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अमेरिकी चुनावी प्रक्रिया की एक शानदार परंपराओं में एक है नेशनल कंवेंशन. जिनकी अमेरिकी राजनीतिक प्रणाली के बारे में जानकारी मुझसे भी कम है, उनके लिए एक क्विक गाइड. अमेरिका में दो बड़ी पार्टियां हैं: रिपब्लिकन्स जिनका पसंदीदा रंग रेड (लाल) है और डेमोक्रेट्स जिन्हें ब्लू (नीला) पसंद है। इसलिए जिन राज्यों में रिपब्लिकन पार्टी की सरकार है उन्हें रेड स्टेट और जहां डेमोक्रेट्स की सरकार है उन्हें ब्लू स्टेट कहा जाता है.
रिपब्लिकन्स को ग्रैंड ओल्ड पार्टी या जीओपी भी कहा जाता है, काफी कुछ अपने देश की कांग्रेस पार्टी की तरह. लेकिन वैचारिक तौर पर रिपब्लिकन्स और बीजेपी में ज्यादा समानता है, दक्षिण पंथ की ओर झुकाव, रूढ़िवादी और डेमोक्रेट्स ज्यादा कांग्रेस की तरह है सेंटर-लेफ्ट, उदारवादी विचार और दूसरी बातों में.
दोनों पार्टियां पारंपरिक तौर पर कार्यक्रमों का आयोजन करती हैं जिन्हें डेमोक्रेट्स नेशनल कंवेंशन और रिपब्लिकन नेशनल कंवेंशन कहा जाता है. ये कार्यक्रम, हमारे देश में होने वाली राजनीतिक रैलियों के उलट, बहुत बड़े स्तर पर और चमक-दमक से भरपूर होते थे. इन कार्यक्रमों का उद्देश्य दोनों पार्टियों के राष्ट्रपति और उपराष्ट्रपति पद के उम्मीदवारों के लिए औपचारिक तौर पर उनकी पार्टियों की ओर से आगामी चुनाव लड़ने के उनके नामांकन को स्वीकार करना था. जैसा कि आप अंदाजा लगाएंगे, इन कार्यक्रमों में जमकर दिखावा होता, मंच से बड़े-बड़े भाषण दिए जाते थे, और विरोधियों का मजाक उड़ाया जाता था.
इस साल कोरोना महामारी को लेकर लॉकडाउन और सोशल डिस्टेंसिंग के नियमों का धन्यवाद जिसके कारण डीएनसी और आएनसी दोनों को ऑनलाइन आयोजित करना पड़ा.
सबसे पहली बात ये कि ये कंवेंशन परेशान करने वाले, काफी लंबे होते हैं. हर कंवेंशन चार दिन से ज्यादा चलते हैं जिसमें हर दिन करीब ढाई घंटे के भाषण होते हैं और वीडियो दिखाए जाते हैं. इसका मतलब है हर कंवेंशन के लिए करीब 10 घंटे. मेरे प्यारे मित्रों ये हर पार्टी के सबसे उत्साही समर्थक के लिए भी ये राजनीति की बहुत बड़ी खुराक है.
अलग-अलग रेटिंग एजेंसी के मुताबिक डीएनसी और आरएनसी दोनों की टेलीविजन व्यूअरशिप 2016 के मुकाबले अब घट गई है. लेकिन ऐसा लगता है कि इन कार्यकमों की टीवी रेटिंग में आई कमी को ऑनलाइन व्यूअरशिप ने पूरा कर दिया है. लेकिन जैसा कि द न्यू यॉर्क टाइम्स कहता है “ऑनलाइन दर्शकों की संख्या को विश्वसनीय तरीके से मापना मुश्किल है”
भारत में अगले कुछ समय में महत्वपूर्ण चुनाव होने वाले हैं, विशेष रूप से नवंबर 2020 में होने वाले बिहार विधानसभा चुनाव, 2021 के जनवरी/फरवरी में होने वाले जम्मू-कश्मीर विधानसभा चुनाव और फिर मई 2021 में बंगाल, तमिलनाडु, असम और केरल में विधानसभा चुनाव.
राजनीतिक रैलियों को वहां आने वाले लोगों की संख्या के आधार पर मापने के लिए प्रसिद्ध अपने देश में सवाल ये होगा कि भारतीय राजनेता कैसे वर्चुअल प्रचार के नए तरीकों को अपना सकेंगे?
जैसे ही कार्यक्रम उनकी उम्मीदों पर खरा नहीं उतरेगा वो ‘ढिनचैक पूजा’ की सेल्फी लेने के बारे में वीडियो देखने लगेंगे. या इससे भी बुरा कैट वीडियो. हर कोई अच्छी तरह से जानता है कि कैट वीडियो से मुकाबला करना असंभव है.
ये रहे मेरे सुझाव:
(सुरेश वेंकट एक फ्रीलान्स एंकर, एडिटोरियल कंसलटेंट हैं. वो CNBC TV18, स्टार टीवी और रेडियो सिटी 91.1FM में काम कर चुके हैं. उनका ट्विटर हैंडल @suvenk है. इस आर्टिकल में व्यक्त विचार उनके निजी हैं और क्विंट का इससे सहमत होना जरूरी नहीं है.)
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