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चुनावी रंग में हैं डोनाल्ड ट्रंप. इस रंग से कभी वे बेरंग हुए ही नहीं. बस, चुनाव नजदीक आने पर अधिक डूबे हुए नजर आ रहे हैं. छींटें अब गहरी और ज्यादा उभर कर दिखने लगी हैं. डोनाल्ड ट्रंप ने अमेरिका में ‘प्रोग्रेसिव’ शब्द का मतलब वैसे ही बदल डाला है जैसे भारत में ‘सेकुलर’ शब्द के मायने बदल दिए गए हैं.
रविवार को ट्वीट कर राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने चार अमेरिकी महिला सांसदों पर जो हमला बोला है उसने अमेरिका ही नहीं, पूरी दुनिया में नस्लीय भेदभाव की सियासत को अपने-अपने तरीके से जिंदा कर दिखाया है. ट्रंप के ट्वीट में जिन महिला सांसदों को निशाना बनाया गया है उनमें शामिल हैं न्यूयॉर्क की अलेक्जेंड्रिया ओकासियो-कार्तेज, मिनेसोटा की इल्हान उमर, मिशिगन की रशीदा तलैब और मैसाच्युसेट्स की अयाना प्रेसले.
चारों महिला सांसदों को ‘प्रोग्रेसिव’ डेमोक्रेट कांग्रेस-वुमन्स करार देते हुए अमेरिकी राष्ट्रपति ने उन्हें उन्हीं देशों में चले जाने को कहा है जहां से वह मूल रूप से हैं. नस्लीय टिप्पणी से आगे यह उस नफरत का नया पायदान है जहां कथित राष्ट्रवाद भी जुड़ जाता है.
अमेरिका में ट्रंप का राष्ट्रवाद अपने देश को धरती पर सबसे महान और ताकतवर बताता है. यह बहुत कुछ हिटलर के राष्ट्रवाद से मेल खाता है- हमारा देश, हमारी नस्ल दुनिया में सबसे ऊपर, सबसे श्रेष्ठ.
इंग्लैंड के विन्स्टन चर्चिल की भी याद आती है जिनका मानना था कि उनकी नस्ल के लोग राज करने के लिए पैदा हुए हैं. नेशन फर्स्ट, अमेरिका फर्स्ट जैसे नारे इसी परंपरा की कड़ी हैं. दूसरे देश से आकर बसे लोगों के प्रति एक खास किस्म की पसंद और नफरत का व्यवहार भी खुद को श्रेष्ठ बताने के बुनियादी सिद्धांत का एक आयाम भर है.
ट्रंप के मन में मुसलमानों के लिए जो भाव हैं उसे व्यक्त करने के लिए वे इजराइल के नाम का इस्तेमाल करते हैं. इजराइल के साथ अपनी दोस्ती को बार-बार सामने रखते हैं और इजराइल के विरोधियों के प्रति नफरत का इजहार करते हैं. गैर-मुस्लिमों का ध्रुवीकरण का मकसद इससे पूरा होता है. यही वजह है कि अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने चारों महिलाओं को ‘इजराइल का दुश्मन’ करार दिया है.
ट्रंप ने इन महिला सांसदों को ‘प्रोग्रेसिव’ बताने के लिए इनवर्टेड कॉमा का सहारा लिया है. मतलब ये कि पहली बार संसद में चुनकर आईं ये महिला कथित रूप से प्रगतिशील हैं. ट्रंप ने बिना नाम लिए इन महिलाओं पर बेलगाम जुनून के साथ इजराइल से नफरत करने का आरोप भी लगाया है. माना जा रहा है कि उनका इशारा इल्हान उमर और रशीदा तलैब की ओर है.
कम्युनिस्टों के प्रति ट्रंप का गुस्सा भी इजराइल के बहाने साफ तौर पर झलका है. डोनाल्ड ट्रंप ने सोमवार को ताजा ट्वीट में अपने विरोधियों को कम्युनिस्टों का समूह करार दिया है.
आखिर क्यों डोनाल्ड ट्रंप खुलकर नफरत की सियासत का नेतृत्व कर रहे हैं? इसका उत्तर जानने के लिए अमेरिका की जनसांख्यिकी पर नजर डालना जरूरी है. अमेरिका में 13 फीसदी अश्वेत हैं तो 48 फीसदी श्वेत. 24 फीसदी हिस्पैनिक हैं तो 14 फीसदी एशियाई मूल के. चार साल पहले तक अमेरिका में 14 प्रतिशत लोग ऐसे थे जो दूसरे देशों में पैदा हुए. अनुमान लगाया जा रहा है कि 2060 तक यह आबादी 14 से बढ़कर 19 हो जाएगी. डोनाल्ड ट्रंप अपनी टिप्पणी से यह मुद्दा भी सुलगा रहे हैं.
डोनाल्ड ट्रंप अपने विरोधियों को कतई नहीं बख्शते हैं. 15 जुलाई को ट्रंप ने स्पीकर मिस पेलोसी पर उल्टे नस्लवादी टिप्पणी करने का इल्जाम मढ़ दिया. एक नयी बहस छेड़ दी. मिस पेलोसी ने ट्रंप के अमेरिकी महिला सांसदों को उनके मूल देश लौट जाने के बयान पर उनकी निंदा की और कहा कि ट्रंप का नारा ‘मेक अमेरिका ग्रेट अगेन’ वास्तव में ‘मेक अमेरिका ह्वाइट अगेन’ है. मिस पेलोसी की इसी टिप्पणी पर ट्रंप हमलावर हो गए और उल्टे उन्हें ही नस्लवादी करार दिया.
ट्रंप के ताजा ट्वीट और विरोधियों से उनकी झड़प नयी बात नहीं है. नस्लीय टिप्पणियां डोनाल्ड ट्रंप खूब करते रहे हैं. 2018 में डोनाल्ड ट्रंप ने अफ्रीकी देशों को ‘बकवास’ करार दिया था और कहा था कि वहां से लोग केवल प्रवासी बनकर ही आते हैं. अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति बराक ओबामा के अमेरिकी होने पर भी सवाल उठा चुके हैं डोनाल्ड ट्रंप.
मीडिया का इस्तेमाल करना और उसे बुरा-भला कहना डोनाल्ड ट्रंप का स्वभाव रहा है. मीडिया की सुर्खियों में भी इसी बहाने वे खूब रहते हैं और उनकी आलोचना का कोई मौका भी नहीं छोड़ते. 12 जुलाई 2019 को ह्वाइट हाऊस में सोशल मीडिया समिट में डोनाल्ड ट्रंप ने कहा कि
19 जून 2019 को डोनाल्ड ट्रंप प्रवासियों पर टिप्पणी की थी “उमड़ पड़ो और हमारे देश को संक्रमित करो”. पहले भी वे विदेशी लोगों की तुलना जानवरों से कर चुके हैं और उन्हें ‘बुरों में सबसे बुरा’ करार दिया है.
14 अगस्त 2018 को डोनाल्ड ट्रंप ने अपनी पूर्व सहयोगी ओमारोसा मानीगॉल्ट न्यूमैन को ‘कुत्ता’ तक कह डाला था. डोनाल्ड की नस्लीय टिप्पणी का यह बदतर उदाहरण है.
डोनाल्ड ट्रंप के राष्ट्रपति बनने के बाद नस्लीय हिंसा में बढ़ोतरी हुई. ट्रंप के सत्ता में आने के एक महीने के भीतर ही 28 नस्लीय हिंसा के मामले दर्ज हुए थे.
प्रवासियों को ट्रंप ‘आक्रमण’ बताते रहे हैं और शरण लेने वालों को हिंसक अपराधी. ऐसे लोगों को ट्रम्प खतरनाक कारवां का सदस्य भी बताते हैं. वे कहते हैं कि प्रवासियों के अमेरिका में आने पर अगर प्रतिबंध लगा दिया जाए और कहा जाए कि एक हफ्ते बाद यह लागू होगा, तो एक हफ्ते के भीतर ही ये ‘बुरे लोग’ हमारे देश में घुस आएंगे. बड़ी संख्या में बुरे लोग वहां मिलेंगे.
ट्रंप अक्सर एक कहानी सुनाया करते हैं. एक विषैले सांप को पालने की कहानी. उसे अपने आस्तीन से लपेटे रखने की कहानी. इस कहानी में एक दिन सांप अपना स्वभाव दिखला देता है और अपने पालनहार को डंस लेता है. इस कहानी के बहाने ट्रंप दूसरे देशों से आए लोगों को सांप बताते हैं और ये कहते हैं कि मौका पड़ते ही वे हमें एक दिन जरूर डंसेंगे. ट्रंप इसे ‘सच बोलना’ या ‘सच बोलने की हिम्मत रखना’ मानते हैं.
ट्रंप ट्वीट ही नहीं करते, वे रीट्वीट भी करते हैं. कई बार ऐसे रीट्वीट ट्रंप ने किए हैं जो धार्मिक और नस्लीय नफरत को आगे बढ़ाते हैं. ट्रंप के कुछेक वायरल किए गये रीट्वीट वीडियो में शामिल हैं-
ये सभी वीडियो फेक निकले और गलत तरीके से नफरत फैलाने वाले साबित हुए.
ट्रंप हार मानने वालों में से नहीं हैं. वीडियो झूठा साबित हो जाए, उनके दावे गलत साबित हो जाएं, उनके तथ्य गलत हों मगर इन बातों से उन पर फर्क नहीं पड़ता. वाशिंगटन पोस्ट के फैक्ट चेकर के मुताबिक अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने 869 दिन में 10,796 गलत या भ्रमित करने वाले दावे किए हैं. फैक्ट चेकर में हर ट्वीट और बयान का उल्लेख है और उसके गलत होने का प्रमाण भी. फिर भी ट्रंप कहां रुकने वाले हैं. चुनाव सामने है और मैदान में आ डटे हैं डोनाल्ड ट्रंप. अपनी पहचान के साथ यानी नस्लीय और नफरत भरी टिप्पणियां, महिला विरोधी सोच, अंधराष्ट्रवाद और अंध नस्लवाद के महिमामंडन के साथ वे चुनाव मैदान में आ डटे हैं.
(प्रेम कुमार जर्नलिस्ट हैं. इस आर्टिकल में लेखक के अपने विचार हैं. इन विचारों से क्विंट की सहमति जरूरी नहीं है.)
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Published: 18 Jul 2019,10:47 PM IST