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कितनी कोमल हैं भावनाएं कि प्रिया प्रकाश की मोहक अदा से भड़क गईं  

प्रिया प्रकाश वारियर की भंगिमाओं पर भड़कने की मानसिकता का विश्लेषण कर रहे हैं अजीत अंजुम

अजीत अंजुम
नजरिया
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(Photo Courtesy: Twitter)
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(Photo Courtesy: Twitter)

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सारे फसाद की जड़ में ‘भावनाएं’ ही हैं. जब तब भड़क जाती है .कभी इनकी भड़कती है, कभी उनकी भड़कती है.  भावनाओं के भड़कने का ताजा मामला हैदराबाद से आया है. बहुत लोग इस वीडियो और गाने को देख-सुनकर अपनी भावनाओं की भी पैमाइश कर रहे होंगे कि कहीं भड़क तो नहीं रही है. जिस वीडियो से 'कुछ धड़क' रहा था, अब उससे 'कुछ भड़क' रहा है.

मटकीमार लड़की और लड़के के जिस वीडियो पर लाखों- युवा अधेड़ और बुजुर्ग, सबके सब लहालोट हो रहे हैं. उस वीडियो के बैकग्राउंड गाने में और प्रिया की अदाओं में भी कुछ ऐसा मिल गया है, जिससे भावनाएं भड़कने का दावा किया जा रहा है. हैदराबाद के कुछ मुस्लिम युवाओं की भावनाएं इस वीडियो से इतनी भड़क गईं कि उन्होंने इसके खिलाफ मामला दर्ज करा दिया है. एफआइआर में गाने के बोल पर ऐतराज तो जताया ही गया है, ये भी कहा गया है कि प्रिया वारियर के चेहरे की भावभगिमाएं भावनाओं को आहत करती है...अब अपनी भड़की हुई भावनाओं से बौखलाए लोग चाहते हैं कि या तो गाने के बोल बदलें या फिल्म से ये गाना हटाओ. पुलिस ने जांच का भरोसा दिया है.

पुलिस भावनाओं की जांच कैसे करेगी?

जांच इसी दायरे में होगी कि इस वीडियो के पीछे चल रहे गाने से क्या वाकई भावनाएं भड़क सकती हैं? इस बीच जब प्रिया वारियर से मीडिया ने भड़की भावनाओं के बारे में पूछा तो उसने कहा- ‘मैं इस बारे में ज्यादा नहीं जानती इसलिए मैं चुप रहना पसंद करुंगी'

डरावनी हैं भड़कने वाली भावनाएं

भड़की भावनाएं अक्सर लोगों को डराती भी हैं. हो सकता यही डर प्रिया को चुप रहने को कह रहा हो. गजब तो ये है कि जिस प्रिया की भंगिमाओं पर युवा कई दिनों तक दीवाने होते रहे, उसी प्रिया के वीडियो से भावनाएं भड़कने लगी हैं? बेकाबू भावनाओं से मजबूर लोगों में सुना है कुछ पढ़े-लिखे मुस्लिम युवा भी हैं. ताज्जुब उन्हीं पर हो रहा है. किसी मौलवी या मौलाना की भावनाएं भड़कती तो मैं मान लेता उनकी तो भावनाएं होती ही हैं भड़कने के लिए. पहले उनकी भड़कती हैं, फिर वो दूसरों की भड़काते हैं. यहां तो एक खूबसूरत वीडियो से आहत भावनाओं वाले समूह का नाम हैदराबाद यूथ है. ये मुस्लिम युवाओं का समूह है. इसमें इंजीनियर भी हैं और कारोबारी भी.

सबने पहले कई बार इस वीडियो को देखा होगा. किस्म-किस्म की भावनाएं आई होंगी और अंत में उन्हें लगा होगा कि उनकी भावनाएं तो भड़क गई. आहत हो गई. अब क्या करें? आहत भावनाओं के लेकर कैसे शांत रहें? कैसे चुप रहें? बस पहुंच गए सब थाने, रपट लिखाने. उनका कहना है कि गाने को जिस तरह से फिल्माया गया है, वो आपत्तिजनक है क्योंकि गीत के बोल पैगम्बर साहब से जुड़े हैं.
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मुसीबत और फसाद की जड़ हैं ऐसी भावनाएं

फिल्म के निर्देशक ओमर लूलू सफाई दे रहे हैं कि ये गाना इस्लाम विरोधी नहीं है. लेकिन जिनकी भावनाएं एक बार भड़क जाती हैं , वो आसानी से काबू में कहां आती हैं .भड़क गई तो भड़क गई. पहले अपनी भड़की, अब दूसरों की भड़केगी. कुछ मौलवी-मौलाना कूदेंगे. सब अपनी भड़की भावनाओं की लौ को ही इतनी तेज करने की कोशिश करेंगे कि उसकी आंच-तपिश दूर तक पहुंचे. दूसरों की भावनाओं की अपनी जद में ले ले.

तो सारी मुसीबत और फसाद के पीछे ये भावनाएं ही हैं, जो बात-बेबात भड़क जाती हैं. आहत हो जाती हैं. जैसे पद्मावती पर पहले कलवी की भावनाएं भड़की. फिर उनके सूरज पाल की भड़की. फिर अपनी भड़की भावनाओं को लेकर बाजार में आ गए. टीवी चैनलों पर बैठ गए. नतीजा आपने देखा ही कि भड़की भावनाएं वालों की एक जमात तैयार हो गई. लाठी-डंडे और पत्थरों से लैस. इन भड़की भावनाओं ने देश को क्या-क्या नहीं दिखाया.

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कई मुख्यमंत्रियों ने भड़की भावनाओं के सामने सरेंडर कर दिया. सेंसर बोर्ड और सुप्रीम कोर्ट के फैसले को किनारे रखा, भड़की भावनाओं को सिर माथे. भड़की भावनाओं की आड़ में कहीं फिल्म रिलीज हुई, कहीं नहीं हुई. उनकी भड़की भावनाओं ने उन्हें टीवी चैनलों पर सैकड़ों घंटे का फुटेज दिया. नाम दिया, काम दिया. भड़की भावनाओं के होल सेल व्यापारी बनकर तीन महीने तक छाए रहे. अब देखिए भड़की भावनाओं वाले न जाने किस बिल में समा गए. अब शायद तभी निकलें जब उनकी भावनाएं फिर भड़केंगी.
(Photo Courtesy: Twitter)

क्या है ये खेल?

इन भड़की भावनाओं के पीछे कई बार ऐसे खेल भी होते हैं, जो आसानी से नहीं समझ आते. और अब खेल देखिएगा कि अगर इस वीडियो के गाने पर भावनाओं के भड़कने का सिलसिला तेज हुआ तो भड़की भावनाओं के खिलाफ सबसे अधिक वो उछलेंगे जिसकी भावनाएं ‘पद्मावत’ फिल्म से भड़की थी. अपनी भावनाएं भड़की तो ठीक, दूसरों की भड़की तो एतराज. ऐसा दोनों पक्षों के साथ होता है. सबकी अपनी भावनाएं नाजुक होती हैं. कई बार कुछ लेनदेन से भी भावनाएं भड़कती हैं. इसे पेड यानी बिकाऊ भावनाएं कह सकते हैं.

करणी सेना के सेनापतियों के बारे में भी शुरू में कहा गया था कि भंसाली और उनके बीच पेड भावनाओं को लेकर कुछ सौदा हुआ था. पता नहीं सच क्या है, लेकिन हमने कई बार टीवी चैनलों के स्टिंग ऑपरेशन में पेड भावनाओं के ठेकेदारों को बेनकाब होते देखा है. डील करो, माल दो और भड़की हुई भावनाएं लो. एक शहर में चाहिए या फिर कई शहरों में, सबका सौदा हो जाएगा जब काम हो जाएगा तो भड़की भावनाएं शांत हो जाएगी.

‘पद्मावत’ फिल्म से भड़की थी भावनाएं (फाइल फोटो: PTI)

नेता भी उफान में सवार होते हैं

नेतागण भी कई बार भावनाओं की ही सवारी करते हैं. कभी आहत भावनाओं की, कभी भड़की भावनाओं की. कई बार आहत भावनाओं को पता भी नहीं चलता कि उसकी कीमत कहां लग गई और उसके दम पर कौन पार लग गया. तो ये देश भावना प्रधान देश है. किसान प्रधान तो आप किताबों में पढ़ते रहे हैं. वो जमाना गया. अभी भावनाओं का दौर है. ये दौर भी देश ने समय -समय पर देखा है. जिसके पक्ष में भावनाएं आहत होती हैं, भड़कती हैं. वो कई बार फायदे में रहता है.

फिलहाल तो हम बात प्रिया वारियर के उस वीडयो की कर रहे थे, तो वहीं लौटते हैं. सुना है 26 सेकेंड के इस वीडियो की धूम देश की सरहद लांघ कर दुनिया भर में पहुंच चुकी है.

प्रिया प्रकाश की पॉपुलैरिटी ग्लोबल हुई

पड़ोसी पाकिस्तान में इसे काफी पसंद किया जा रहा है. प्रिया स्टार बन गई हैं. गूगल सर्च में उसने बड़े बड़े सितारों को पीछे छोड़ दिया है. इंस्टाग्राम पर उसके लाखों फॉलोअर हो गए हैं. उसकी अदाओं की दीवानगी करोड़ों के सिर चढ़कर बोल रही है. तो फिर भावनाएं कैसे भड़क रही है? लेकिन भावनाएं तो भावनाएं हैं. किसी ने खोज लिया है कि उस वीडियो के पीछे चल रहे गाने में पैगंबर का जिक्र है और उस गाने पर प्रिया की अदाएं नागवार हैं.

इस बीच उस गाने का अलग-अलग भारतीय भाषाओं में अनुवाद भी सामने आ गया. इतनी तेजी से इतनी भाषाओं में शायद ही कभी किसी गाने का अनुवाद हुआ होगा. गाने में पैगंबर साहब की महिमा है, लेकिन ऐतराज करने वालों का कहना है उनकी भावनाएं तो प्रिया की अदाओं से भड़की है, जो उस गाने पर भारी है.

खूबसूरत एक्सप्रेशन के पीछे चल रहे गाने के बोल के मायने तलाश कर भावनाएं भड़काने की कोशिशें तेज हो सकती हैं. होशियार रहिए. किसी भी साथी की भावनाएं अब भड़कने की तरफ बढ़े तो एक बार सोच लें, धड़कना बेहतर या भड़कना...

(अजीत अंजुम जाने-माने जर्नलिस्‍ट हैं. इस आर्टिकल में छपे विचार उनके अपने हैं. इसमें क्‍व‍िंट की सहमति होना जरूरी नहीं है)

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Published: 15 Feb 2018,02:02 PM IST

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