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मंत्री पद से हटाए जाने से ठीक पहले तक आम आदमी पार्टी का सबसे चमकता चेहरा रहे कपिल मिश्रा जब प्रेस कॉन्फ्रेंस के दौरान ही बेहोश-से होकर गिरे, तो ये बात साबित हो गई कि कपिल मिश्रा अरविंद केजरीवाल स्कूल ऑफ पॉलिटिक्स से पूरी दीक्षा लेकर निकले हैं.
हालांकि, बेहोश होकर गिरने से पहले तक कपिल मिश्रा केजरीवाल को साथ लेकर जितना नीचे तक गिर सकते थे, गिर चुके थे. कपिल मिश्रा ने केजरीवाल पर पार्टी के जरिए कालेधन को सफेद में बदलने का बड़ा आरोप लगाया.
कपिल ने कहा कि आम आदमी पार्टी फर्जी कंपनियों से मिले चन्दे की रकम के बारे में जानकारी छिपाई है. उन्होंने आरोप को और मजबूत करते हुए बताया कि मोतीनगर से आम आदमी पार्टी के विधायक शिवचरण गोयल के नाम पर 16 फर्जी कंपनियां बनाई गई हैं. और उन्हीं कंपनियों ने केजरीवाल को रात 12 बजे 2 करोड़ रुपये दिए.
कालाधन सफेद करने के मामले में कपिल मिश्रा ने सोमवार को सीबीआई में अरविंद के खिलाफ शिकायत दर्ज कराने की भी बात कही है. कपिल के मुताबिक, एक्सिस बैंक की कृष्णानगर शाखा में आम आदमी पार्टी का खाता है और इसी शाखा से सारा लेन-देन हुआ है.
लेकिन, कपिल मिश्रा सिर्फ आम आदमी पार्टी और केजरीवाल पर भ्रष्टाचार के आरोप लगाकर ही नहीं रुके. बेहोश होकर गिरने से पहले कपिल मिश्रा सड़क पर दो आवारा लड़कों की लड़ाई जैसी भाषा बोलने लगे.
कपिल मिश्रा ने कहा कि अरविंद केजरीवाल, तुममें जरा भी शर्म बची है, तो इस्तीफा दो. और अगर तुमने शाम तक इस्तीफा नहीं दिया, तो तुम्हारे ऑफिस से कॉलर पकड़कर तिहाड़ जेल ले जाऊंगा.
ये चुनौती देते कपिल मिश्रा बेहोश होने के नजदीक पहुंच गए थे. प्रेस कॉन्फ्रेंस के बीच में बेहोश हुए कपिल मिश्रा को सीधे राममनोहर लोहिया अस्पताल ले जाया गया, जहां उनका इलाज चल रहा है.
ऐसे में ये उम्मीद की जा रही थी कि केजरीवाल जरूर मीडिया के सामने, जनता के सामने अपना पक्ष रखने आएंगे. लेकिन उनकी जगह संजय सिंह, आशुतोष और राघव चड्ढा मीडिया के सामने आए.
उन्होंने अपना पुराना आरोप फिर से दोहराकर ही अपनी बात शुरू की. संजय सिंह ने कहा कि कपिल मिश्रा पूरी तरह से बीजेपी के एजेंट हैं और बीजेपी के इशारे पर आम आदमी पार्टी और अरविन्द केजरीवाल को बदनाम करने की कोशिश कर रहे हैं.
राघव चड्ढा ने कहा कि आम आदमी पार्टी में शामिल होने से पहले भी वो विदेश जाते रहे हैं. दरअसल कपिल मिश्रा, संजय सिंह और राघव चड्ढा सहित आम आदमी पार्टी के कई सदस्यों के विदेश जाने का ब्योरा सार्वजनिक करने की मांग कर रहे हैं. अरविन्द तो अब सामने आने से बच रहे हैं, लेकिन अरविन्द के सिपहसालार जिस तरह से कपिल के आरोपों का सही जवाब देने के बजाय कपिल को बीजेपी का एजेंट साबित करने में जुटे हैं, उससे दाल काली नजर आती है.
सबसे बड़ी बात ये है कि आरोप लगाकर छवि खराब करने का ये मंत्र राजनीति में अरविन्द ने ही नए सिरे से ईजाद किया.
हालांकि, बाद में जंतर-मंतर पर धरनास्थल पर आरोप लगाते हुए जिन 15 लोगों के चेहरे पर कालिख पोत दी गई थी, उसमें से एक तस्वीर हटा दी गई थी.
केजरीवाल की यही शैली रही है. कपिल मिश्रा उस समय नए राजनीतिक रंगरूट की तरह अरविन्द के पीछे-पीछे घूमते थे. यहां तक कि कपिल को अपनी मां की बात भी बुरी लगने लगी थी, जो बीजेपी नेता हैं. इसकी परिणति कपिल मिश्रा के आम आदमी पार्टी के टिकट पर चुनाव लड़कर जीतने और मंत्री बनने से हुई.
इसीलिए जब कपिल ये कहते हैं कि वो अरविन्द की हर हरकत को जानते हैं, तो उस पर भरोसा बनता है. कपिल ने रविवार की प्रेस कॉन्फ्रेंस करके ये साबित भी कर दिया है.
प्रशान्त भूषण और योगेन्द्र यादव भी आम आदमी पार्टी के सिद्धान्तों से समझौते की बात कहकर ही बाहर निकले थे. और अब अन्ना हजारे भी कह रहे हैं कि मुझे लगा तो मैं अरविन्द के खिलाफ दिल्ली में अनशन करूंगा.
कुल मिलाकर, बिना किसी पुख्ता सबूत के आरोप हवा में उछालकर सबको बेईमान साबित करने की राजनीति के जरिए मुख्यमंत्री बन गए अरविन्द पर अब उन्हीं का एक पक्का वाला चेला भ्रष्टाचार का आरोप लगा रहा है.
जो राजनीति में अरविन्द ने बोया, उसकी फसल तैयार हो गई, उसी को वो काट रहे हैं. बस वो फसल उन्हीं के खिलाफ इतनी जल्दी खड़ी हो जाएगी, ये कल्पना नहीं थी. आरोपों में सच्चाई कितनी है, ये तो जांच के बाद ही सामने आएगा और ऐसे मामलों में ज्यादातर ये सामने आता भी नहीं है.
कमाल की बात ये कि हर बात पर सड़क पर उतर आने वाले, जनता से राय लेने वाले और मीडिया के सामने कागज के पुलिंदे लेकर आने वाले केजरीवाल डरे से दिख रहे हैं. वो कपिल मिश्रा के आरोपों का जवाब देने का साहस नहीं जुटा पा रहे हैं. केजरीवाल के पास न तो देशव्यापी कैडर है, न कोई विचारधारा, न समर्पित लोग और न ही लम्बे समय की राजनीति का अनुभव.
अरविन्द केजरीवाल और उनकी पार्टी के पास सिर्फ और सिर्फ देश की राजनीति को बदलने का भ्रम देने वाली ईमानदार छवि थी. और इस बार उसी पर तगड़ी चोट लगती दिख रही है. अरविन्द के पास इस्तीफा देकर फिर से संघर्ष को आगे बढ़ाने के अलावा कोई रास्ता नहीं है. लेकिन मुश्किल ये है कि जो व्यक्ति अपनी निजी तानाशाही में प्रशान्त भूषण और योगेन्द्र यादव को लम्बे समय तक साथ नहीं रख सका, वो किस पर भरोसा करेगा.
और अगर सत्ता दूसरे को देने का भरोसा अरविन्द नहीं कर सके, तो शायद ही देश की जनता का भरोसा अब उस तरह से अरविन्द पर बन सके.
(हर्षवर्धन त्रिपाठी वरिष्ठ पत्रकार और जाने-माने हिंदी ब्लॉगर हैं. इस आलेख में प्रकाशित विचार उनके अपने हैं. आलेख के विचारों में क्विंट की सहमति होना जरूरी नहीं है.)
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