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हिंडनबर्ग रिसर्च (Hindenburg Research) द्वारा लगाए गए आरोपों के बाद अडानी ग्रुप ऑफ कंपनीज के शेयर की कीमतों में हालिया गिरावट से भारत के सिक्योरिटी मार्केट की विश्वसनीयता और निवेशकों के भरोसे के बारे में चिंता बढ़ गई थी. इन घटनाक्रमों के जवाब में, भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने एक एक्सपर्ट्स कमेटी का गठन किया जिसे मौजूदा नियामक ढांचे का आकलन करने और इसे (नियामक ढांचे) मजबूत करने के लिए सुझाव देने का काम सौंपा गया.
इस मामले पर एक्सपर्ट्स कमेटी की रिपोर्ट गहन विश्लेषण प्रदान करती है. रिपोर्ट एक व्यापक मूल्यांकन प्रस्तुत करती है जो निवेशकों के हितों की रक्षा करने और वित्तीय प्रणाली की विश्वसनीयता को बनाए रखने के लिए महत्वपूर्ण है.
इसके अलावा रिपोर्ट में, भविष्य में शॉर्ट सेलर्स को सिस्टम को धोखा देने से रोकने के लिए हमारे नियामक ढांचे को मजबूत करने की आवश्यकता पर भी जोर दिया गया है. यह एक वेकअप-कॉल या एक चेतावनी की तरह है. अपने पिछले ओपिनियन पीस में मैंने इस पहलू पर बहुत पहले प्रकाश डाला है.
अपनी रिपोर्ट में कमेटी ने कहा है कि ‘ईडी को हिंडनबर्ग रिपोर्ट के प्रकाशन से ठीक पहले खास पक्षों द्वारा संभावित उल्लंघन और संगठित बिक्री के बारे में खुफिया जानकारी मिली थी. यह भारतीय बाजारों को अस्थिर करने के संगठित प्रयासों के विश्वसनीय आरोप का इशारा करता है और सेबी को प्रतिभूति कानूनों के तहत इस तरह की गतिविधियों की जांच करनी चाहिए.’
इस कदम से जांच का दायरा और बढ़ेगा. सुप्रीम कोर्ट की कमेटी के निष्कर्ष शॉर्ट सेलर्स द्वारा लगाए गए आरोपों का मूल्यांकन या आकलन करते समय सावधानी बरतने के महत्व को रेखांकित करते हैं. हालांकि अडानी समूह के बारे में हिंडनबर्ग रिसर्च की रिपोर्ट ने गंभीर विवाद खड़े कर दिए हैं, लेकिन यह आवश्यक है कि इन आरोपों पर सावधानीपूर्वक विचार किया जाए और जल्दबाजी में उन्हें अकाट्य सत्य के रूप में स्वीकार न किया जाए.
हालांकि, यह महत्वपूर्ण है कि हम इसे स्वीकार करे कि समिति के निष्कर्ष और इस कमेटी द्वारा अडानी समूह के भीतर किसी भी महत्वपूर्ण नियामक विफलता को क्लियरेंस देना यह दर्शाता है कि हमें मार्केट रेग्युलेटर जैसे कि भारतीय प्रतिभूति और विनिमय बोर्ड (SEBI) में विश्वास रखना चाहिए.
सेबी की चल रही जांचों के साथ कमेटी की रिपोर्ट इस विचार की पुष्टि करती है कि रेग्युलेटरी बॉडीज के पास मिसकंडक्ट के आरोपों की जांच करने और उनको हल करने के पर्याप्त साधन हैं. यानी कि रेग्युलेटरी बॉडीज हर तरह से सक्षम हैं. आरोपों और विनियामक तंत्र दोनों को ध्यान में रखते हुए एक संतुलित दृष्टिकोण बनाए रखना महत्वपूर्ण है.
हालांकि ये आरोप तर्कसंगत चिंताओं को बढ़ा सकते हैं और जांच की मांग कर सकते हैं. लेकिन रेग्युलेटरी प्रोसेस के जरिए ही सच्चाई का पता लगाया जा सकता है और उचित कार्रवाई की जा सकती है. समिति की रिपोर्ट वित्तीय प्रणाली (फायनेंसियल सिस्टम) की इंटीग्रिटी को बनाए रखने और यह सुनिश्चित करने की प्रतिबद्धता को दर्शाती है कि बाजार प्रतिभागी (मार्केट पार्टिसिपेंट्स) निर्धारित नियमों और विनियमों (रूल्स एंड रेग्युलेशन) का पालन करते हैं.
हम बाजार नियामक में विश्वास रखकर और उनके प्रयासों का समर्थन करके निवेशकों के विश्वास और भारत के वित्तीय बाजारों की विश्वसनीयता को बनाए रखने में योगदान करते हैं. हम व्यापक जांच, साक्ष्य-आधारित निष्कर्ष और उचित प्रक्रिया के माध्यम से आरोपों की सच्चाई को सत्यापित कर सकते हैं और निवेशकों के हितों की रक्षा कर सकते हैं.
निष्पक्ष और पारदर्शी निवेश वातावरण बनाने के लिए रेग्युलेटरी तंत्र की इंटीग्रिटी को बनाए रखना सबसे अहम है. राजनेताओं और राजनीतिक दलों के लिए यह आवश्यक है कि वे कॉरपोरेट और व्यावसायिक मामलों में असत्यापित दावे या अटकलबाजी करने से बचें और सावधानी बरतें.
आर्थिक और व्यावसायिक मामलों के राजनीतिकरण के नुकसान से बचने के लिए, राजनीतिक दलों और नेताओं के लिए यह जरूरी है कि वे संकीर्ण राजनीतिक हितों की बजाय राष्ट्र की आर्थिक भलाई को प्राथमिकता दें. आर्थिक नीति निर्धारित करने में संसद महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है और इसे (संसद को) दलगत राजनीति के अखाड़े की बजाय उपयोगी या निर्माणकारी चर्चा के लिए एक मंच के तौर पर काम करना चाहिए.
बाजार नियामक को मजबूत करने और सुरक्षित कारोबारी माहौल सुनिश्चित करने के लिए सभी हितधारकों के सामूहिक प्रयास की जरूरत है. संसद को मजबूत कानून बनाने पर ध्यान देना चाहिए जो बाजार नियामक के कामकाज के लिए एक स्पष्ट फ्रेमवर्क (ढांचा) प्रदान करता हो और उसे अपनी जिम्मेदारियों को प्रभावी ढंग से पूरा करने के लिए पर्याप्त संसाधन और अधिकार प्रदान करता हो.
इसके अलावा, निवेशकों के विश्वास को बढ़ावा देने के लिए नियामक प्रक्रियाओं (रेग्युलेटरी प्रोसेसेज) में पारदर्शिता और जवाबदेही को शामिल किया जाना चाहिए. राजनीतिक नेताओं के लिए यह आवश्यक है कि वे संयम और सावधानी बरतें इसके साथ ही असत्यापित दावे करने या राजनीतिक लाभ के लिए संवेदनशील आर्थिक मुद्दों को टूल के रूप में उपयोग करने से बचें. उन्हें साक्ष्य-आधारित तर्कों पर भरोसा करना चाहिए. इसके अलावा चिंताओं को दूर करने और रचनात्मक सुधारों का प्रस्ताव करने के लिए सार्थक (तथ्य आधारित) चर्चा में शामिल होना चाहिए.
बाजार नियामक के लिए अनुकूल वातावरण (स्वतंत्र रूप से और प्रभावी ढंग से काम करने के लिए) बनाकर देश की अर्थव्यवस्था और साख की रक्षा की जा सकती है. जहां एक ओर यह एक सुरक्षित और आकर्षक कारोबारी माहौल को बढ़ावा देने का समर्थन करेगा वहीं दूसरी ओर घरेलू और विदेशी निवेश को आकर्षित करने और सभी नागरिकों के लाभ के लिए सतत आर्थिक विकास सुनिश्चित करने में मदद करेगा.
(नितिन मेश्राम, एक एडवोकेट हैं. वे सुप्रीम कोर्ट और भारत के विभिन्न हाई कोर्ट में प्रैक्टिस करते हैं. यह लेख एक ओपीनियन पीस है, इसमें व्यक्त किए गए विचार लेखक के अपने हैं. क्विंट न तो इसका समर्थन करता है और न ही इसके लिए जिम्मेदार है.)
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