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मोदी का नामदार-कामदार और योगी का अली-बली जुबान पर क्यों नहीं चढ़ा

पीएम मोदी और योगी ने टोटके और नारे चुनाव में क्यों नहीं चले

अरुण पांडेय
नजरिया
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प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से ऐसी गलती कैसे हो गई? नारे गढ़ने में महारथी पीएम मोदी इस विधानसभा चुनावों में पूरे समय नामदार-कामदार जैसी इतनी मुश्किल और जुबान पर नहीं चढ़ने वाली बात बार-बार क्यों बोलते रहे, ये समझ नहीं आया.

बीजेपी के स्टार प्रचारक पीएम मोदी को पॉपुलर नारों की नब्ज और आत्मा पकड़ने वाला वैद्य माना जाता है. लेकिन उन्हें नामदार-कामदार टाइप का कमजोर नारा इतना कैसे भा गया, समझ के बाहर है. उत्तर भारत में ये दोनों शब्द बोलचाल में इस्तेमाल ही नहीं होते. इसी का नतीजा था कि उनके भाषण में वो रंग नहीं जम पाया और लोगों का वैसा रिस्पॉन्स नहीं मिला, जिसके लिए वो जाने जाते हैं. 

मोदी ही नहीं, नारे की चूक बीजेपी के दूसरे स्टार प्रचारक योगी आदित्यनाथ से भी हुई. योगी ने मध्य प्रदेश में हनुमान, राम और बजरंग बली के नाम पर वोट मांगे. लेकिन नतीजों में इन तमाम टोटकों और नारों का खास असर नहीं दिखा.

राजस्थान में एक रैली को दौरान पीएम नरेंद्र मोदी(फोटो: PTI)

नामदार-कामदार

राहुल गांधी और अपने बीच तुलना के लिए मोदी ने पहली बार इन लाइनों का इस्तेमाल कर्नाटक विधानसभा चुनाव में किया. तंज करते हुए उन्होंने कहा, ''हम तो कामदार हैं जी और वो नामदार (राहुल गांधी).'' कामदार मतलब, जो मेहनत से जगह बनाता है और नामदार मतलब परिवार के नाम पर जिसे रुतबा हासिल हो. इसके बाद प्रधानमंत्री को ये लाइन ऐसी जमी कि भाषणों में ये उनका तकिया कलाम बन गया.

नामदार-कामदार लाइन का मतलब दमदार है, लेकिन उत्तर भारत के हिंदी इलाकों में ये चलन में नहीं है. मुंबई और महाराष्ट्र में इस तरह की बोली चलती है. बेसिकली ये मराठी स्टाइल है. जैसे विधायक को मराठी में आमदार कहते हैं. सांसद को खासदार. मजदूर को कामगार. इसलिए महाराष्ट्र से सटे कर्नाटक तक तो ये ठीक था, पर जैसे ही राजस्थान, मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ की रैलियों में घूम-घूमकर मोदी ने नामदार-कामदार का इस्तेमाल शुरू किया, तो उनके भाषणों का रिद्म बिगड़ गया.

नामदार-कामदार वन लाइनर में तालियां नहीं पड़ीं

मोदी के वन लाइनर में जो तालियां पड़ती थीं, वो नामदार-कामदार वाली लाइन में नहीं पड़ीं, फिर भी उन्होंने रैली दर रैली इसका जमकर इस्तेमाल किया. लेकिन पब्लिक को शायद मजा नहीं आया. जरा देखिए अलग-अलग बातों में मोदी ने कैसे नामदार-कामदार शब्द पिरोए.

5 दिसंबर (सुमेरपुर, राजस्थान)

नामदार को कांग्रेस के नेताओं का ही नाम नहीं मालूम. एक माने हुए नेता कुंभाराम जी कैसे कुंभकरण बन गए, नामदार ही जानें.

4 दिसंबर (राजस्थान, जयपुर)

आज नामदार ने फतवा जारी किया – मोदी और भारत माता के लाखों-करोड़ों बेटे-बेटियों को 'भारत माता की जय' बोलने का हक नहीं है. लाखों लोगों के सामने नामदार के फतवे को चूर-चूर किया और एक नहीं, दस बार 'भारत माता की जय बोला'. नामदार, आप होते कौन हो, जो हमसे ये अधिकार छीनने का पाप कर रहे हो?

28 नवंबर (राजस्थान) नागौर

हमारी भ्रष्टाचार की लड़ाई से नामदार बहुत दुखी हैं. जिनके मलाई खाने के रास्ते बंद हुए हैं, वो मोदी मुर्दाबाद कहेंगे ही, मेरे माता-पिता को गाली देंगे ही, मेरी जाति पर अभद्र टिप्पणी करेंगे ही.

हमलोग सब कामदार हैं. हम सोने के चम्मच लेकर पैदा नहीं हुए हैं.

26 नवंबर (राजस्थान) भीलवाड़ा

डॉ. बाबासाहेब अंबेडकर ने समाज में भेदभाव खत्म करने की राह दिखाई. लेकिन नामदार और उनके चेले मेरी जाति पूछते रहते हैं.

25 नवंबर जबलपुर

मेरे पिताजी 30 साल पहले दुनिया छोड़कर चले गए. मेरे परिवार में किसी का राजनीति से कोई संबंध नहीं है. फिर भी कांग्रेस के नामदार मेरे परिवार के बारे में अभद्र टिप्पणी करने से नहीं रुकते.

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योगी ने रैलियों में हनुमान और बजरंग बली का खूब जिक्र किया(फोटो: PTI)

अब आते हैं बीजेपी के दूसरे नंबर के स्टार प्रचारक योगी आदित्यनाथ पर

योगी आदित्यनाथ का हनुमान कनेक्शन

मोदी ने नामदार-कामदार नारा पकड़ा, तो उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री ने हनुमान और बजरंगबली की थीम पकड़ ली. इसके बाद मध्य प्रदेश, राजस्थान और छत्तीसगढ़ में शहर बदलते रहे, लेकिन योगी के भाषणों की सेंट्रल थीम नहीं बदली.
  • एक जगह उन्होंने कहा कि हनुमान दलित थे, वनवासी थे गरीबों को संरक्षक थे. हनुमान दलित थे वाला मुद्दा चर्चा और बहस में कई दिनों तक छाया रहा.
  • अब देखिए अपनी थीम पर जमे रहते हुए योगी ने एक रैली में कहा कि उनके पास अली है तो हमारे पास बजरंग बली है.
  • राजस्थान में रामगढ़ में योगी ने थीम रामायण के करीब ही रखी और बोले, कांग्रेस को वोट देना मतलब रावण को वोट देना है. बीजेपी को वोट देना, मतलब भगवान श्रीराम को वोट देना.
लेकिन इन चुनाव में हिंदू, हिंदुत्व, राम, हनुमान के नाम पर वोट मांगने वाले फॉर्मूले नहीं चले. बीजेपी ने गाय के नाम पर पूरे देश में अभियान चला रखा है, फिर भी देश के पहले गोपालन मंत्री ओटाराम देवासी राजस्थान में हार गये.

बजरंग दल के पूर्व राष्ट्रीय संयोजक जयभान सिंह पवैया तो ग्वालियर में अपनी सीट ही नहीं बचा पाए, वो कांग्रेस उम्मीदवार से 20,000 वोट से हार गए.

मतलब साफ है रसूखदार भी कई बार गलती कर जाते हैं. शायद आगे चुनाव में पीएम मोदी नामदार और कामदार वाले नारे का इस्तेमाल बंद कर दें क्योंकि ये असरदार साबित नहीं हुआ है.

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Published: 12 Dec 2018,07:32 PM IST

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