मेंबर्स के लिए
lock close icon
Home Created by potrace 1.16, written by Peter Selinger 2001-2019Voices Created by potrace 1.16, written by Peter Selinger 2001-2019Opinion Created by potrace 1.16, written by Peter Selinger 2001-2019राजद्रोह पर लॉ कमीशन की रिपोर्ट व्यक्तिगत स्वतंत्रता को खतरे में डालती है

राजद्रोह पर लॉ कमीशन की रिपोर्ट व्यक्तिगत स्वतंत्रता को खतरे में डालती है

10 वर्षों में जिन 10,938 भारतीयों पर राजद्रोह के आरोप लगाए गए हैं, उनमें से 65% पर मई 2014 के बाद आरोप लगाए गए हैं.

कुमार कार्तिकेय
नजरिया
Published:
<div class="paragraphs"><p>लॉ कमीशन की राजद्रोह पर रिपोर्ट व्यक्तिगत स्वतंत्रता को खतरे में डालती है</p></div>
i

लॉ कमीशन की राजद्रोह पर रिपोर्ट व्यक्तिगत स्वतंत्रता को खतरे में डालती है

फोटो : द क्विंट

advertisement

हाल ही में 22वें लॉ कमीशन (22nd Law Commission) ने सुझाव दिया है कि भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 124A, जोकि राजद्रोह से संबंधित है, को बरकरार रखा जाए और इस अपराध के लिए न्यूनतम सजा तीन साल से बढ़ाकर सात साल की जेल की जाए.

हालांकि, लॉ कमीशन की रिपोर्ट केंद्र के हितों को आगे बढ़ाने या उसका समर्थन करने का एक साधन हो सकती है, जो प्रशासनिक कारणों के बजाय राजनीतिक कारणों से औपनिवेशिक युग के कानून को बनाए रखने का विकल्प चुन सकती है.

इसमें भारत में व्यक्तिगत स्वतंत्रता की मौलिक अवधारणा को नष्ट करने की भी क्षमता है.

कुछ प्रमुख चिंताएं

लॉ कमीशन की सिफारिश में केदार नाथ सिंह बनाम बिहार (Kedar Nath Singh v. Bihar) में सुप्रीम कोर्ट के फैसले को शामिल किया गया है, जिस फैसले में कहा गया कि यह प्रावधान केवल उन मामलों में लागू किया जा सकता है जहां कथित देशद्रोही कृत्यों से हिंसा या सार्वजनिक अव्यवस्था होती है या पैदा होने की प्रवृत्ति होती है.

हालांकि, प्रस्तावित संशोधन की भाषा ज्यादा व्यापक है. अगर इस संशोधन को अपानाया जाता है, तो यह हिंसा को प्रोत्साहित करने की मात्र प्रवृत्ति को भी गैरकानूनी बना देगा. ऐसी हिंसा या अव्यवस्था वाकई में कभी नहीं होती है, लेकिन फिर भी यह है.

इसके परिणामस्वरूप कानून और ज्यादा सख्त हो जाएगा.

इसके अलावा, सजा में प्रस्तावित बदलाव राजद्रोह कानून की अस्पष्टता को स्पष्ट करने में बहुत कम या न के बराबर योगदान देता है.

इसके साथ ही, धारा 124A के खिलाफ संवैधानिक चुनौती में सामने आई चिंताओं में से एक का भी समाधान करने में लॉ कमीशन विफल रहा है.

हकीकत में, इसके विपरीत सबूतों की बढ़ती संख्या के बावजूद, इन सभी समस्याओं को वाकई में स्पष्ट तौर पर नकार दिया गया है.

यह 2015 के श्रेया सिंघल मामले के फैसले पर भी विचार नहीं करता है, जिसमें सुप्रीम कोर्ट द्वारा निर्धारित किया गया था कि अस्पष्ट और अत्यधिक व्यापक आरोप असंवैधानिक होंगे और स्वतंत्र अभिव्यक्ति पर प्रतिबंध के रूप में इन्हें उचित नहीं ठहराया जा सकता है.

ADVERTISEMENT
ADVERTISEMENT

डेटा क्या दर्शाता है

लॉ कमीशन का दावा है कि राजद्रोह के दुरुपयोग का केवल आरोप लगाया गया है जबकि आंतरिक सुरक्षा और संप्रभुता के लिए खतरा काफी वास्तविक है. भले ही सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि राजद्रोह कानून का इस्तेमाल बार-बार सरकार के विरोध को चुप कराने के लिए किया जाता है और इस कड़े कानून के दुरुपयोग की एक लंबी लिस्ट है, लेकिन इसके बावजूद भी विनोद दुआ, दिशा रवि, जेएनयू, सीएए विरोधी प्रदर्शनकारियों आदि मामलों का उल्लेख करने में लॉ कमीशन विफल रहा.

एनसीआरबी द्वारा उपलब्ध कराए गए आंकड़े बताते हैं कि राजद्रोह की रिपोर्ट की गई घटनाओं की संख्या 2020 में (सबसे हालिया वर्ष जिसके लिए एनसीआरबी डेटा उपलब्ध है) बढ़ी है. लेकिन नतीजा वही रहा.

दर्ज की गई 230 घटनाओं में से केवल 23 पर आरोप लगाए गए.

अदालत में लंबित राजद्रोह के आरोपों की संख्या 2020 में लगभग 95% तक पहुंच गई.

2010 और 2014 के बीच वार्षिक औसत की तुलना में 2014 और 2020 के बीच राजद्रोह के मामलों में 28 प्रतिशत की सालाना बढ़ोतरी हुई.

हालिया 10 सालों में जिन 10,938 भारतीयों पर राजद्रोह के आरोप लगाए गए हैं, उनमें से 65 प्रतिशत पर मई 2014 के बाद आरोप लगाए गए हैं. अगर अब लॉ कमीशन की सिफारिश पर ध्यान दिया जाता है, तो धारा 124A पहले से कहीं ज्यादा मजबूत हो जाएगी.

कई सारे सख्त कानून?

एक समानांतर नोट पर, 22वें लॉ कमीशन की यह सिफारिश व्यक्तिगत अधिकारों पर अंकुश लगाने की दिशा में कोई पहला ऐसा कदम नहीं है. यूएपीए (UAPA) और अन्य विशेष कानूनों के तहत जमानत मिलना पहले से ही लगभग असंभव है.

हाल ही में सुप्रीम कोर्ट की तीन-जजों की बेंच ने भी अपने ही पहले के फैसलों को पलट दिया और कहा कि किसी भी प्रतिबंधित संगठन का सदस्य मात्र होने से भी व्यक्ति अपराधी होगा और गैरकानूनी गतिविधि (रोकथाम) अधिनियम, 1967 (यूएपीए) के प्रावधानों के तहत इसे अपराध माना जाएगा. यानी कि महज प्रतिबंधित संगठन का सदस्य होना भी यूएपीए के तहत अपराध है.

जस्टिस संजय करोल, जस्टिस सीटी रविकुमार और जस्टिस एम.आर. शाह (रिटायर्ड) की अध्यक्षता वाली तीन जजों की बेंच ने कहा कि जब किसी संस्था को एक अधिसूचना (यूएपीए, 1967 की धारा 3 के तहत) के माध्यम से अवैध माना जाता है, तब एक ऐसा व्यक्ति जो इस तरह के संगठन का सदस्य है और बना रहता है, उसे यूएपीए की धारा 10 (a) (i) के तहत दो साल तक की कैद की सजा हो सकती है और इसके साथ ही साथ उस पर जुर्माना भी लगाया जा सकता है.

मई 2022 में राजद्रोह कानून को स्थगित रखने का सुप्रीम कोर्ट का आदेश इस देश के नागरिकों के लिए राहत के संकेत के रूप में आया था, इस आदेश के जरिए सुप्रीम कोर्ट ने लोगों के अधिकारों की रक्षा के लिए एक प्रगतिशील दृष्टिकोण दिखाया था.

ऐसे में अब अगर 22वें लॉ कमीशन की सिफारिश को उसके वर्तमान स्वरूप में स्वीकार कर लिया जाता है, तो इसका नागरिक अधिकारों और व्यक्तिगत स्वतंत्रता की सुरक्षा पर नकारात्मक प्रभाव पड़ सकता है.

ऐसा प्रतीत होता है कि हाल के वर्षों में पत्रकारों, शिक्षाविदों, राजनीतिक विरोधियों और छात्रों, विशेष रूप से अल्पसंख्यक समुदायों से आने वाले लोगों और/या सत्तारूढ़ व्यवस्था की आलोचना करने वालों को दबाने के लिए अभिव्यक्ति (भाषण) और स्वतंत्रता पर अंकुश लगाने वाले कड़े कानूनों का तेजी से उपयोग किया जा रहा है.

उस संदर्भ में, कोई यह सवाल कर सकता है कि क्या लॉ कमीशन के सुझावों का उद्देश्य सरकार की अन्यायपूर्ण और एकतरफा नीतियों के विरोध को कम या सीमित करना था. कोई यह भी पूछेगा कि क्या जिन लोगों (जैसे कि स्टूडेंट्स, पत्रकार, या शिक्षाविद्) को रैलियां, धरने आदि आयोजित करने का अधिकार है, वे केवल सरकार के खिलाफ आवाज उठाने के लिए गंभीर कानूनी प्रतिक्रिया का सामना कर सकते हैं.

(लेखक दिल्ली में रहने वाले एक कानूनी शोधकर्ता हैं. यह एक ओपिनियन पीस है और इसमें व्यक्त किए गए विचार लेखक के अपने हैं. क्विंट न तो इसका समर्थन करता है और न ही इसके लिए जिम्मेदार है.)

(हैलो दोस्तों! हमारे Telegram चैनल से जुड़े रहिए यहां)

अनलॉक करने के लिए मेंबर बनें
  • साइट पर सभी पेड कंटेंट का एक्सेस
  • क्विंट पर बिना ऐड के सबकुछ पढ़ें
  • स्पेशल प्रोजेक्ट का सबसे पहला प्रीव्यू
आगे बढ़ें

Published: undefined

Read More
ADVERTISEMENT
SCROLL FOR NEXT