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उत्तर-पूर्वी भारत के सामाजिक और राजनीतिक इतिहास में 9 अगस्त, 2016 का दिन एक विडंबना से भरे और दुखद दिन के रूप में दर्ज हो चुका है.
इस दिन मणिपुर की आयरन लेडी कही जाने वाली इरोम शार्मिला ने इंफाल के पूर्वी जिले और सेशन कोर्ट में अपने 16 साल से चल रहे अनशन को तोड़ने की बात कही. मणिपुर के विवादित सशस्त्र बल विशेष शक्तियां अधिनियम (अफस्पा) के विरोध में इरोम शर्मिला ये अनशन कर रही थीं.
अनशन टूटने के बाद जवाहरलाल नेहरू इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल साइंसेज (जेएनआईएमएस) कॉम्पलेक्स में शार्मिला ने शहद खाकर आधिकारिक रूप से अपना अनशन तोड़ा.
इसी समय अरुणाचल प्रदेश में पूर्व मुख्यमंत्री कलिखो पुल अपने आधिकारिक निवास, जिसे उन्होंने पद से हटने के बाद खाली नहीं किया था, उसमें मृत पाए गए. सुप्रीम कोर्ट के आदेश और उसके बाद बने राजनीतिक समीकरण के चलते उन्हें अपना पद छोड़ना पड़ा था, जिससे पुल कथित रूप से अवसाद के शिकार हो गए थे. इसके चलते उन्होंने ये कदम उठाया.
क्या ये विडंबना नहीं कि जिस दिन शर्मिला ने राजनीति में आने की इच्छा जाहिर की, उसी दिन पुल ने अपना जीवन समाप्त कर लिया? आखिर भारत के इस छोटे से राज्य में निर्णय और सहमतियों में इतना विरोधाभास क्यों है? क्या ये विरोधाभास यहां मौजूद सैकड़ों जातीय समुदायों की अलग पहचान, रिवाज और विश्वास की वजह से है? या फिर वो वजह जो शार्मिला ने अपने भाषण में कही थी कि अगर राजनीति गंदी है, तो हमारा समाज भी उतना ही गंदा है.
अपना अनशन तोड़ने की घोषणा करने के बाद शर्मिला ये फरियाद करती दिखीं कि लोगों को ये समझना होगा कि वो एक आम इंसान हैं. उन्हें भी जीने, खाने और प्यार करने का हक है. एक और विडंबना ये भी थी कि जब वो ये फरियाद कर रही थीं, उसी दौरान अफस्पा को मानवाधिकारों का उल्लंघन करने वाले कठोर कानून की संज्ञा दी गई.
हालांकि मणिपुर के कई नागरिक समाज संगठनों और मीरा पाईबिस ने कहा है कि वो अफस्पा के खिलाफ अपनी लड़ाई जारी रखेंगे, लेकिन अधिकतर का शर्मिला के इस फैसले के बाद मोहभंग सा हो गया है.
इन संगठनों का प्रतिनिधित्व करने वाले कुछ लोगों ने शार्मिला के इस फैसले के बाद चेराप कोर्ट के परिसर में भाषण दिया. उन्होंने कहा कि शर्मिला को गुमराह किया गया है. ये भारत सरकार की अफस्पा के विरोध में चल रही पूरी प्रकिया को कमजोर करने की कोशिश है.
जिस चेराप कोर्ट कॉम्प्लेक्स में शर्मिला पेश हुई थीं, उससे कुछ ही दूर एक बिल्डिंग में एक्स्ट्रा जूडीशियल एग्जीक्यूशन विक्टिम फैमिलीज एसोसिएशन मणिपुर (ईईएफएएम) ने अपना अस्थाई ऑफिस बना रखा है.
ईईएफएएम ने 2012 में याचिका दायर की थी, जिसके आधार पर सुप्रीम कोर्ट ने 8 जुलाई को ये आदेश पारित किया था कि सेना और पुलिस अफस्पा का हवाला देकर अत्याधिक बल का प्रयोग नहीं कर सकेगी.
ईईएफएएम के लिए काम करने वालों ने माना कि शर्मिला के अनशन तोड़ने से इन दस्तावेजों के तैयार होने पर कोई सीधा असर नहीं पड़ेगा. लेकिन उन्होंने इसे एक महत्वपूर्ण संयोग भी माना कि एक तरफ दस्तावेज तैयार होने में कुछ ही समय बाकी था और दूसरी तरफ शर्मिला ने अपना अनशन वापस ले लिया.
मणिपुर के राजनीतिक-कानूनी इतिहास में ऐसा पहली बार हुआ है जब किसी सरकारी अधिकारी ने ये बात कोर्ट के सामने कबूल की है कि सेना ने अफस्पा की आड़ में फर्जी एनकाउंटर किए हैं.
सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद मणिपुर में अफस्पा से जुड़े अपराधों के सामने आने का नया दरवाजा खुल गया है. लेकिन जो सबसे बड़ा सवाल लोगों के दिमाग में है वो ये कि क्या ये ‘गंदा समाज’ इस लड़ाई को अंत तक जारी रख पाएगा? या फिर वो केवल शर्मिला के अनशन तोड़ने और राजनीति से जुड़ने की घोषणा की आलोचना ही करता रह जाएगा?
(लेखक अनुराग बरुआ गुवाहटी बेस्ड एक फ्रीलांस पत्रकार हैं.)
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Published: 12 Aug 2016,09:30 PM IST