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साल 1947 में, समाज सुधारक और स्वतंत्रता संग्राम सेनानी मन्नथ पद्मनाभन ने नायर सर्विस सोसायटी ऑफ केरल नाम के संगठन की स्थापना की थी, जिसका मकसद था समाज में दबदबा रखने वाली जाति नायरों को एकजुट रखना. इस सोसायटी ने त्रावणकोर इलाके के चंगानासेरी में एक कॉलेज की नींव रखी. तब भाषाई प्रदेश केरल नहीं बना था. पद्मनाभन ने उस कॉलेज का नाम एनएसएस हिंदू कॉलेज रखा था.
बहरहाल, एनएसएस और आरएसएस के बीच परस्पर संबंधों में सालों से कोई प्रगति नहीं हुई है. इस बार के केरल विधानसभा चुनाव में एनएसएस ने भारतीय जनता पार्टी के उम्मीदवार कुम्मानम राजशेखरन का विरोध किया है जो तिरुवनन्तपुरम के नेमोम से चुनाव लड़ रहे हैं. इस निर्वाचन क्षेत्र में बीजेपी, कांग्रेस और सीपीएम के बीच त्रिकोणीय मुकाबला है.
यहां एनएसएस का नेतृत्व कांग्रेस उम्मीदवार और पूर्व मुख्यमंत्री के करुणाकरण के बेटे के मुरलीधरन के समर्थन में सामने आया है. कांग्रेस के साथ एनएसएस के गठजोड़ से क्या नेमोम और राज्य में दूसरे निर्वाचन क्षेत्रों में बीजेपी की उम्मीदों को झटका लगेगा? केरल की आबादी में नायरों की हिस्सेदारी 14.5 फीसदी है.
आरएसएस के मुखपत्र ऑर्गनाइजर ने मन्नथ पद्मनाभन को यह कहते हुए उद्धृत किया है, “संगठन और ताकत की कमी और इस वजह से कायरता और हिंदुओं की दयनीय स्थिति का एकमात्र प्रभावी इलाज आरएसएस है. केरल के हर गांव को आरएसएस की शाखा में गर्व के साथ शरीक होना चाहिए....अगर मैं जवान होता तो मैं आरएसएस की शारीरिक गतिविधियों में भी खुशी-खुशी हिस्सा लेता.”
फिर, बीजेपी को एनएसएस का समर्थन क्यों हासिल नहीं है? आरएसएस नेता ने इसकी वजह बताई, “एनएसएस का मौजूदा नेतृत्व संगठन के सदस्यों की नब्ज को नहीं समझ पा रहा है. नायरों ने नहीं, बल्कि (संगठन के) नेतृत्व ने ही बीजेपी से मुंह फेर लिया है.”
2014 के लोकसभा चुनाव में केरल में एनडीए की वोटों में हिस्सेदारी 10.85 फीसदी थी. 2019 के लोकसभा चुनाव में यह बढ़कर 15.20 फीसदी हो गई, जिसमें अकेले बीजेपी की हिस्सेदारी 12.93 फीसदी थी.
केरल के वरिष्ठ पत्रकार और राजनीतिक विशेषज्ञ केपी सेथुनाथ ने बताया, “केरल में बीजेपी के लिए लगातार समर्थन बढ़ता जा रहा है. मुख्य रूप से ये नायर जाति समूह के वोट हैं जो पार्टी की ओर मुड़े हैं और इससे कांग्रेस को सबसे ज्यादा और उसके बाद सीपीएम को नुकसान हुआ है. लेकिन एनएसएस का नेतृत्व अब तक बीजेपी के लिए गर्मजोशी नहीं दिखा सका है.”
यह पूरा आंदोलन जबकि मुख्य रूप से बीजेपी और आरएसएस का था, हालांकि, 2019 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस के नेतृत्व वाले यूनाइटेड डेमोक्रेटिक फ्रंट ने इसकी चुनावी फसल काटी और 20 में से 19 लोकसभा की सीट जीत ली. मतलब ये कि नायर वोट भी कांग्रेस के पक्ष में मुड़ गए.
आरएसएस और बीजेपी का आरोप एनएसएस के महासचिव जी सुकुमारन नायर पर है कि वे उनके साथ दूरी बनाए हुए हैं. संघ नेता ने क्विंट से कहा, “एनएसएस को खुले तौर पर कांग्रेस का समर्थन नहीं करना चाहिए. इससे खुला संदेश गया है कि सुकुमारन नायर बीजेपी के खिलाफ हैं.”
राजनीतिक पर्यवेक्षकों का मानना है कि सुकुमारन नायर का अतीत में क्षेत्रीय पार्टी केरल कांग्रेस से जुड़ा होना ही कांग्रेस के समर्थन की वजह है.
केरल कांग्रेस की स्थापना 1964 में हुई थी जब इंडियन नेशनल कांग्रेस में टूट हुई थी. जब केएम जॉर्ज और आर बालाकृष्णा पिल्लई ने केरल कांग्रेस का गठन किया था तो उस वक्त उन्हें एनएसएस के संस्थापक मन्नथ पद्मनाभन का समर्थन मिला था.
बाद के सालों में केरल कांग्रेस कई धड़ों में बंट गई, अभी एक प्रमुख धड़ा केरल कांग्रेस (जोसेफ) यूनाइटेड डेमोक्रेटिक फ्रंट के साथ है और दूसरा धड़ा केरल कांग्रेस (मणि) लेफ्ट डेमोक्रेटक फ्रंट के साथ. एनएसएस के नजदीकी सूत्र का कहना है, “चूकि नेतृत्व सबरीमाला फैसले के बाद एलडीएफ का समर्थन नहीं कर सकता, इसलिए एनएसएस कांग्रेस का समर्थन कर रहा है जो सबरीमाला की रीति के हिसाब से मंदिर की सुरक्षा के लिए कानून बनाना चाहती है.”
इस बीच एनएसएस ने सीपीआई (एम) के साथ अपने मतभेदों को कई बार साफ किया. इनमें ताजातरीन उदाहरण है मुख्यमंत्री पिनराई विजयन की ओर से 2020 में नागरिकता संशोधन कानून को लेकर बुलायी गयी बैठक में शामिल नहीं होने का सुकुमारन नायर का फैसला.
क्विंट ने एनएसएस जिला पदाधिकारी जय प्रकाश नायर से बात की जो उत्सुकता के साथ चुनाव का इंतजार कर रहे हैं. उन्होंने कहा,”चुनाव लड़ रही सभी पार्टियों से हम समान दूरी बनाकर रखेंगे.” बीजेपी को वोट क्यों, नहीं जिसके साथ एनएसएस का लंबा इतिहास जुड़ा हुआ है? इस पर जय प्रकाश नायर कहते हैं, “एनएसएस नेतृत्व के फैसले का पालन सभी जिलों में उसके कार्यकर्ता करते हैं. बीजेपी के खिलाफ हमारे पास जबकि कुछ भी नहीं है, नेतृत्व का फैसला है कि उन्हें समर्थन नहीं करना है.”
नायर समुदाय में एनएसएस के कम होते प्रभाव का प्रमाण है तिरुवनन्तपुरम में वट्टियूरकावु विधानसभा सीट के लिए 2019 में हुआ उपचुनाव. एनएसएस के कांग्रेस का समर्थन करने के बावजूद चुनाव में जीत सीपीएम के वीके प्रशांथ की हुई थी.
ऐसे में सवाल यह है कि इस चुनाव में नायर वोट क्या एनएसएस नेतृत्व की अवहेलना करेगा और बीजेपी के समर्थन में अपना रुख दिखाएगा?
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