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कोरोना के बाद सबको कार की दरकार, पर ऑटो को बचा सकती है सिर्फ सरकार

ऑटो सेक्टर सिर्फ एक इंडस्ट्री तक सीमित नहीं

ऑनिंद्यो चक्रवर्ती
नजरिया
Updated:
प्रतीकात्मक तस्वीर
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प्रतीकात्मक तस्वीर
(फोटो: iStock/Altered by The Quint)

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जलवायु परिवर्तन की वास्तविकता से लगातार इनकार करने वालों ने कार बाजार को जितना फायदा पहुंचाया होगा, कोरोना वायरस महामारी उसे उससे भी कहीं अधिक लाभ पहुंचाने वाली है. हममें से जितने भी लोग हरित अर्थव्यवस्था का समर्थन करते हैं, वे भी सार्वजनिक परिवहन का इस्तेमाल करने से हिचकिचाएंगे.

उबर कैब्स के सफर के लिए पर्सनल कार के मोह को छोड़ने वाले दोबारा सोचने को विवश होंगे. जो लोग चंद रुपए बचाने के लिए कैब्स में शेयरिंग में जाते थे, अब किसी खांसते हुए हमसफर के साथ बैठकर जाने के बजाए अपनी जेबें ढीली करना पसंद करेंगे.

इसके ये मायने हैं कि लॉकडाउन के खत्म होते ही पैसेंजर वाहनों की बिक्री- कार और दोपहिया- में तेजी से उछाल होगा. 

मगर क्या यह इतना आसान है? मतलब, आप शोरूम में जाकर सीधे कार नहीं खरीद सकते. इसके लिए आपको एक मोटी रकम भी चुकानी होती है. यानी, कार खरीदने के लिए आपके पास अच्छा खासा बैंक बैलेंस होना चाहिए या हर महीने के जरूरी खर्चे करने के बाद ईएमआई चुकाने लायक तनख्वाह. तभी कार लोन पर मिल सकता है.

ऑटो सेक्टर सिर्फ एक इंडस्ट्री तक सीमित नहीं

भारत का मध्यम वर्ग पिछले एक दशक से जटिल अर्थव्यवस्था से जूझ रहा है. बीसवीं शताब्दी के बीच में ऐसा लग रहा था कि भारत में लोगों के पास अच्छा पैसा है. लेकिन अब इसका उलटा देखने को मिल रहा है. लोग अपने भविष्य की आय और अपने मौजूदा निवेशों को लेकर सशंकित हैं. वे अपने रोजमर्रा के खर्चों में कटौती कर रहे हैं, गैजेट्स और दूसरे ड्यूरेबल्स नहीं खरीद रहे और अपने अनिश्चित भविष्य के लिए बचत कर रहे हैं.

इसलिए ऑटो इंडस्ट्री को भले एक तरफ सोशल डिस्टेंसिंग से फायदा होने वाला हो, चूंकि लोग निजी वाहनों को ज्यादा सुरक्षित मान रहे हैं, लेकिन दूसरी तरफ उसे जबरदस्त घाटा भी होने वाला है. इसकी वजह यह है कि COVID-19 के कारण दुनियाभर में लोग बेरोजगार हो रहे हैं. ग्रेट डिप्रेशन के बाद आर्थिक संकट का यह दूसरा सबसे बड़ा दौर है.

फिर ऑटो सेक्टर सिर्फ एक इंडस्ट्री तक सीमित नहीं है. दुनियाभर के देशों में कार कंपनियां आर्थिक तरक्की की वाहक रही हैं. डेट्रॉयट जैसे शहर को अमेरिकी सपने के तौर पर देखा जाता है. इस शहर में अमेरिका की अधिकतर कार फैक्ट्रियां हैं. सत्तर के दशक में जर्मनी और जापान और बाद में दक्षिण कोरिया को दुनिया की बड़ी अर्थव्यवस्था बनाने में ऑटो इंडस्ट्री का बड़ा हाथ था. इसने दूसरे ऐसे उद्योगों को बढ़ावा दिया जहां बड़े पैमाने पर रोजगार सृजन हुआ, जैसे तेल से लेकर मोटल या ‘मोटर होटल’ तक, यानी ऐसे होटल जहां मोटरिस्ट्स को अपने कमरे से पार्किंग एरिया तक सीधा एक्सेस मिलता हो.

देश के दौलतमंद मध्यम वर्ग ने कार बाजार के दिन बदले

भारत में मैन्युफैक्चरिंग क्षेत्र की स्थिति भले ही बदतर रही हो, ऑटो उद्योग में उछाल जारी रहा. नब्बे के दशक में भारतीय अर्थव्यवस्था के द्वार खुलने और निजीकरण के बाद देश के कारखाने सेवा क्षेत्र की उन्नति से तालमेल नहीं रख पाए. पर ऑटो कंपनियां इसमें अपवाद रहीं. 1988 में भारत ने 1.5 लाख कारों का निर्माण किया.

सिर्फ 30 साल बाद, 2018 में हमने 40 लाख से ज्यादा कारों का निर्माण किया.

इसका एक कारण यह था कि मध्यम वर्ग मालामाल हो रहा था. दूसरा सबसे बड़ा कारण यह था कि कार लोन बहुत आसानी से मिल रहे थे. जब भारत ने फॉरेन पोर्टफोलिया कैपिटल के लिए अपने दरवाजे खोले तो विदेशी निवेशक देश में डॉलर्स के साथ पहुंचे और उन्हें भारतीय एसेट्स में निवेश करने के लिए रुपये में बदल दिया.

आरबीआई का विदेशी मुद्रा भंडार डॉलर्स से लबालब हुआ और भारतीय वित्तीय प्रणाली में पैसा बरसने लगा.

उद्योग जगत को भी इससे फायदा हुआ. कई कंपनियों ने विदेशी निवेशकों (एफडीआई) को अपना हिस्सा सीधा बेच दिया. दूसरी तरफ विदेशी निवेशकों ने आईपीओ (एफआईआई) के जरिए भारतीय स्टॉक्स खरीद लिए. बैंकों और बाजार में बड़ी मात्रा में कैश सर्कुलेट होने लगा. इसने लिस्टेड कंपनियों की कीमत में इजाफा किया. उन्होंने अपने हिस्से को बेचकर या बड़े लोन लेकर फंड्स जुटाए.

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लोन के कारण कारों की बिक्री बढ़ी पर मंदी ने बाजार को धराशाई कर दिया

जबरदस्त पैसा होने का मतलब यह था कि कंपनियां प्रबंधन के स्तर पर प्रतिभाशाली लोगों को आकर्षित कर सकती थीं. टॉप पांच फीसदी मध्यम वर्ग ऊंचे पदों पर पहुंच गया और उसकी कमाई बढ़ती गई.

इस बीच बैंकों के पास अकूत धन आया तो उनके लिए यह जरूरी था कि वे पैसे से पैसा कमाएं. इसके लिए बैंकों ने लोन देने शुरू किए- व्यापार जगत को, और उपभोक्ताओं को भी- कम ब्याज दरों और आसान शर्तों पर. इस दौर में कार लोन्स खूब दिए गए जिसका नतीजा यह हुआ कि भारत में कारों की बिक्री में एकाएक वृद्धि हुई.

आप किसी भी कार डीलर के पास जाकर आसान फाइनेंसिंग ऑप्शंस का पता लगा सकते थे, खासकर शैडो बैंकों या एनबीएफसीज से. न तो कार बेचने वाले सेल्सपर्सन को, न लोन बेचने वाले कर्मचारी को इस बात से मतलब था कि आप कितना कमाते हैं.

मगर एक दशक पहले विश्वव्यापी आर्थिक मंदी ने पूरी व्यवस्था को धराशाई कर दिया. इसका असर सबसे पहले रियल एस्टेट पर पड़ा. मकानों की कीमतें रातों रात गिर गईं. चूंकि मध्यम वर्ग दीर्घावधि के आवासीय ऋण नहीं ले रहा था, उसके पास नई कारों की ईएमआई चुकाने लायक पैसा था. इसीलिए कारों की बिक्री 2017-18 तक होती रही. लेकिन पहले नोटबंदी और फिर जीएसटी ने बड़े आर्थिक झटके दिए जिसका सीधा असर कार बाजार पर पड़ा.

नौकरियां गईं तो कारों के खरीदार ईएमआई चुकाने में डिफॉल्ट करने लगे. 2018 की सिबिल स्टडी बताती है कि अगर होम लोन्स में डेलिनक्वेंसी रेट 3 फीसदी है तो ऑटोमोबाइल लोन्स में 2.75 फीसदी. डेलिनक्वेंसी का अर्थ है, लोन चुकाने में चूक करना. बैंकों ने एनबीएफसी से पैसा वापस ले लिया, जो कारों और दोपहिया वाहनों के लिए सबसे ज्यादा लोन देते थे, खासकर अनिश्चित आय और संदिग्ध क्रेडिट हिस्ट्री वाले उपभोक्ताओं को.

अब कारों की होम डिलिवरी की योजना

भारत की ऑटो इंडस्ट्री की हालत पिछले एक साल से खराब है. लॉकडाउन से पहले भी ऑटो सेल्स में गिरावट देखी जा रही थी. हालांकि मार्च के सिर्फ आखिरी हफ्ते में शटडाउन हुआ था, कारों की बिक्री में पिछले साल की तुलना में 52 फीसदी की गिरावट आई और दोपहिया वाहनों की बिक्री में 40 फीसदी की कमी आई.

लॉकडाउन के चलते अप्रैल में बिक्री शून्य रही, चूंकि कारखाने और डीलरशिप, दोनों बंद थे.

ऑटो मैन्युफैक्चरर अपना कामकाज दोबारा शुरू करना चाहते हैं. उन्होंने सरकार से अनुरोध किया है कि कार निर्माण और सेल्स को अनिवार्य सेवाएं घोषित किया जाए. लेकिन इसके लिए इंटरकनेक्टेड इंडस्ट्री की पूरी श्रृंखला को खोलना होगा जोकि कार निर्माताओं को उपकरणों की आपूर्ति करती हैं और वे डीलरशिप भी जो कारों को खरीदारों तक पहुंचाते हैं. कई कंपनियां इस समस्या को हल करने की कोशिश कर रही हैं. वे उपभोक्ताओं को कारों की होम डिलीवरी करने की योजना बना रही हैं.

हालांकि देश में सबसे बेहतरीन प्रदर्शन करने वाली इंडस्ट्री को इस संकट से उबारने के लिए मोदी सरकार को जल्द कोई रास्ता निकालना होगा.

लॉकडाउन से पहले भी कार निर्माता कंपनियां मांग बढ़ाने के लिए जीएसटी में कटौती की मांग कर रही थीं. अब यह मांग और ऊंचे स्वर में की जाएगी. लॉकडाउन ने ऑटो उद्योग को जबरदस्त घाटा पहुंचाया है. एक साल पहले कारों पर जीएसटी घटाने के लिए सरकार के पास कोई राजकोषीय विकल्प नहीं था.

मोदी सरकार के पास अब ऐसा करने के लिए नैतिक आधार है, चूंकि दुनियाभर के देशों की सरकारें मरणासन्न अर्थव्यवस्थाओं में प्राण फूंकने के लिए अपने खजाने खोल रही हैं.

ऑटो इंडस्ट्री बड़ी संख्या में रोजगार पैदा करती है- क्या सरकार उसे बर्बाद होने से बचाएगी?

ऑटो इंडस्ट्री बड़ी संख्या में रोजगार सृजन करती है- प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष तरीके से. 2016-17 में ऑटो और ऑटो क्षेत्र की सहायक कंपनियों में सीधे तौर पर लगभग 14 लाख लोग काम कर रहे थे और 38 लाख लोग सेल्स, रिपेयर्स और सर्विसिंग जैसे कामों में लगे हुए थे.

इन कर्मचारियों की संख्या 52 लाख के करीब है, जोकि भारत में कुल 26 करोड़ गैर कृषि रोजगार का दो फीसदी है.

इसमें वे सैकड़ों हजारों लोग शामिल नहीं जो ट्रक, बस, व्यक्तिगत कारों और कैब्स के ड्राइवर के तौर पर काम करते हैं. जब लॉकडाउन के कारण सिर्फ अप्रैल में 11.4 लाख नौकरियां खत्म हुई हों, तब ऑटो इंडस्ट्री को सहारा देने से एक तबके को तो फायदा पहुंचेगा.

आखिरकार, सिर्फ मोदी सरकार और आरबीआई के व्यापक और समन्वित राजकोषीय और मौद्रिक प्रोत्साहन से भारत की ऑटो इंडस्ट्री को पुनर्जीवित किया जा सकता है.

जब तक कॉरपोरेट जगत की जेब में पैसा नहीं आता, मध्यवर्गीय नौकरियां दांव पर लगी रहेंगी. तनख्वाहों में कटौतियां की जाती रहेंगी, और लोगों को बिना वेतन जबरन छुट्टियों पर भेजा जाता रहेगा. कॉरपोरेट जगत की बहाली के बाद भी आरबीआई को यह सुनिश्चित करना होगा कि एनबीएफसीज के पास पर्याप्त पैसा हो, जिससे उपभोक्ताओं को फिर से आसानी से कार लोन मिलने लगें. और इन सबके साथ क्रेडिट बबल या हाइपरइन्फ्लेशन नहीं होना चाहिए.

कहना आसान है, करना मुश्किल. लेकिन इसीलिए हम सरकारों को चुनते हैं कि वो मुश्किल समय में मुश्किल काम कर सकें.

(लेखक एनडीटीवी इंडिया और एनडीटीवी प्रॉफिट के सीनियर मैनेजिंग एडिटर रह चुके हैं. वह अब इंडिपेंडेंट YouTube चैनल 'देसी डेमोक्रेसी' चलाते हैं. ऊपर दिए गए विचार लेखक के अपने हैं, क्विंट का उनसे सहमत होना जरूरी नहीं है और न ही वो इनके लिए जिम्मेदार है.)

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Published: 09 May 2020,01:26 PM IST

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