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अबॉर्शन पर दुनियाभर में बहस, सिर्फ लीगल नहीं, सेफ बनाना भी जरूरी

औरत की देह पर किसका हक, गर्भपात से जुड़े इस मसले पर सबसे ज्यादा बहस होती है

माशा
नजरिया
Published:
दुनियाभर में चल रही है अबॉर्शन पर बहस
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दुनियाभर में चल रही है अबॉर्शन पर बहस
(फोटो: iStock)

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पोलैंड से लेकर अर्जेंटीना और भारत तक में पिछले कई महीनों से एक टॉपिक, हॉट टॉपिक रहा है- वह है अबॉर्शन और उससे जुड़ी नाराजगियां. कथित प्रो लाइफ ग्रुप्स के तमाम दबावों के बीच पिछले हफ्ते अर्जेंटीना ने अबॉर्शन के पक्ष में एक कानून पारित कर दिया है. वहां अबॉर्शन एक क्रिमिनल अपराध है, और महिलाओं को इसके लिए जेल की हवा खानी पड़ती है.

अबॉर्शन को लीगल करने वाले बिल पर अर्जेंटीना की संसद के निचले सदन में करीब 20 घंटे बहस चली और फिर इसे पास कर दिया गया. इससे पहले अबॉर्शन कानून में संशोधन को लेकर पोलैंड में जनता जबरदस्त गुस्सा जाहिर कर चुकी है जिसके चलते सरकार ने इस कदम पर दोबारा सोचने का फैसला किया है.

लैटिन अमेरिका के कड़े कानून बनाम अर्जेंटीना में बदलाव की बयार

लैटिन अमेरिका और कैरेबियन क्षेत्र के अधिकतर देशों में गर्भपात से जुड़े कानून बहुत कड़े हैं. इस क्षेत्र में 33 देश हैं लेकिन क्यूबा, उरुग्वे और गुयाना को छोड़कर ज्यादातर देशों में गर्भपात पूरी तरह प्रतिबंधित है. ब्राजील में इस साल अगस्त में 10 साल की एक रेप पीड़ित बच्ची के गर्भपात का धार्मिक नेताओं ने काफी विरोध किया था.

लैटिन अमेरिका में हर साल करीब 65 लाख गर्भपात कराए जाते हैं लेकिन कड़े कानूनों के चलते दो तिहाई से ज्यादा मामलों में अवैध और असुरक्षित तरीके अपनाए जाते हैं. अकेले अर्जेंटीना में 2016-18 के बीच असुरक्षित गर्भपात की वजह से 65 महिलाओं की मौत हो गई थी, जैसा कि वहां के एक्सेस टू सेफ अबॉर्शन नेटवर्क का दावा है, और इन्हीं दो सालों में वहां 10 से 14 साल की सात हजार से ज्यादा बच्चियों ने बच्चों को जन्म दिया था.

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अर्जेंटीना में फेमिनिस्ट ग्रुप्स काफी लंबे समय से गर्भपात को लीगल करने की मांग कर रहे हैं. 2018 में इससे जुड़ा एक बिल सीनेट ने नामंजूर कर दिया था. पर उसके अगले साल यानी 2019 में लेफ्ट विंग के राष्ट्रपति अल्बर्टो फर्नांडीज़ के सत्ता संभालने के बाद इस सिलसिले में आशा जगी.

फर्नांडीज ने निर्वाचित होने के बाद कहा था कि वह एलजीबीटीक्यू लोगों और महिलाओं को उनके हक दिलाएंगे. इस नए बिल में 14 हफ्ते तक गर्भपात कराया जा सकता है, अगर मामला रेप से जुड़ा हो, या महिला की सेहत को खतरा हो. वैसे इस बिल को अभी भी सीनेट की मंजूरी की जरूरत है. वैसे दुनिया के ज्यादातर देशों में गर्भपात से जुड़े कानूनों में एक जैसी शर्तें शामिल हैं. लैटिन अमेरिका की तरह यूएसए के कई राज्यों में भी कानून काफी कड़े हैं.

वैसे यूएस सुप्रीम कोर्ट ने 1973 में ही गर्भपात को लीगल कर दिया था लेकिन अलबामा जैसे कुछ राज्यों में सभी मामलों में गर्भपात पर प्रतिबंध है, बशर्ते मां के स्वास्थ्य को गंभीर खतरा हो या भ्रूण में घातक विकृति हो. जॉर्जिया और केंटुकी में फीटस के दिल की धड़कन का पता चलने या गर्भधारण के छह हफ्ते के बाद गर्भपात पर प्रतिबंध है.

कैलीफोर्निया और रोड आयलैंड में गर्भपात तब नहीं कराया जा सकता, जब भ्रूण गर्भाशय के बाहर अपने आप जीवित रहने की स्थिति में आ जाए. दिलचस्प यह है कि सभी देशों ने अपने अपने हिसाब से गर्भपात करा सकने का वक्त तय किया है. जबकि विश्व स्वास्थ्य संगठन वह अधिकतम समय सीमा निर्दिष्ट नहीं करता, जिसके बाद गर्भपात नहीं कराया जा सकता.

क्यूबा में पचास साल से गर्भपात लीगल और मुफ्त है

औरत की देह पर किसका हक, गर्भपात से जुड़े इस मसले पर सबसे ज्यादा बहस होती है. लेकिन लैटिन अमेरिका के ही एक देश क्यूबा ने करीब पचास साल पहले ही इस बहस पर विराम लगा दिया था. वहां 1965 में गर्भपात का वैध कर दिया गया था. फिर 1979 में एक कानून बनाकर महिलाओं के लिए गर्भपात सेवाओं को आसान किया गया.

इसके बाद फिदेल कास्त्रो के प्रधानमंत्री बनने के बाद पीनल कोड में यह संशोधन किया गया कि अगर गर्भपात प्रॉफिट के लिए कराया जाए, स्वास्थ्य केंद्र के बाहर हो, नॉन मेडिकल स्टाफ करे या महिला की मर्जी के खिलाफ कराया जाए तभी वह अपराध होगा. बाकी देश के पब्लिक हेल्थकेयर सिस्टम में गर्भपात की सेवा मुफ्त है.

इसके बाद क्यूबा महिलाओं की मृत्यु दर में भी गिरावट. इस समय क्यूबा में महिलाएं स्थायी संबंधों में गर्भनिरोधकों का 77.1% इस्तेमाल करती हैं. पर लीगल होने के साथ-साथ गर्भपात सुरक्षित भी होना चाहिए वैसे भारत में भी गर्भपात लीगल है लेकिन 2018 की न्यूज रिपोर्ट्स कहती हैं कि यहां 56% गर्भपात असुरक्षित तरीके से कराए जाते हैं.

रिपोर्ट्स में कहा गया है कि मातृत्व मृत्यु के 8.5% मामलों की वजह असुरक्षित गर्भपात हैं और यह आंकड़ा औसत हर दिन करीब 10 महिलाओं की मौत का है. इसीलिए सवाल सिर्फ यह नहीं कि गर्भपात को लीगल किया जाए, बल्कि यह भी है कि स्वास्थ्य सेवाएं महिलाओं को आसानी से उपलब्ध हों.

वैसे 2018-19 का अखिल भारतीय ग्रामीण स्वास्थ्य सांख्यिकी कहते हैं कि देश के ग्रामीण क्षेत्रों के सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्रों में 1,351 गायनाकोलॉजिस्ट और अब्स्टेट्रिशियन्स हैं और क्वालिफाइड डॉक्टरों की 75% कमी है. इसीलिए 2015-16 के राष्ट्रीय स्वास्थ्य एवं परिवार सर्वेक्षण के अनुसार, सिर्फ 53% गर्भपात रजिस्टर्ड मेडिकल डॉक्टर द्वारा किए जाते हैं और बाकी के नर्स, एएनएम, दाई, परिवार के सदस्य या महिलाएं खुद करती हैं.

इसी साल मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेग्नेन्सी एक्ट, 1971 में संशोधन के लिए केंद्र सरकार एक नया विधेयक लेकर आई है. इस विधेयक में साफ कहा गया है कि असुरक्षित गर्भपात के कारण मातृत्व मृत्यु दर और बीमारियों को कम करने के लिए यह जरूरी है कि महिलाओं की पहुंच वैध और सुरक्षित गर्भपात सेवाओं तक हो.

भारत में गर्भपात कानून को उदार बनाने की कोशिश

तो, भारत में भी अबॉर्शन के कानून को और उदार बनाने को लेकर काफी हलचल है. फिलहाल मौजूद कानून के अंतर्गत, बाकी देशों की तरह यहां भी बलात्कार के मामलों और फीटस के अबनॉर्मल होने पर गर्भपात कराया जा सकता है.

अभी गर्भपात करा सकने की अवधि 12 से 20 हफ्ते है. संशोधन विधेयक इसे 20 से 24 हफ्ते करता है, और कुछ मामलों में 24 हफ्ते के बाद भी गर्भपात कराया जा सकता है जिसे तय करने की जिम्मेदारी एक मेडिकल बोर्ड की होगी. लेकिन रेप के मामलों में अभी भी 24 हफ्ते के बाद गर्भपात कराने के लिए अदालत में रिट याचिका दायर करने का ही विकल्प दिया गया है.

यानी मेडिकल बोर्ड रेप के मामलों में अपनी राय नहीं देगा. गर्भपात को दरअसल एक हेल्थ इश्यू से ज्यादा नैतिक मुद्दा बनाया गया है. लेकिन जैसा कि मशहूर पीडियाट्रीशियन और यूएसए की पूर्व सर्जन जनरल जॉयसिलिन एल्डर्स ने कहा था, हमें फीटस यानी अजन्मे बच्चों से अपने स्नेह को कुछ कम करके, जन्म ले चुके बच्चों की चिंता करनी शुरू करनी चाहिए.

दुनिया भर में पांच साल से कम उम्र में मौत का शिकार होने वाले करीब आधे बच्चे कुपोषण के कारण जान गंवाते हैं. बाकी, गर्भपात औरत की एंटिटी का सवाल ज्यादा है. राज्य को इसी लिहाज से नीतियां गढ़नी चाहिए. बेशक, उसका रुतबा इनसान से बड़ा नहीं होता. इनसान को आजादी का एहसास हो- यह हर सत्ता का उपक्रम और दायित्व होना चाहिए.


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