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आंध्र प्रदेश (Andhra Pradesh) में वाईएस शर्मिला (YS Sharmila) के राज्य कांग्रेस प्रमुख के रूप में कार्यभार संभालने के साथ ही संभावित चुनावी नतीजों के बावजूद सूबे की राजनीति में एक बड़ा बदलाव देखने को मिलेगा. राज्य में खत्म हो चुकी कांग्रेस को फिर से जिंदा करने की जिम्मेदारी संभालकर शर्मिला अब सीधे तौर पर अपने भाई और सत्तारूढ़ YSR कांग्रेस के अध्यक्ष और राज्य के मुख्यमंत्री YS जगन मोहन रेड्डी के खिलाफ खड़ी हैं.
आंध्र प्रदेश के राजनीतिक अखाड़े में कूदने से काफी पहले ही शर्मिला अपने भाई से अलग हो चुकी थीं. जब जगन को भ्रष्टाचार के आरोप में जेल में डाल दिया गया था, तब उन्होंने जगन के समर्थन में एक वॉकथॉन का आयोजन किया था. तब उन्होंने खुद को 'जगन का तीर' बताया था.
अपने भाई के साथ आमने-सामने होकर सूबे में उनकी वापसी से आंध्र प्रदेश के राजनीतिक लैंडस्केप में कई बदलाव हो सकते हैं. क्या वह राज्य में कांग्रेस को फिर से जिंदा कर पाएंगी? क्या वह विपक्षी तेलुगु देशम पार्टी (TDP)-जन सेना पार्टी गठबंधन से हाथ मिलाएंगी? और उनके आने से जगन और उनकी पार्टी पर क्या असर होगा?
तेलंगाना में वॉकथॉन करने और भारत राष्ट्र समिति (BRS) के खिलाफ बड़ा अभियान चलाने- कांग्रेस और बीजेपी के खिलाफ भी मोर्चा खोलने- इन सब राजनीतिक हथकंडों के बाद शर्मिला को जल्द ही एहसास हो गया कि तेलंगाना उन्हें 'स्वीकार' करने के लिए तैयार नहीं था. उनकी YSR तेलंगाना पार्टी बेकार साबित हुई.
इसके बाद उन्होंने 2023 में अपनी पार्टी का कांग्रेस में विलय करने का फैसला किया और तेलंगाना की सियासत में भूमिका मांगी. लेकिन राज्य में पार्टी के एक बड़े वर्ग (जिसमें अब मुख्यमंत्री और राज्य कांग्रेस प्रमुख रेवंत रेड्डी भी शामिल हैं) के कड़े विरोध की वजह से शर्मिला को आंध्र प्रदेश कांग्रेस में शामिल होने के लिए मजबूर होना पड़ा.
आंध्र प्रदेश में 2014 और 2019 दोनों चुनावों में कांग्रेस का वोट शेयर NOTA के वोटों से भी कम था, क्योंकि राज्य के लोग पार्टी को भूलने और माफ करने के लिए तैयार नहीं थे, खासकर जिस तरह से राज्य को विभाजित किया गया था. कई कांग्रेस नेता YS जगन मोहन रेड्डी के नेतृत्व वाली YSR कांग्रेस में शामिल हो गए थे, जो तब तक अपने पिता और लोकप्रिय मुख्यमंत्री YS राजशेखर रेड्डी की दुखद और असामयिक मौत की वजह से सहानुभूति के दौर में थे.
जगन का विद्रोह और विभाजन की मुसीबतें सबसे पुरानी पार्टी के लिए दोहरी मार साबित हुईं, जो खास तौर से इस इलाके से चुने गए सांसदों के समर्थन से केंद्र में दो बार सत्ता में रह सकी.
हालांकि, शर्मिला के चुनावों में बड़ा उलटफेर करने की संभावना कम ही है, इसके कई कारण हैं:
न तो कांग्रेस और न ही शर्मिला के पास आंध्र प्रदेश के वोटरों को साधने के लिए कोई आकर्षक राजनीतिक कहानी है. खुद को उस क्षेत्र के लिए प्रतिबद्ध बताकर तेलंगाना में एक पार्टी शुरू करने की उनकी सियासी गलती ने उनके लिए हालात और खराब कर दिए होंगे.
कांग्रेस इतनी कमजोर है कि शर्मिला से भी उसे ताकत नहीं मिल सकती, खासकर इतने कम वक्त में, क्योंकि राज्य में अगले कुछ महीनों में चुनाव होने हैं.
आंध्र प्रदेश की राजनीति YSR कांग्रेस और TDP-जन सेना गठबंधन के बीच बेहद ध्रुवीकृत है. इसके बाद भी बीजेपी को अपने पाले में करने के लिए लुभा रहा है. इस तरह के ध्रुवीकरण से किसी अन्य पार्टी के लिए जगह कम हो जाएगी.
शर्मिला के नेतृत्व वाली कांग्रेस, TDP के रहनुमाई वाले विपक्षी दल का हिस्सा बनने या न बनने की दुविधा में फंस गई है यानी यह नहीं समझ आ रहा कि क्या करना चाहिए और क्या नहीं. निस्संदेह, पहली बाधा बीजेपी पर स्पष्टता की कमी है. विपक्षी गठबंधन में शामिल होने के लिए TDP-जन सेना के निमंत्रण पर भगवा पार्टी अभी भी स्पष्ट नहीं है. चंद्रबाबू नायडू और पवन कल्याण दोनों कांग्रेस के बजाय बीजेपी को अपने गठबंधन में शामिल करना चाहते हैं क्योंकि उन्हें नरेंद्र मोदी के समर्थन से जगन से लड़ने की उम्मीद है.
शर्मिला को अपने पिता की राजनीतिक विरासत पर दावा करना होगा क्योंकि उनका अभियान 'आशीर्वाद राजन्ना बिड्डा' ('Bless Rajanna Bidda') नैरेटिव के आसपास केंद्रित होगा. लेकिन जब YSR की विरासत की बात आती है, तो जगन अपनी बहन को बहुत कम या कोई जगह नहीं देने पर पूरी तरह से अड़े हुए हैं. यह अभी भी तय नहीं है कि उनकी मां YS विजयम्मा, आंध्र प्रदेश में क्या रुख अपनाएंगी, हालांकि तेलंगाना में वह पूरी तरह से शर्मिला के साथ थीं.
YSR की विरासत को अपने चुनावी मुद्दे के रूप में रखते हुए, उन्हें किसी भी चुनावी गठबंधन में TDP में शामिल होना मुश्किल होगा, क्योंकि चंद्रबाबू नायडू और राजशेखर रेड्डी दोनों कट्टर प्रतिद्वंद्वी थे. वास्तव में, YSR कांग्रेस में अपनी पारी के दौरान अपने खुद के अभियान को पूर्ववत करने के लिए उन्हें पहले से ही कठिन स्थिति का सामना करना पड़ रहा है. उन्होंने तब आरोप लगाया था कि कांग्रेस ने उनके पिता की विरासत को खत्म करने की कोशिश की थी और YSR परिवार को छोड़ दिया था. इस तथ्य के बावजूद कि दिवंगत नेता ने दिल्ली में कांग्रेस के नेतृत्व वाले UPA शासन को आगे बढ़ाने में अहम भूमिका निभाई थी.
शर्मिला अभी भी अपने भाई के लिए एक बड़ी चुनौती बनी हुई हैं और उनसे आंध्र प्रदेश के चुनावी नतीजों पर स्पष्ट प्रभाव डालने की उम्मीद है.
ग्राउंड रिपोर्टों से पता चलता है कि जगन के 2019 चुनावों में मिले समर्थन को बरकरार रखने की संभावना नहीं है, जब उन्होंने राज्य विधानसभा में 175 में से 151 सीटें जीती थीं. विपक्षी एकता के बड़े इंडेक्स के साथ मुकाबला और ज्यादा चुनौतीपूर्ण हो गया है क्योंकि TDP और जन सेना ने एक मजबूत गठबंधन बना लिया.
प्रोसेस अभी भी जारी है. ऐसे नेताओं के एक वर्ग को शर्मिला में उम्मीद नजर आ रही है. TDP-जन सेना गठबंधन YSR कांग्रेस के असंतुष्ट लोगों को समायोजित नहीं कर सकता क्योंकि गठबंधन के अंदर सीटों के लिए बहुत बड़ी प्रतिस्पर्धा है.
इस तरह, आगामी चुनावों में YSR कांग्रेस के नाखुश नेताओं के कांग्रेस के उम्मीदवारों के रूप में फिर से सामने आने की उम्मीद है. चूंकि शर्मिला कांग्रेस का नेतृत्व कर रही हैं, इसलिए इन नेताओं को YS राजशेखर रेड्डी के सच्चे फॉलोवर्स के रूप में सबसे पुरानी पार्टी में शामिल होना राजनीतिक रूप से अनुकूल लगता है.
पड़ोसी राज्य तेलंगाना और कर्नाटक में शानदार जीत के साथ, कांग्रेस को आगामी राज्य विधानसभा और लोकसभा दोनों चुनावों में अपेक्षाकृत बेहतर प्रदर्शन की उम्मीद है. वास्तव में, कांग्रेस शायद लोकसभा चुनावों में बेहतर प्रदर्शन करेगी (कम से कम वोट शेयर के मामले में), भले ही दोनों चुनाव एक साथ हों.
इस बीच, YSR कांग्रेस और TDP दोनों विभाजन के वक्त आंध्र प्रदेश के शेष राज्य से किए गए वादों को पूरा न करने के लिए नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली बीजेपी शासन से लड़ने में फेल रहे.
तेज ध्रुवीकरण को देखते हुए, YSR कांग्रेस से शर्मिला की तरफ कोई भी छोटा बदलाव जगन को अहम नुकसान पहुंचा सकता है. हालांकि, YSR कांग्रेस के लिए एकमात्र उम्मीद यह है कि अगर शर्मिला के नेतृत्व वाली कांग्रेस विपक्ष (TDP-जन सेना) के वोट शेयर में सेंध लगाती है, तो यह फायदेमंद साबित होगा.
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