मेंबर्स के लिए
lock close icon
Home Created by potrace 1.16, written by Peter Selinger 2001-2019Voices Created by potrace 1.16, written by Peter Selinger 2001-2019Opinion Created by potrace 1.16, written by Peter Selinger 2001-2019आरुषि मर्डर केस:मीडिया ट्रायल करके मां-बाप पर आरोप लगाना जायज नहीं

आरुषि मर्डर केस:मीडिया ट्रायल करके मां-बाप पर आरोप लगाना जायज नहीं

आरुषि के मामले में दोषी पहले करार दे दिया गया, जांच बाद में हुई. कितना अजीब है.

मयंक मिश्रा
नजरिया
Updated:
आरुषि मर्डर केस में हाईकोर्ट ने तलवार दंपति को बरी कर दिया है
i
आरुषि मर्डर केस में हाईकोर्ट ने तलवार दंपति को बरी कर दिया है
(फोटो: द क्‍व‍िंट)

advertisement

हमारी परंपरा में सृजक की अवधारणा है. मां-बाप को सृजन करने वाला माना जाता है. और सृजक का विरोधी शब्द है भक्षक. लेकिन क्या शक या सुबहा के आधार पर सृजक पर भक्षक होने का आरोप लगाया जा सकता है?

आरुषि के केस में सबसे चौंकाने वाली बात यह थी कि मां-बाप को ही कातिल घोषित कर दिया गया. मीडिया ट्रायल के जरिए. कुछ बयानों के आधार पर. कुछ पुलिस सूत्रों से मिली जानकारी के आधार पर. माहौल ऐसा बना कि लोगों ने मान भी लिया.

इस थ्योरी से उलट कोई खबर आती थी, तो लगता था कि खबर प्लांटेट है या फिर रिपोर्टर का कोई पूर्वाग्रह है. सीबीआई कोर्ट के फैसले से बहुत पहले तलवार दंपति- राजेश और नूपुर तलवार को दोषी करार दे दिया गया.

किसी संपादक ने, किसी रिपोर्टर ने, किसी पुलिस अधिकारी ने या फिर किसी जांच अधिकारी ने कभी सोचा कि अगर डोमिनेंट थ्योरी गलत हुई तो? अब जबकि हाईकोर्ट के फैसले ने साबित कर दिया है कि वो मीडिया ट्रायल गलत था, तो क्या इसे चलाने वाले माफी मांगेंगे?

संपादकों की मजबूरी रही होगी. पत्रकारों के सामने सनसनीखेज मसाला परोसने की बाध्यता होगी. पुलिस अधिकारियों पर केस क्लोज करने का दबाव रहा होगा. लेकिन इस सबके बीच मानवीय संवेदनाओं की किस तरह से धज्जियां उड़ाई गईं, इसका अंदाजा है?

इस मामले को 9 साल हो गए हैं. पिछले 9 साल से तलवार दंपति इस अपराध-बोध से जी रहा है कि उस पर अपनी एकलौती संतान को जान से मारने का आरोप है. जानते हैं इसका मतलब? कल्पना कर सकते हैं उस यातना की?

ADVERTISEMENT
ADVERTISEMENT

मैं भी एक बाप हूं. मेरे दो बच्चे हैं. अपने बच्चों को छोटी-सी खरोंच पहुंचाने का भी आरोप मुझ पर लगेगा, तो मैं बहुत ही आहत हो जाऊंगा. मुझे पता है कि सपने में भी मैं अपने बच्चों का किसी भी तरह से नुकसान नहीं पहुचा सकता हूं. बहुत गुस्सा भी आ जाए, तो मैं उदासीन हो सकता हूं. लेकिन कोई भी नुकसान पहुंचाने का तो सवाल ही नहीं है.

लेकिन आरुषि के मामले में दोषी पहले करार दे दिया गया. जांच बाद में हुई. कितना अजीब है.

मैंने इस मामले में कोई रिसर्च नहीं की है. किसी से मेरी बातचीत नहीं हुई है. इस मामले ने मुझे इतना डरा दिया था (इसीलिए कि अपने बच्चे की हत्या मां-पिता ही कर दे) कि मैंने खबरों को भी ठीक से फॉलो नहीं किया है. लेकिन एक बात हमेशा खटकती थी- बिना ठोस सबूत के मां-बाप पर इल्जाम नहीं लगाना चाहिए था. अगर आरोप गलत हुए तो?

अब जबकि हाईकोर्ट ने फैसला दे दिया है और बता दिया है कि तलवार दंपति‍ दोषी नहीं है, उन घावों का क्या होगा, जो पिछले 9 साल से उनके साथ चिपका हुआ है? उन संदेहवाली आंखों का क्‍या, जो उनका बाकी जिंदगी भी पीछा करती रहेगी? क्या इन घावों के लिए किसी के पास मरहम है?

ये भी पढ़ें:

आरुषि मर्डर केस में इलाहाबाद हाईकोर्ट ने तलवार दंपति को बरी किया

(हैलो दोस्तों! हमारे Telegram चैनल से जुड़े रहिए यहां)

अनलॉक करने के लिए मेंबर बनें
  • साइट पर सभी पेड कंटेंट का एक्सेस
  • क्विंट पर बिना ऐड के सबकुछ पढ़ें
  • स्पेशल प्रोजेक्ट का सबसे पहला प्रीव्यू
आगे बढ़ें

Published: 12 Oct 2017,06:02 PM IST

Read More
ADVERTISEMENT
SCROLL FOR NEXT