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भारतीय राजनीति में मायावती एक बड़ी और अनुभवी नेता हैं. कई बार उनका राजनीतिक दांव हमें चकित भी करता रहा है. उनके ताजा बयान ने सिर्फ इतना ही जाहिर किया है कि वो बहुत गंभीर दुविधा में हैं. मायावती को विपक्षी नेताओं के इस वक्त श्रीनगर जाने पर ऐतराज है. उनका कहना है कि
मायावती ने ये बातें सोमवार (26 अगस्त 2019) को अपने ट्वीट में कहीं. जबकि विपक्षी नेताओं ने शुक्रवार (23 अगस्त 2019) को ऐलान किया था कि वो अगले दिन श्रीनगर जाएंगे और कश्मीरी लोगों से मिलकर उनका दुःख-दर्द जानेंगे. क्योंकि तब तक केंद्र सरकार कई बार ये दावा कर चुकी थी कि कश्मीर में हालात ‘सामान्य’ हैं.
मायावती ने ये साफ नहीं किया कि अब पूरी तरह से मोदी सरकार की नीतियों पर उनका क्या रुख है? क्या उन्होंने सरकार या एनडीए से बाहर रहकर उसे मुद्दों पर आधारित समर्थन देने की नीति बना ली है? सबसे पहले मायावती का ट्वीट देखें-
मायावती के बयान का मतलब ये है कि विपक्ष को मोदी सरकार के दावों पर यकीन करना चाहिए. सरकार की तरह विपक्ष को भी इस बात को नजरअंदाज करना चाहिए कि लाखों कश्मीरी, जो अनुच्छेद 370 की विदाई के बाद अब तो पूरी तरह से भारतीय नागरिक हैं. उन्हें भी वैसे ही हालात में रखा जाए, जैसे कश्मीरी पंडितों को अपने ही देश में शरणार्थियों जैसी जिंदगी बितानी पड़ रही है. कश्मीरी लोगों के तमाम देशभक्त या देशद्रोही नेताओं को जेलों में डालने की नीति की भी क्या मायावती परोक्ष रूप से समर्थन कर रही हैं? ये भी साफ नहीं है.
अगर हां, तो देर-सबेर ही सही, उन्हें इसका भी खुलासा करना ही चाहिए कि आगे से वो कभी किसी प्रभावित क्षेत्र में सरकार की इजाजत के बगैर जाने की जरूरत नहीं करेंगी.
बाबा साहेब भीमराव अंबेडकर की दिखायी राह पर चलने की बात करने वाली मायावती क्या कभी ये भी साफ करेंगी कि अनुच्छेद 370 के विरोधी बाबा साहेब ने आखिरकार इसे संविधान का अस्थायी प्रावधान भी क्यों बनने दिया? मायावती को ये भी साफ करना चाहिए कि जिस वक्त 299 सदस्यों वाली संविधान सभा ने अनुच्छेद 370 को संविधान में शामिल किया, उस वक्त बाबा साहेब उस फैसले से सहमत नहीं थे?
यहीं कुछ अहम तारीखों का जिक्र भी बेहद जरूरी है, ताकी इस लेख के पाठक खुद भी सच्चाई को परख सकें. मसलन,
1951-52 में हुए पहले आम चुनाव में डॉ भीमराव रामजी अंबेडकर बॉम्बे लोकसभा सीट पर हार गए. नेहरू ने उन्हें राज्यसभा सदस्य बनाया. 6 दिसंबर 1956 को अपने निधन के समय अंबेडकर राज्यसभा में दूसरे टर्म के सदस्य थे. उन्होंने हिन्दू कोड बिल के जरिये ‘स्त्री-पुरुष समानता’ के मुद्दे पर नेहरू कैबिनेट से इस्तीफा दे दिया. इसी कैबिनेट में 6 अप्रैल 1950 तक जनसंघ के संस्थापक श्यामा प्रसाद मुखर्जी, उद्योग और आपूर्ति मंत्री रहे और अपने निधन यानी 15 दिसंबर 1950 तक सरदार वल्लभभाई पटेल, उपप्रधानमंत्री और गृहमंत्री रहे.
उनकी कुछ वैचारिक आपत्तियां हो सकती हैं, लेकिन वो कैबिनेट के ‘सामूहिक उत्तरदायित्व’ के उस सिद्धांत से बंधे हुए थे, जो हमारे संविधान की आत्मा है. अलबत्ता, तमाम खोजबीन के बाद इतना जरूर पता चला कि पहली बार 1990 में राष्ट्रीय स्वयंसेवक के एक प्रकाशन ‘तरूण भारत’ ने दावा किया कि अंबेडकर अनुच्छेद 370 के खिलाफ थे.
(ये आर्टिकल सीनियर जर्नलिस्ट मुकेश कुमार सिंह ने लिखा है. आर्टिकल में छपे विचार उनके अपने हैं. इसमें क्विंट की सहमति होना जरूरी नहीं है.)
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Published: 27 Aug 2019,06:40 PM IST