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5G नीलामी: क्या सरकार पब्लिक के पैसों को BSNL पर गंवाने का जोखिम ले सकती है?

5G स्पेक्ट्रम की जिस दिन बोली व्यावहारिक तौर पर खत्म हुई,उस दिन सरकार ने BSNL के लिए एक 'रिवाइवल प्लान ' की घोषणा की

सुभाष चंद्र गर्ग
नजरिया
Updated:
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5G नीलामी: क्या सरकार पब्लिक के पैसों को BSNL पर गंवाने का जोखिम ले सकता है?

(फाइल फोटो)

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तेजी से उभरती ग्लोबल डिजिटल अर्थव्यवस्था और समाज के लिए 5G इलेक्ट्रोमैग्नेटिक स्पेक्ट्रम आज सबसे मूल्यवान प्राकृतिक संसाधन है. अगर भारत एक महत्वपूर्ण आर्थिक शक्ति बनना चाहता है या फिर खुद को 10 ट्रिलियन डॉलर की अर्थव्यवस्था बनाने के लिए गंभीर है तो अब भारत इस मौके को गंवाने का खतरा मोल नहीं ले सकता.

सरकार जो कि संसाधनों की संरक्षक होती है वही 5G स्पेक्ट्रम के 700 मेगाहर्ट्ज, 3 गीगाहर्ट्ज़ और 26 गीगाहर्ट्ज बैंड की मालिक है.

लेकिन सरकार को इसे 5G सेवा नेटवर्क बनाने और उस पर सेवाएं देने के लिए बिजनेस घरानों को आवंटित करना होगा. अगर स्पेक्ट्रम बिका नहीं तो इसका मतलब स्पेक्ट्रम की बर्बादी है.

सरकार पिछले 5 साल में अब तक 2G स्पेक्ट्रम में नोशनल लॉस यानि ‘कपोल कल्पित नुकसान’ की थ्योरी वाली बात से अपना पीछा नहीं छुड़ा पाई है. सरकार ने 2018 से 5G स्पेक्ट्रम को 5 ट्रिलियन रुपये से अधिक की कीमतों पर बेचने की कोशिश की लेकिन कामयाबी नहीं मिली. अंत में इस बार स्पेक्ट्रम की कीमतों में कुछ कमी और स्पेक्ट्रम उपयोग शुल्क को समाप्त करके, 15 जून को बिक्री के लिए 5G स्पेक्ट्रम रखा गया.

  • सरकार 2018 से ही 5 G स्पेक्ट्रम को 5 ट्रिलियन रुपए में बेचने की कोशिश कर रही है लेकिन अब तक फेल रही है. इस बार ये नीलामी के लिए स्पेक्ट्रम रख पाए हैं लेकिन अभी तक थोड़ी की सफलता इन्हें मिली है

  • लेकिन ये विडंबना ही है कि जिस दिन 5G स्पेक्ट्रम सेल व्यावहारिक तौर पर खत्म हो गया था उसी दिन सरकार ने BSNL के लिए 1.64 ट्रिलियन रुपए का रिवाइवल पैकेज का ऐलान किया. यह बताता है कि टेलीकॉम सेक्टर किस हालत में आज देश में है.

  • आज 10 % से भी कम सब्सक्राइबर BSNL का इस्तेमाल करते हैं और वो भी सिर्फ 2G सेवा के लिए.. ऐसे में इस कंपनी से कोई मकसद पूरा नहीं होता सिर्फ कर्मचारियों की नौकरी का मकसद पूरा होता है .

  • यह राष्ट्रीय हित में नहीं है कि स्पेक्ट्रम को बेचकर की गई गाढ़ी मेहनत की कमाई को इस तरह BSNL और MTNL पर गंवाया जाए.

भारतीय टेलीकॉम जगत की दुखद दशा

सरकार को कामयाबी कुछ हद तक ही मिली है. सरकार को अगले 20 साल में कुल 1.5 ट्रिलियन रुपए की रॉयल्टी मिलेगी. विश्व के 60 देशों में अभी पहले से 5G सर्विस चल रही है. अब भारतीय लोग और कारोबारी भी अगले कुछ दिनों में 5G यूज कर पाएंगे. यह भारतीय जनता और इकोनॉमी के लिए बहुत अच्छी बात है.

लेकिन इसकी विडंबना यह है कि 27 जुलाई को जब व्यावहारिक तौर पर 5G स्पेक्ट्रम की बोलियां खत्म हो गईं, सरकार ने BSNL के रिवाइवल के लिए 1.64 ट्रिलियन रुपए का पैकेज एनाउंस कर दिया. साल 2019 में सरकार ने 700 बिलियन रुपए का पैकेज BSNL को दिया था. पैकेज के तहत ये उम्मीद थी कि BSNL 4G सर्विस को शुरू करेगा लेकिन ऐसा हुआ नहीं. अब नया पैकेज फिर से उसी उम्मीद को जगाएगा.

आंशिक रूप से 5जी स्पेक्ट्रम की बिक्री और उसी दिन बीएसएनएल के लिए एक और बचाव पैकेज की घोषणा दूरसंचार क्षेत्र की गड़बड़ी के बारे में बताती है.

सरकार इस बार कुछ हद तक सही

सरकार ने नीलामी में बिक्री के लिए कुल 72 गीगाहर्ट्ज़ स्पेक्ट्रम की पेशकश की. बिक्री 28 जुलाई को हुई. सभी बोलीदाताओं को सभी 22 सर्किलों में 26 गीगाहर्ट्ज़ और 3 गीगाहर्ट्ज़ बैंड में अपेक्षित स्पेक्ट्रम मिला. यह स्पेक्ट्रम रिजर्व प्राइस पर ही बेचा गया था. इस स्पेक्ट्रम का लगभग एक तिहाई हिस्सा बिना बिके रहा. एक बोली लगाने वाले ने 700 मेगाहर्ट्ज बैंड के साथ-साथ स्टेबल रिजर्व प्राइस पर स्पेक्ट्रम खरीदा. सरकार पिछली नीलामी में 700 मेगाहर्ट्ज स्पेक्ट्रम बेचने में विफल रही थी. इस बार फिर से, 700 मेगाहर्ट्ज स्पेक्ट्रम का 60% बिना बिका रह गया है.

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कुछ अन्य स्पेक्ट्रम बैंड को भी ऑफर पर रखा गया था. 1800 मेगाहर्ट्ज बैंड के लिए एक या दो सर्किलों को छोड़कर, कोई प्रतिस्पर्धा नहीं थी. कुछ स्पेक्ट्रम बैंड जैसे कि 600 मेगाहर्ट्ज और 800 मेगाहर्ट्ज में किसी ने दिलचस्पी नहीं दिखाई. 2100 मेगाहर्ट्ज और 2300 मेगाहर्ट्ज जैसे दूसरे स्पेक्ट्रम में मांग बहुत सुस्त रही.

सरकार इस स्पेक्ट्रम बिक्री से 1.5 लाख करोड़ रुपये का राजस्व जुटाएगी. हालांकि, एक बड़ा स्पेक्ट्रम अभी भी बिका नहीं है और वो बर्बाद हो जाएगा.

स्पेक्ट्रम की कीमतें बड़ी नाकामी

टेलीकॉम लाइसेंसिंग और स्पेक्ट्रम बिक्री को लेकर भारत की नीति शुरू से ही, यानी 1990 के दशक से ही आक्रामक रही है. 1998 तक चलने वाले पहले चरण में सरकार फिक्स प्राइस चाहती थी. वहीं इंडस्ट्री को इसमें असीम संभावनाएं नजर आईं और उन्होंने ज्यादा बोलियां लगाई. कुछ ही वर्षों में व्यवस्था चरमरा गई. आखिरी में सरकार को सेक्टर को बचाव के लिए आगे आना पड़ा. अब तक ऑपरेटरों के लिए पहले से जो एक फिक्स प्राइस रेजीम यानि तय मूल्य व्यवस्था चल रही थी, उसकी जगह पर अब रेवेन्यू शेयरिंग मॉडल लाया गया.

इस बदलाव और तेजी से बढ़ती अर्थव्यवस्था ने अब नई परेशानी पैदा कर दी. टेलीकॉम ऑपरेटरों को जबरदस्त मुनाफा हुआ. दरअसल सरकार उन्हें लगभग फ्री में पहले आओ, पहले पाओ वाली नीति पर स्पेक्ट्रम बांटने लगी. यह सिस्टम साल 2010 तक चला और सिस्टम पूरी तरह से भ्रष्ट हो गया. नतीजा हुआ 2G का भयंकर घोटाला. CAG ने ऑडिट करके इस नीति से सरकार को 1.76 लाख करोड़ रुपये के नुकसान की बात कही. सुप्रीम कोर्ट ने सभी लाइसेंस रद्द कर दिए और टेलीकॉम सेक्टर का भट्ठा बैठ गया.

इस पूरे प्रकरण ने रेगुलेटर भारतीय दूरसंचार नियामक प्राधिकरण (ट्राई), और सरकार को पूरी तरह से जोखिम में डाल दिया. स्पेक्ट्रम रिजर्व प्राइस उन स्तरों पर तय किए गए थे जिन्हें कोई लेने वाला नहीं था. सरकार 5जी स्पेक्ट्रम की बिक्री से 5 लाख करोड़ रुपये से अधिक चाहती थी लेकिन पिछले तीन साल से यह बार-बार बेकार कीमतों पर भी स्पेक्ट्रम बेचने में नाकाम रही है.

तथ्य यह है कि 3 गीगाहर्ट्ज और 26 गीगाहर्ट्ज के पास अपने रिजर्व प्राइस की तुलना करने के लिए कुछ बचा ही नहीं था. वो कैसे समझें कि सही प्राइस क्या है क्योंकि ऐसा कोई बैक्रगाउंड था ही नहीं. इस बार सरकार ने रिजर्व प्राइस फिक्स करने में थोड़ी ज्यादा तार्किकता दिखाई और इसे रीजनेबल बनाया. हालांकि, 700 मेगाहर्ट्ज बैंड, पहले के स्तरों से 40% की कमी के बावजूद, अभी भी बहुत महंगा माना जाता था.

फील्ड में जो ऑपरेटर बचे हुए हैं वो इस बात से आश्वस्त हैं कि उनके हाथ प्राइसिंग पावर का कंट्रोल है और उन्हें जरूरी न्यूनतम 5G रिजर्व कीमत पर खरीद की है. बावजूद इसके 5G स्पेक्ट्रम का एक बड़ा हिस्सा अभी भी बिका नहीं है. रिजर्व प्राइस जो है वो मार्केट प्राइस नहीं है.

इसलिए सरकार को यह सलाह है कि वो खुद रिजर्व प्राइस फिक्स करने के ट्रैप से दूर रखे. वो सही प्राइस तय करे और बचे हुए स्पेक्ट्रम को फिर से नीलामी के लिए जल्दी लाए.

BSNL और MTNL की विदाई होने दें?

ये दोनों टेलीकॉम कंपनियां 4G सेवा नहीं दे रही हैं. इसलिए इस बात की दूर दूर तक कोई संभावना नहीं है कि ये कभी 5G सेवा दे पाएंगी. अब देश में 10 फीसदी से भी कम BSNL/MTNL के सब्सक्राइबर बचे हैं और वो भी सिर्फ 2G के लिए है. इसलिए इन कंपनियों का कोई काम बचा है. सिर्फ ये लोगों को नौकरी करते रहने का जरिया भर हैं. साल 2019 में उनके कर्मचारियों की लागत उनकी रेवेन्यू से चार-पांच गुना ज्यादा थी जबकि दूसरी टेलीकॉम कंपनियां 5% की लागत पर काम कर रही थीं. सरकार ने करीब 60,000 कर्मचारियों के VRS के लिए 30,000 करोड़ रुपए की मदद दी.

BSNL या MTNL स्पेक्ट्रम के लिए पैसे नहीं देते. सरकार इक्विटी सपोर्ट मुहैया कराती है ताकि लागत और नेटवर्क स्थापित करने का भार ये उठा सकें. नए पैकेज में सरकार बाकी सभी रेवेन्यू को इक्विटी में बदल रही है. इससे जल्द ही BSNL/MTNL के पास करीब 1 लाख करोड़ रुपए से ज्यादा का इक्विटी कैपिटल होगा. जबकि ये सालाना 15,000 से 18,000 करोड़ रुपए का रेवेन्यू पैदा करेंगे.

सरकार उनके सभी कर्जों का हिसाब-किताब कर रही है. इस बात की बहुत ज्यादा संभावना है कि अगले रिवाइवल पैकेज में सरकार उनका पूरा कर्ज एयर इंडिया की तरह खुद पर ले लेगी.

सरकार इस तरह के रिवाइवल पैकेज से BSNL को फायदे में नहीं ला सकती. सरकार को जितनी जल्दी संभव हो उतनी जल्दी इन दोनों कंपनी को बंद कर देना चाहिए. अब और इनमें पैसा सरकार को नहीं डालना चाहिए चाहे वो 4G नेटवर्क लगाने की बात ही क्यों ना हो.

कंपनी के मौजूदा कस्टमर, टावर और दूसरी एसेंट्स (जमीन और बिल्डिंग को छोड़कर) को दूसरी टेलीकॉम कंपनियों को बेचा जा सकता है. जमीन और इमारतों को लैंड मैनेजमेंट कॉरपोरेशन को ट्रांसफर किया जा सकता है. यह राष्ट्रीय हित में नहीं है कि गाढ़ी मेहनत और स्पेक्ट्रम सेल से की गई कमाई को इस तरह बेतुका ढंग से BSNL & MTNL को बचाए रखने के लिए बर्बाद किया जाए.

(सुभाष चंद्र गर्ग SUBHANJALI के मुख्य नीति सलाहकार, The $10 Trillion Dream के लेखक और भारत सरकार के पूर्व वित्त और आर्थिक मामलों के सचिव हैं. यह एक ओपिनियन आर्टिकल है और विचार लेखक के अपने हैं. क्विंट न तो इसका समर्थन करता है और न ही इसके लिए जिम्मेदार है.)

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Published: 31 Jul 2022,02:08 PM IST

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