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‘घोषणापत्र’ पर घटते विश्वास के बीच अब इसका नाम भी बदलने लगा है. मध्यप्रदेश में कांग्रेस ‘वचन पत्र’ लेकर सामने आयी है तो छत्तीसगढ़ में बीजेपी ‘अटल संकल्प पत्र’. कांग्रेस ‘जुमला पत्र’ कहकर और बीजेपी ने ‘झूठा घोषणापत्र’ कहकर ‘घोषणापत्र’ में निहित अविश्वास की धारणा को अलग-अलग रंगों से पुख्ता किया है.
‘घोषणापत्र’ मतदाताओं के बीच राजनीतिक दलों का ‘दिल’ माना जाता रहा है. बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह ने कांग्रेस पर आरोप लगाया है कि उसने उनका घोषणापत्र ‘चुरा’ लिया है. दूसरे शब्दों में कहें तो अमित शाह कह रहे हैं कि कांग्रेस ने बीजेपी का ‘दिल’ चुरा लिया है। मोहब्बत की दुनिया में कोई किसी का दिल चुरा ले, तो जिसका दिल चोरी हो चाता है उसे खुशनसीब माना जाता है. मगर, राजनीति की दुनिया अलग होती है, यहां बीजेपी छाती पीट रही है.
जिस रास्ते गुजरे थे राम, वहां चित्रकूट में राम वन गमन पथ सर्किट निर्माण
हर पंचायत में गौशाला का निर्माण
गोमूत्र और गोबर से बने कंड का व्यावसायिक उत्पादन
आध्यात्मिक विभाग बनाने का वादा
संस्कृत को बढ़ावा
बीजेपी के नजरिए से देखें तो कांग्रेस ने ‘राम’ और ‘गाय’ दोनों की जो राजनीतिक चोरी अपने घोषणापत्रों में की है उसकी प्रेरणा उसे बीजेपी से ही मिली है. कभी कांग्रेस ने अयोध्या में राम मंदिर का ताला खुलवाया था, जहां से बीजेपी 1992 आते-आते ‘राम’ को उड़ा ले गयी. अब वह दोबारा ‘राम’ को पाने की फिराक में दिख रही है साथ-साथ गाय को भी वह अपने साथ रखना चाहती है, जो ‘बीफ विवाद’ के कारण उससे दूर हुई है.
बीजेपी पर कांग्रेस के ‘दिल चुरा लेने’ का दबाव इतना ज्यादा बढ़ गया है कि वह खुलकर तेलंगाना में ‘दिलफेंक’ हो गयी है. तेलंगाना में 7 दिसंबर को चुनाव है और अभी पार्टी का घोषणापत्र सामने नहीं आया है. मगर, पार्टी के घोषणापत्र समिति के प्रमुख एनवीएसएस प्रभाकर ने मीडिया में यह बात लीक कर दी है कि बीजेपी की भावी सरकार तेलंगाना में हर साल 1 लाख से ज्यादा गायें मुफ्त बांटा करेगी. नरमदिल, बेचारी, निरीह गायें कांग्रेस और बीजेपी दोनों के लिए ‘परम’आदरणीय बन चुकी हैं और दोनों ही दलों को चुनाव के मैदान में ताकत देती दिख रही हैं.
कांग्रेस के वचनपत्र के जिस हिस्से का बीजेपी जिक्र नहीं कर पा रही है उनमें शिवराज सिंह सरकार के भ्रष्टाचार के आरोपों की जांच के लिए जनआयोग बनाने का वादा शामिल है. इस आयोग में गणमान्य लोगों को शामिल करने का प्रस्ताव है. बहुचर्चित व्यापमं जो अब प्रोफेशनल एक्जामिनेशन बोर्ड पीईबी नाम से अस्तित्व में है, उसे ख़त्म करने की भी घोषणा कांग्रेस ने कर दी है.
75 हजार 800 करोड़ के कृषि ऋण की माफी
किसानों का बिजली बिल आधा करने का वादा
डीजल-पेट्रोल पर छूट
रसोई गैस पर छूट
हर परिवार के एक बेरोजगार को 10 हज़ार रुपयेदेना
सामाजिक सुरक्षा पेंशन 300रुपये से बढ़ाकर 1000 रुपये मासिक
महिला एनजीओ कर्ज माफ करना
लड़कियों के विवाह के लिये ₹51000 का अनुदान
सभी टॉपर्स को फ्री लैपटॉप
अगर छत्तीसगढ़ की बात करें तो यहां बीजेपी और कांग्रेस दोनों के घोषणापत्रों में जो बात सामने आयी है उस पर गौर करना जरूरी है. बीजेपी ने नक्सलवाद को खत्म करने का वादा किया है, जबकि कांग्रेस ने नक्सलवाद को खत्म करने के लिए बातचीत की प्रक्रिया शुरू करने का वादा सामने रखा है. हाल में कांग्रेस नेता राजबब्बर ने नक्सलवादियों को कथित तौर पर ‘क्रांतिकारी’ कहा था और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ऐसा कहने वालों के लिए हिन्दुस्तान में जगह नहीं होने की बात कही थी. सोच में यह फर्क घोषणापत्र में भी साफ झलक रहा है.
अटल संकल्प पत्र में 24 घंटे बिजली, गरीबों को पक्का मकान, 9वीं क्लास में पहुंचते ही फ्री साइकिल, 12क्लास तक फ्री यूनिफॉर्म और किताबें, मेधावी छात्राओं को फ्री स्कूटी, गरीब किसानों को मासिक पेंशन, दलहन-तिलन की MSP, लघु वनोपज की MSP डेढ़ गुणा करने समेत कई लोकलुभावन घोषणाएं हैं.
कांग्रेस के वचनपत्र में भी छत्तीसगढ़ के लिए 36 लक्ष्य बताते हुए सत्ता में आने के 10 दिन के भीतर कृषि ऋण माफ करने की घोषणा की गयी है. इसके अलावा पूर्ण शराबबंदी, हर परिवार को एक रुपये किलो की दर से 35 किलो चावल देने, घरेलू बिजली का बिल आधा करने, हर परिवार में एक बेरोजगार को 10 हजार रुपये का बेरोजगारी भत्ता देने, फसलों की MSP तय करने, 60 साल बाद किसानों के लिए पेंशन समेत अनगिनत घोषणाएं शामिल हैं.
चाहे बीजेपी हो या कांग्रेस दोनों के घोषणापत्रों में आम आदमी पार्टी के घोषणापत्र की छाप नजर आती है. यह असर उत्तर प्रदेश में बीजेपी और समाजवादी पार्टी के घोषणापत्रों में भी दिखा था. मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ में भी बिजली, पानी, शिक्षा, खेती समेत सामाजिक सुरक्षा के क्षेत्र में राजनीतिक दलों के घोषणापत्रों में इन समानताओं का मिलान किया जा सकता है.
कांग्रेस का दावा है कि उसका घोषणापत्र प्रदेश कांग्रेस कमेटी में नहीं, खेतों में बना है तो इस दावे पर पूर्णत: विश्वास करना इसलिए मुश्किल है क्योंकि अगर ये सच है तो हमें ये मान लेना पड़ेगा कि गाय, गोधन, गोउत्पाद, राम, आध्यात्मिक पर्यटन जैसे मुद्दे जनता के मुद्दे बन चुके हैं. संघ की शाखाओं में जिस तरह से देशभर में भीड़ बढ़ी है उसे देखते हुए उसके सरकारी परिसरों से दूर करने की बात भी जन आकांक्षा के बजाए वैचारिक टकराव अधिक महसूस होता है.
घोषणापत्रों के जरिए चुनाव मैदान में प्रयोग होने वाले अस्त्र-शस्त्र खुल गये हैं. जनता को लुभाने की स्पर्धा अपने यौवन पर है. इस स्पर्धा को जीतने के लिए सर्वस्व समर्पण भाव से राजनीतिक संघर्ष तो जरूरी है ही, फाउल खेलने की भी तत्परता और बॉडी लैग्वेज साफ तौर पर दिखने लगा है. देखना ये है कि लोकतंत्र के इस ओलंपिक में लोकतांत्रिक खेल भावना को कितनी चोट पहुंचती है और उस पर जनता की प्रतिक्रिया किस रूप में सामने आती है.
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Published: 12 Nov 2018,03:08 PM IST