advertisement
करीब एक साल पहले केंद्र सरकार ने जम्मू और कश्मीर के संवैधानिक दर्जे को बदलने का विवादास्पद काम किया था और राज्य को दो केंद्र शासित प्रदेशों में बांटा था. इस मुद्दे पर जम्मू कश्मीर नेशनल कांफ्रेंस के नेता और पूर्व मुख्यमंत्रियों फारूक अब्दुल्ला और उमर अब्दुल्ला ने रविवार 26 जुलाई, 2020 को अपनी लंबी चुप्पी तोड़ी है.
रविवार को ऑल इंडिया रेडियो के श्रीनगर स्टेशन के करंट अफेयर्स प्रोग्राम शहरबीन को फारूक ने एक इंटरव्यू दिया और कहा कि वह और उनकी पार्टी गुपकर घोषणा के लिए प्रतिबद्ध है. पिछले साल 5 अगस्त को नजरबंद होने के बाद यह उनका पहला इंटरव्यू है.
नेशनल कांफ्रेंस के दो बड़े नेताओं ने यह बयान तब दिया, जब लेफ्टिनेंट गवर्नर गिरीश चंद्र मुर्मू ने इंडियन एक्सप्रेस को दिए गए इंटरव्यू में संकेत दिया कि भारत का चुनाव आयोग डिलिमिटेशन का काम पूरा करने से पहले ही जम्मू और कश्मीर में विधानसभा चुनाव करा सकता है.
“... डिलिमिटेशन कमिटी बना दी गई है, अब डिलिमिटेशन शुरू होगा. विधानसभा चुनाव इसके साथ हो सकते हैं, या इसके बाद. तो, यह काम साथ-साथ हो रहा है. मुझे लगता है कि यह वैक्यूम जल्द खत्म होगा.” मुर्मू ने ऐसा तब कहा था, जब उनसे पूछा गया था कि जम्मू और कश्मीर में राजनैतिक प्रक्रिया और नई विधानसभा का काम कब शुरू होगा.
जून 2018 में महबूबा मुफ्ती की पीडीपी और भाजपा गठबपंधन के टूटने के बाद से जम्मू और कश्मीर में गवर्नर और राष्ट्रपति शासन लागू है.
एलजी के इंटरव्यू से पहले ज्यादातर राजनीतिज्ञों और पत्रकारों का मानना था कि जम्मू और कश्मीर में विधानसभा चुनाव डीलिमिटेशन की प्रक्रिया पूरा होने के बाद होंगे- 2021 या शायद 2022 में. लेकिन अब यह अंदाजा लगाया जा रहा है कि केंद्र कुछ शहरी स्थानीय निकायों को भंग करके इस अड़चन को दूर करेगा और श्रीनगर म्यूनिसिपल कॉरपोरेशन (एसएमसी) के चुनाव भी कराएगा.
एसएमसी पर भाजपा का नियंत्रण है. इसके काउंसिलर्स पर भ्रष्टाचार, खरीद फरोख्त, अपहरण, सोशल मीडिया पर गाली गलौच करने, गलत तरीके से बंधक बनाने, एक दूसरे के खिलाफ नो ट्रस्ट मोशन रखने जैसे गंभीर आरोप हैं, खास तौर से पिछले एक साल में.
4 अगस्त 2019 को सभी राजनैतिक पार्टियों के वरिष्ठ नेता फारूक अब्दुल्ला के बंगले पर मिले. उनका बंगला श्रीनगर के गुपकर रोड पर स्थित है. उन्हें इस बात का अंदाजा था कि अनुच्छेद 370 और 35-ए को हटाया जा सकता है. इस बैठक में यह प्रस्ताव रखा गया कि ‘सभी पार्टियों को एकजुट होना चाहिए... और जो कुछ भी हो, जम्मू कश्मीर की पहचान, स्वायत्तता और विशेष दर्जे पर होने वाले हमलों को रोकना चाहिए’. यह भी कहा गया कि ‘संशोधन, अनुच्छेद 35-ए, 370 को हटाना, राज्य का असंवैधानिक तरीके से डिलिमिटेशन या उसे तीन टुकड़ों में बांटना, जम्मू, कश्मीर और लद्दाख के लोगों पर आघात करने जैसा होगा.’
इस साल 19 जून को फारूक अब्दुल्ला सहित नेशनल कांप्रेंस के नेताओं ने संयुक्त बयान जारी करके कहा कि उनकी पार्टी स्टेटहुड को बहाल करने और बिना समझौता किए उसके विशेष दर्जे के लिए संघर्ष करती रहेगी.
एआईआर के इंटरव्यू में फारूक ने यह दोहराया था कि कश्मीरी नेतृत्व पर क्या कार्य योजना बनाई जाएगी, यह तब तय होगा, जब ‘बाकी लोग’ भी रिहा हो जाएंगे, पर उन्होंने यह जरूर कहा था कि गुपकर योजना पर कोई समझौता नहीं किया जाएगा. “(गुपकर योजना) पर हमारा रुख नहीं बदलेगा. 370, 35-ए, हमसे जो भी छीना जाएगा, हम उसे वापस लेंगे.” हालांकि उन्होंने डिलिमिटेशन प्रक्रिया को ‘गलत’ कहते हुए रद्द किया था. नेशनल कांफ्रेंस पहले ही यह साफ कर चुकी है कि जब तक उसकी याचिका पर सुप्रीम कोर्ट कोई फैसला नहीं सुनाता, तब तक वह चुनाव आयोग की डिलिमिटेशन कमिटी से खुद को अलग रखेगी.
फारूक ने कहा था कि उनकी पार्टी ‘संवैधानिक तरीके से’ 4 अगस्त 2019 की स्थिति की बहाली के लिए संघर्ष करेगी. पर उन्होंने यह नहीं बताया था कि अगर कानूनी लड़ाई लंबी चली या सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र के पक्ष में फैसला सुनाया तो क्या नेशनल कांफ्रेंस चुनावों में हिस्सा लेगी.
इसी से इस बात के शुरुआती संकेत मिले थे कि नेशनल कांफ्रेंस अनुच्छेद 370 और 35-ए की बहाली की अपनी लड़ाई को कुछ समय के लिए रोक सकती है, और लोकतांत्रिक प्रक्रियाओं में भाग ले सकती है. ध्यान देने वाली बात यह भी है कि कश्मीर से नेशनल कांफ्रेंस के तीनों लोकसभा सदस्यों, फारूक अब्दुल्ला, मोहम्मद अकबर लोन और हसनैन मसूदी ने संसद से इस्तीफा नहीं दिया है.
फारूक की तरह उमर भी नरेंद्र मोदी सरकार की अगस्त 2019 की कार्रवाई के सख्त खिलाफ हैं. पर यह बात मायने रखती है कि अपने आर्टिकल में उन्होंने यह कहीं नहीं कहा कि अगर अनुच्छेद 370 और 35-ए बहाल नहीं किए जाते तो वह चुनाव नहीं लड़ेंगे. उन्होंने कहा था, “जहां तक मेरी बात है, मैं यह स्पष्ट कर देना चाहता हूं कि अगर जम्मू और कश्मीर केंद्र शासित प्रदेश रहते हैं तो मैं विधानसभा चुनाव नहीं लडूंगा. मैं सबसे मजबूत विधानसभा का सदस्य रहा हूं- यहां तक कि छह साल तक उस विधानसभा का नेता भी रहा हूं, अब मैं ऐसे सदन का सदस्य नहीं रह सकता, जिसे इस तरह कमजोर किया गया है.”
दरअसल ‘स्टेटहुड की बहाली’ भाजपा की खुद की मांग है और प्रधानमंत्री मोदी और गृह मंत्री अमित शाह की तरफ से अस्पष्ट प्रतिबद्धता भी. इसे जम्मू में भाजपा नेताओं की अभिलाषा कहा जाता है जोकि इस बात से थोड़ा परेशान हैं कि लद्दाख को तो यूटी का दर्जा मिल गया, पर जम्मू को जम्मू-कश्मीर का एक छोटा सा
हिस्सा बना दिया गया. जब अमित शाह ने जम्मू और कश्मीर पुनर्गठन विधेयक को पेश किया था, तब उन्होंने संसद में यह कहा था कि जम्मू कश्मीर के स्टेटहुड पर विचार किया जा सकता है. पर इसकी शर्त सिर्फ यह है कि ‘शांति बहाल हो जाए’.
जम्मू और कश्मीर में एक साल से राजनैतिक शून्य कायम है. अगर केंद्र ‘आतंकवाद की समाप्ति’ की घोषणा कर दे और लद्दाख को छुए बिना स्टेटहुड को बहाल करने के अपने वादे को पूरा कर दे तो हैरानी नहीं होगी कि नेशनल कांफ्रेंस, पीडीपी, कांग्रेस और दूसरी पार्टियां चुनावों में उतर जाएं. इसी तरह जम्मू और कश्मीर के विशेष दर्जे को खत्म करने का भाजपा का सपना पूरा हो जाएगा.
लेखक श्रीनगर स्थिति वरिष्ठ पत्रकार हैं. वह @ahmedalifayyaz पर ट्विट करते हैं)
(क्विंट हिन्दी, हर मुद्दे पर बनता आपकी आवाज, करता है सवाल. आज ही मेंबर बनें और हमारी पत्रकारिता को आकार देने में सक्रिय भूमिका निभाएं.)
Published: 29 Jul 2020,02:05 PM IST