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तकरीबन हम सभी ने बचपन में ‘कॉमिक्स’ जरूर पढ़ी होंगी. जी हां कॉमिक्स! कॉमिक्स शब्द पढ़ते ही, सुनते ही बचपन की यादें ताजा हो जाती हैं- शिव-पार्वती, गुरु नानक, बीरबल द क्लेवर, सुभाषचंद्र बोस, हरिश्चंद्र, कुंभकर्ण वगैरह-वगैरह. ये कैरेक्टर बच्चों के बीच बेहद लोकप्रिय रहे हैं. स्कूल से आते ही अपना बैग कमरे के एक कोने में डाल देना और फौरन कॉमिक्स पढ़ने के लिए उस दुकान की तरफ लपक पड़ना, जहां कॉमिक्स का ढेर लगा होता था और साथ ही जहां बच्चों की भीड़ लगी होती थी और भीड़ हो भी क्यों न, सबको अपने-अपने चहेते कैरेक्टर, सुपर हीरो के बारे में पढ़ने की जल्दी जो होती थी.
‘अंकल पई’ के नाम से मशहूर होने वाले अनंत पई का जन्म 17 सितंबर, 1929 को कर्नाटक के कार्कल शहर में हुआ था. जब ये महज 2 साल के थे, तब इनके माता-पिता की मृत्यु हो गई थी.12 साल की उम्र में इन्होंने मुंबई का रुख किया और मुंबई विश्वविद्यालय से उच्च शिक्षा प्राप्त कर ‘टाइम्स ऑफ इंडिया’ की कॉमिक डिवीजन ‘इंद्रजाल कॉमिक्स’ से जुड़ गए.
यह 1967 का साल था. दूरदर्शन पर एक क्विज शो चल रहा था. सवाल-जवाब का दौर जारी था. अचानक एक सवाल पौराणिक पृष्ठभूमि से पूछा गया और सवाल का जवाब देने वाला वहीं गच्चा खा गया. उससे सवाल का जवाब न दिया गया. अनंत पई को यह देखकर बड़ा दुख हुआ और थोड़ा गुस्सा भी आया, लेकिन इसी गुस्से और दुख के ढेर के नीचे से एक ‘आइडिया’ ने उनके मन के दरवाजे पर दस्तक दी. और यह आइडिया था कार्टूनी अंदाज में बच्चों का मनोरंजन करने के साथ-साथ उन्हें नैतिक शिक्षा देना, उन्हें किस्से-कहानियों के रोचक अंदाज में पौराणिक एवं ऐतिहासिक कैरेक्टर्स के बारे में जानकारी देना और उनका यह आइडिया ‘अमर चित्रकथा’ के रूप में हकीकत बनकर सामने आया.
अपने ‘आइडिया’ को हकीकत में तब्दील करने वाले अंकल पई ने एक से बढ़कर एक क्रिएटिव कैरेक्टर्स को रचना शुरू कर दिया, जिन्हें हाथोहाथ लिया गया. 1969 में इन्होंने ‘रंगरेखा फीचर्स’ की स्थापना की तो 1980 में इन्होंने बच्चों की पत्रिका ‘टिंकल’ को पाठकों के बीच पेश किया, जिसे खूब सराहा गया.इसके साथ ही इन्होंने ‘रामू और श्यामू’ जैसे पात्रों को रचकर प्रत्येक वर्ग के पाठ के बीच अपनी खास जगह बनाई. सुंदर चित्रों की कारीगरी से सजे इनके ‘कॉमिकल कैरेक्टर्स’ ने तहलका मचा दिया. थोड़े ही समय में ‘अमर चित्रकथा’ ने लोगों के दिलों में गहरी पैठ बना ली.
अंकल पई का कैरेक्टर्स को पेश करने का अंदाज बहुत ही उम्दा और बड़ा ही निराला था. बच्चों को कॉमिक्स पढ़ने के दौरान अपने मां-बाप की नाराजगी नहीं झेलनी पड़ती थी और इसका सबसे बड़ा कारण यह था कि अनंत पई के द्वारा पेश किए जाने वाले कैरेक्टर्स में नैतिक शिक्षा का गुण जो समाया हुआ था.इससे बच्चों के ज्ञान में तो वृद्धि होती ही थी, साथ ही उनका भरपूर मनोरंजन भी होता था. ‘अमर चित्रकथा’ के जरिए इन्होंने परंपरागत लोककथाओं, पौराणिक कहानियों और ऐतिहासिक पात्रों को चुटीले, रंग-बिरंगे और आकर्षक अंदाज में प्रस्तुत कर बच्चों और बड़ों को लुभाने का सार्थक प्रयास किया और इस प्रयास में इन्हें बड़ी कामयाबी भी मिली. और इसी के साथ अंकल पई बच्चों, किशोरों और युवाओं को अपनी रंग-बिरंगी चित्रकारी वाली कारीगरी के जरिए भारतीय परंपरा एवं संस्कृति से रूबरू करने के अपने मकसद में कामयाब हो ही गए.
साहित्य को अद्भुत रूप में पेश करने और इसे ‘चित्रकथा’ शैली में प्रस्तुत कर नई ऊंचाई प्रदान के लिए ‘हिंदी साहित्य अकादमी’ पुरस्कार से सम्मानित किए जाने वाले अंकल पई दिल का दौरा पड़ने के कारण 24 फरवरी, 2011 को इस दुनिया को छोड़ दूसरी दुनिया का हिस्सा बन गए. ‘फादर ऑफ इंडियन कॉमिक्स’ अंकल पई को पौराणिक एवं ऐतिहासिक पात्रों को रंगों की कारीगरी में सराबोर कर उन्हें रोचक अंदाज में पेश करने के लिए हमेशा याद रखा जाएगा.
(एम.ए. समीर कई वर्षों से अनेक प्रतिष्ठित प्रकाशन संस्थानों से जुड़े हुए हैं. वर्तमान समय में स्वतंत्र लेखक, संपादक, कवि एवं समीक्षक के रूप में कार्यरत हैं. 30 से अधिक पुस्तकें लिखने के साथ-साथ अनेक पुस्तकें भी संपादित कर चुके हैं.)
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