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मठों और आश्रमों में यौन शोषण की अंधेरी गुफाएं

आश्रमों और मठों में यौन शोषण और यौन उत्पीड़न की खबरें इतनी आम हैं कि लोगों ने उस पर चौंकना बंद कर दिया है.

गीता यादव
नजरिया
Updated:
बाबा और सेक्स स्कैंडल
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बाबा और सेक्स स्कैंडल
(फोटो: इरम गौर/क्विंट हिंदी)

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मंदिरों में यौन शोषण की देवदासी प्रथा पर कानूनी रोक लग गई है, लेकिन धर्म के नाम पर मठों और आश्रमों में महिलाओं की देह के साथ खिलवाड़ जारी है.

  • एक नाबालिग लड़की के साथ बलात्कार के आरोप में आसाराम को आजीवन कैद की सजा हो चुकी है. आसाराम के छिंदवाड़ा आश्रम के स्कूल में जब एक लड़की बेहोश होकर गिर गई थी, तो स्कूल के संचालकों ने लड़की के माता-पिता को सलाह दी कि वे लड़की को जोधपुर आश्रम में ले जाएं. आश्रम में आसाराम ने इलाज के नाम पर लड़की का बलात्कार किया. आसाराम पर बलात्कार के और भी आरोप हैं.
  • डेरा सच्चा सौदा का बाबा गुरमीत राम रहीम बलात्कार के दो आरोप में दोष सिद्ध होने के बाद 20 साल के लिए जेल में है. इसके खिलाफ आरोप उनकी ही शिष्याओं ने लगाया था. पीड़िता के वकील ने कहा है कि 48 और लड़कियों के साथ बाबा ने बलात्कार किया है और वे केस भी खुलेंगे.
  • शनिधाम चलाने वाले दाती महाराज की शिष्या ने उन पर यौन उत्पीड़न और बलात्कार का आरोप लगाया है. पुलिस दाती महाराज को खोज रही है, दाती महाराज पुलिस से बचते फिर रहा है.
  • शिवमूरत द्विवेदी उर्फ इच्छाधारी बाबा भीमानंद अपने आश्रम में वेश्यावृत्ति और कॉल गर्ल का अड्डा चलाता था. वह आश्रम में आने वाली महिलाओं को फंसा कर यह काम करता था. उसे 2010 में गिरफ्तार किया गया लेकिन 2014 में वह जमानत पर बाहर आया. 2017 में ठगी के आरोप में वह फिर पकड़ा गया.
  • एक परिवार ने अपनी बेटी सेवा के लिए अयोध्या के आश्रम को सौंपी थी. पता चला कि उस आश्रम में तीन साल से उसका यौन शोषण हो रहा है. इस मामले में महंत उमेशदास के खिलाफ केस दर्ज किया गया.
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यह लिस्ट अंतहीन है. आश्रमों और मठों में यौन शोषण और यौन उत्पीड़न की खबरें इतनी आम हैं कि लोगों ने उस पर चौंकना बंद कर दिया है. यह कहना भी मुश्किल है कि यौन उत्पीड़न की कितनी घटनाएं इन आश्रमों के दरवाजों से बाहर आ पाती हैं और कितनी घटनाएं अंदर ही दफन हो जाती हैं.

ऊपर दर्ज तमाम घटनाओं में कुछ बातें समान हैं.

  • पीड़ित महिलाओं के साथ यौन शोषण लंबे समय तक होता रहा.
  • उनमें से किसी को भी जबर्दस्ती आश्रम नहीं ले जाया गया.
  • या तो वे खुद बाबाओं के पास गईं, या परिवार के लोग उसे लेकर गए.
  • कई परिवार खुद लड़कियों को मंदिरों में सेवा के लिए छोड़ जाते हैं, जैसा कि अयोध्या में हुआ.

हो सकता है कि उन्हें पता हो कि सेवा में यौन शोषण शामिल है. यह भी मुमकिन है कि यह बात उन्हें पता न हो. लेकिन जोर-जबर्दस्ती आश्रम में लाए जाने का कोई मामला है भी तो परिवार के स्तर पर है. बाबा आम तौर पर आध्यात्मिक अनुभव दिलाने के नाम पर महिलाओं से सहमति ले लेते हैं और फिर उनके साथ यौन संबंध बनाते हैं. साथ ही बाबाओं का पुलिस, प्रशासन और राजनीति में इतना दबदबा होता है कि पीड़िता मुंह बंद रखने को मजबूर हो जाती है.

इसके अलावा, भारतीय समाज में यौन उत्पीड़न की शिकार महिला लांछन के साथ जीने को मजबूर हो जाती है. इसलिए भी कई घटनाएं सामने नहीं आतीं. बाबाओं के भक्त तो अक्सर यह मानने को भी तैयार नहीं होते कि बाबा ऐसी हरकत कर सकते हैं.

मंदिरों में यौन शोषण की ऐतिहासिक बातें

मंदिरों में यौन शोषण विशिष्ट भारतीय घटना नहीं है. रोमन सभ्यता में मंदिरों में धर्मगुरुओं को प्रसन्न करने के लिए जवान लड़कियां भेंट करने की परंपरा थी. मेसोपोटामिया यानी वर्तमान इराक में इस्लाम के आने से पहले महिलाओं को पहली बार यौन संबंध बनाने के लिए मंदिरों में जाना पड़ता था.

भारतीय धर्मग्रंथ भी ऐसी घटनाओं से भरे पड़े हैं, जब ऋषियों ने लड़कियों से यौन संबंध बनाए और बच्चे पैदा किए. ऐसा एक भी वाकया नहीं है, जब किसी कन्या या उसके परिवार के लोगों ने किसी ऋषि का इसलिए विरोध किया कि उसने कन्या के साथ यौन संबंध स्थापित किए. ऐसे यौन संबंधों को ऋषियों का धार्मिक अधिकार और लड़कियों का धार्मिक कर्तव्य माना जाता था. इन घटनाओं का जिक्र कुछ इस अंदाज में है, मानो ऋषि ने किसी लड़की के साथ यौन संबंध स्थापित करके उस पर उपकार किया हो. आज भी इसका असर बाकी है.

मंदिरों में होने वाला यौन शोषण आम तौर पर सहमति से होने वाला कृत्य है. यह सहमति हमारी संस्कृति और परंपराओं से बनती है.

मिसाल के तौर पर, अगर किसी परिवार में बहू को बच्चा नहीं हो रहा है और इसकी वजह दूल्हे की देह में है, तो ऐसी बहू को सेवा के लिए आश्रम में भेज देने की प्रथा देश के कई हिस्सों में है. यह काम लोकलाज की हदों के अंदर होता है. समाज को यही बताया जाता है कि बहू पूजा-पाठ और मंदिर-धर्मशाला की साफ-सफाई के लिए गई है, हालांकि तमाम जुड़े हुए पक्षों को पता होता है कि हो क्या रहा है.

इस तरह की घटनाओं में किसी भी पक्ष को शिकायत नहीं होती और यह सालों-साल तक चलता रह सकता है.

(प्रतीकात्मक तस्वीर: iStock)

यहां गोपनीयता बरतने में हर पक्ष का हित है. पुजारी अपनी नैतिकता का बाहरी आवरण बनाए रखता है और परिवार भी लोकलाज बचाए रखता है.

दक्षिण और मध्य भारत की कई जातियों को यह धार्मिक शिक्षा दी जाती है कि उन्हें अपनी बेटियां मंदिरों को सेवा के लिए दे देनी चाहिए. इसे उनका धार्मिक कर्तव्य बताया जाता है. ये आम तौर पर सामाजिक पायदान में नीचे की जातियां होती हैं.

आज भी है देवदासी प्रथा

कर्नाटक की एक जाति में अगर लड़कियों के बालों में लट बन गई, जो साफ-सफाई न रखने का परिणाम है, तो इसे इस बात का संकेत माना जाता कि उस लड़की को देवदासी बनाकर मंदिर को सौंप देना चाहिए. कुछ साल के बाद ऐसी ज्यादातर लड़कियां यौन बाजार में पहुंच जाती हैं.

अंग्रेजों ने भारत में कई समाज सुधार किए. लेकिन देवदासी प्रथा को उन्होंने भी ज्यादा नहीं छेड़ा. आजादी के बाद भी इस प्रथा के खिलाफ कानून बनाने में 40 साल लग गए. अब कानून में पाबंदी है, लेकिन देवदासियां आज भी बनती हैं और इसे धार्मिक मान्यता और पीड़ित परिवारों की सहमति हासिल है.

कोई कह सकता है कि अगर परिवार चाहता है कि उनकी बेटी मंदिर की सेवा करे, और जैसा चाहे वैसी सेवा करे तो इसमें किसी को दिक्कत क्यों होनी चाहिए? इसमें तीन दिक्कतें हैं.

  • एक, ऐसा करते समय लड़की की इच्छा नहीं पूछी जाती.
  • दो, लड़की उस समय तक अक्सर वयस्क नहीं होती, इसलिए वह स्वतंत्र तौर पर अपनी इच्छा बताने की स्थिति में भी नहीं होती है.
  • तीन, कोई गैरकानूनी काम इसलिए वैध नहीं हो जाएगा कि इसका बुरा असर जिस पर पड़ रहा है, उसकी सहमति है.

किसी लड़की को वेश्यावृत्ति में धकेलना कानूनी जुर्म है और इस बात से फर्क नहीं पड़ता कि ऐसा उस लड़की या उसके परिवार की सहमति से हो रहा है. यह भी देखना होगा कि सहमति क्यों दी जा रही है. मिसाल के तौर पर, नशे में ली गई सहमति की कोई कानूनी मान्यता नहीं होती. अपनी मासूम लड़कियों को आश्रम में पहुंचा आने वाले लोग भी एक तरह के नशे के शिकार होते हैं. यह आस्था और विश्वास का नशा है. इसलिए अगर कोई पति दबाव डालकर अपनी पत्नी को सेवा के लिए मंदिर को सौंपता है और अगर उसे पता है कि उसकी पत्नी का बलात्कार, सेवाओं में शामिल है, तो उस पति के खिलाफ कानून की संबद्ध धाराएं लगेंगी.

साथ ही, सहमति किसी गैरकानूनी काम को कानूनी बनाने का आधार नहीं हो सकती. इसी तरह कोई बाबा भी यह कहकर कानून से नहीं बच सकता कि महिला तो अपनी मर्जी से यौन संबंध बनाने आई है. अगर वह महिला विवाहिता है तो उस महिला का पति बाबा पर व्यभिचार का मुकदमा कर सकता है, जिसमें तीन साल की सजा का प्रावधान है.

अगर लड़की अवयस्क है तो सहमति या असहमति] दोनों अवस्थाओं में बाबा पर बलात्कार का मुकदमा चलेगा. अगर महिला वयस्क है और यौन संबंध उसकी सहमति के बिना हुआ है, तो भी बलात्कार का केस बनेगा.

समस्या तब आती है] जब महिला वयस्क है और यौन संबंध में उसकी सहमति है. ऐसे मामले में बाबा पर कोई कानूनी केस नहीं बनता. ऐसे मामले धर्म, नैतिकता और आस्था के दायरे में हैं.

जब तक आस्था यह सिखाती रहेगी कि बहू-बेटियों को आश्रमों को सौंप देना चाहिए, या उन्हें बाबाओं के हवाले कर देना पुण्य का काम है, या कि बाबाओं के आशीर्वाद से बच्चा या बेटा होता है, या कि बाबाओं से यौन संबंध बनाना ईश्वरीय अनुभव है, तब तक शोषण का यह तरीका बेखटके चलता रहेगा.

छिटपुट मामलों में जब बाबा या महिला] किसी एक पक्ष से सहमति टूटती है, तभी विवाद कानून के दायरे में आ पाता है.

इस लेख की शुरुआत में जिन घटनाओं का जिक्र है, उनके बारे में हम सिर्फ इसलिए जानते हैं कि इन मामलों में पीड़ित पक्ष की सहमति टूटी है. ऐसा आम तौर पर नहीं होता.

(ये आर्टिकल गीता यादव ने लिखा है. लेखिका भारतीय सूचना सेवा में अधिकारी हैं.इस आर्टिकल में छपे विचार उनके अपने हैं. इसमें क्‍व‍िंट की सहमति होना जरूरी नहीं है.)

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Published: 22 Jun 2018,09:06 PM IST

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