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जौहर यूनिवर्सिटी का मुद्दा, उन्नाव केस से ध्यान हटाने की कोशिश?

ये उसी का नतीजा है कि सुप्रीम कोर्ट ने मामले में हस्तक्षेप किया और केस को अपने हाथ में ले लिया.

हिमांशु शर्मा
नजरिया
Updated:
जौहर यूनिवर्सिटी का मुद्दा, उन्नाव केस से ध्यान हटाने की कोशिश?
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जौहर यूनिवर्सिटी का मुद्दा, उन्नाव केस से ध्यान हटाने की कोशिश?
(फोट: Abdullah Azam/Facebook)

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उन्‍नाव रेप केस को मीडिया ने जिस तरह से उठाया, ये उसी का नतीजा है कि सुप्रीम कोर्ट ने मामले में हस्तक्षेप किया और केस को अपने हाथ में ले लिया. मामले में सुप्रीम कोर्ट का इस तरह सीधा हस्‍तक्षेप करना इस बात की तस्‍दीक है कि उत्‍तर प्रदेश में कानून व्‍यवस्‍था ठीक नहीं है. इसके चलते योगी सरकार की खासी किरकिरी हुई.

मीडिया को मौका मिला और उसने सरकार के साथ सत्‍ताधारी पार्टी बीजेपी की भी जमकर ऐसी तैसी की. मीडिया की नजरों से बचने के लिए योगी सरकार ने अचानक जौहर यूनिवर्सिटी का एक मुद्दा उछाल दिया, जिससे सीधे तौर पर आजम खां और उनका परिवार जुड़ा है. सियासत के जानकार इस पूरे मसले को उन्नाव रेप कांड यूपी सरकार के ध्यान भटकाने की कोशिश के तौर पर देख रहे हैं. एसपी सांसद आजम खां के बेटे अब्‍दुला आजम खां कि 24 घंटे के अंदर गुरुवार को लगातार दूसरी बार हुई गिरफ्तारी इसी ओर इशारा कर रही है.

सिर्फ किताबों की चोरी का ही है मसला?

आजम खान के बेटे और स्वार के विधायक मोहम्मद अब्दुल्ला को रामपुर पुलिस ने 1 अगस्त को धारा 144 तोड़ने का आरोप लगाते हुए गिरफ्तार कर लिया. इसके एक दिन पहले 31 जुलाई को रामपुर पुलिस ने अब्‍दुल्‍ला को जौहर यूनिवर्सिटी में चोरी की किताबों की जांच करने के दौरान गिरफ्तार किया था. पुलिस का कहना था कि अब्दुल्ला जांच में बाधा पहुंचाने की कोशिश कर रहे थे. हालांकि, अब्दुल्ला को निजी मुचलके पर बाद में रिहा कर दिया गया था. उसके ठीक एक दिन पहले यानी 30 जुलाई को भी पुलिस ने जौहर यूनिवर्सिटी में छापेमारी कर पांच कर्मचारियों को कई धाराओं में गिरफ्तार किया था.

रामपुर में चल रही गिरफ्तारी का ये सिलसिला इस बात के साफ संकेत हैं कि मामला सिर्फ किताबों की चोरी का नहीं है, बल्कि सरकार की मंशा, देश और मीडिया का ध्‍यान उन्‍नाव से हटा कर रामपुर पर लगाने की है.

समाजवादी पार्टी के सूत्रों की मानें तो समाजवादी पार्टी अध्यक्ष अखिलेश यादव ने बरेली, पीलीभीत, संभल, अमरोहा, मुरादाबाद और बिजनौर के कार्यकर्ताओं को रामपुर पहुंचकर प्रदर्शन करने के लिए कहा है. इस बीच, बरेली से आ रहे कई नेताओं और विधायकों को पुलिस ने हिरासत में लिया. इसी कड़ी में मुरादाबाद के सांसद एसटी हसन और बदायूं के पूर्व सांसद धर्मेंद्र यादव को दलपतपुर जीरो प्वॉइंट से पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया. रामपुर में भी सैकड़ों की संख्या में नेता और कार्यकर्ता हिरासत में लिए गए. आजम खान के घर की सुरक्षा बढ़ाई गई है.

गिरफ्तार किया तो निजी मुचलके पर छोड़ा क्‍यों ?

अब अगर हम इन गिरफ्तारियों के कारण पर गौर करें तो मामला किताबों की चोरी का है. मदरसा आलिया के प्रिंसिपल जुबैर खां ने पिछले 16 जून को रिपोर्ट दर्ज कराई थी. उनके मदरसे से चोरी की गयी दुर्लभ किताबें जौहर यूनिवर्सिटी की लाइब्रेरी में हैं. तब से इस मामले की जांच जारी है लेकिन पुलिस ने किताबों को बरामद करने की कोशिश नहीं की. अचानक ही सक्रियता इतनी बढ़ी कि यूनिवार्सिटी में छापेमारी शुरू हो गई. .

जांच के दौरान स्‍वार विधायक ने जब विरोध किया तो उन्‍हें तुरंत गिरफ्तार कर लिया गया. पुलिस को इस बात का अंदाजा था कि विधायक की गिरफ्तारी के बाद बवाल या हंगामा होगा, और पूरा लोगों का पूरा ध्‍यान कुलदीप सिंह सेंगर से डायवर्ट होकर मोहम्‍मद अब्‍दुल्ला आजम खान पर चला जायेगा. इसके अलावा विधायक की गिरफ्तारी और उसके बाद उन्‍हें निजी मुचलके पर रिहा करना भी पुलिस की नीयत की पोल खोल रहा है

योगी सरकार में आजम, अब्दुला, ओवैसी नाम हैं खास

योगी सरकार में आजम, अब्दुला, उस्मान, ओवैसी जैसे नाम अपने आप में ही खास हैं. इन नामों की बदौलत ही मीडिया का ध्यान सेंगर से हटाकर अब्दुल्ला पर केंद्रित करने की तैयारी की गई, क्‍योंकि आजम खान या उनके बेटे को लेकर किसी भी तरह की पुलिसिया कार्रवाई पर सरकार को किसी तरह का कोई नुकसान नहीं होता. हां फायदा होने की पूरी गुंजाइश थी.

आजम खान की बात करें तो 25 जुलाई को सड़क कब्जा कर जौहर यूनिवर्सिटी का गेट बनाने के बाबत रामपुर एसडीएम कोर्ट ने उन पर तकरीबन साढ़े तीन करोड़ का जुर्माना लगाया था. इसी दौरान संसद में लोकसभा स्पीकर रमा देवी पर की गयी उनकी बयानबाजी सुर्खियों में रही. उसके अगले दिन 26 को संसद में उनके माफीनामे को लेकर हंगामा हुआ, जिसे 27 जुलाई को अखबारों ने अपनी हेडिंग बनायी. इसी बीच 28 जुलाई को उन्नाव रेप कांड की पीड़िता के एक्सीडेंट की खबर आयी जिसने सेंगर को मीडिया की नजरों में ला दिया. तब से सेंगर ही सेंगर छाये हुए थे ऐसे में अगर आजम खां या उनके परिवार को किसी भी तरह से मीडिया की नजरों में ले आते तो बात बन जाती, कैमरा अब्दुल्ला आजम खां की ओर घूम जाता और सरकार को लेकर उठ रहे सवाल ठंडे पड़ जाते.

(हिमांशु शर्मा पत्रकार हैं. इस आर्टिकल में छपे विचार उनके अपने हैं. इसमें क्‍व‍िंट की सहमति होना जरूरी नहीं है)

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Published: 02 Aug 2019,07:03 PM IST

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