है, तो आने वाले दिनों में उस रहस्य से पर्दा उठेगा. राजनीति बहुत ही लचीला और आकार बदलने वाला खेल है (कौन अंदाजा लगा सकता था कि खुद टीएमसी प्रमुख अचानक से आरएसएस की प्रशंसा करने लगेंगी और नरेंद्र मोदी पर हमला करने से बचने लगेंगी?). राजनीति एक ऐसा खेल है जहां कभी भी, कुछ भी हो सकता है और किसी भी तरह के योग बन सकते हैं. हालांकि महुआ मोइत्रा बुद्धिमान, चतुर और महत्वाकांक्षी हैं, वे परिस्थितियों का विश्लेषण कर सकती हैं और ठीक ढंग से अपने पत्ते खेलना जानती हैं.
(शुमा राहा, एक पत्रकार और लेखिका हैं. वह @ShumaRaha से ट्वीट करती हैं. इस लेख में व्यक्त किए गए विचार लेखक के अपने हैं. क्विंट न तो इसका समर्थन करता है और न ही इसके लिए जिम्मेदार है.)
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