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आठ नवंबर की रात से 500 और 1000 के पुराने नोट बंद करने के बाद एक चीज पक्की हो गई है- लोगों के बैंक खाते और डाकघरों की आलमारियां नोटों से भर जाएंगी.
देश के कुल करेंसी नोटों में 500 और 1000 रुपये के नोटों की हिस्सेदारी लगभग 25 फीसदी की है. 500 रुपये के नोटों की हिस्सेदारी 17.4 और 1000 रुपये नोटों की हिस्सेदारी 7 फीसदी है.
31 मार्च, 2016 तक देश की अर्थव्यवस्था में 500 और 1000 रुपये के नोटों की कुल कीमत 14.95 लाख करोड़ रुपये की थी. यानी जितनी नकदी सर्कुलेशन में है उसकी 86 फीसदी. सैद्धांतिक तौर पर देखें तो अब यह सारा पैसा बैंकों, डाकघरों के जरिए वास्तविक और आधिकारिक अर्थव्यवस्था में आ जाएगा.
एक अनुमान के मुताबिक हर दस लाख रुपये के नोटों में से 250 नकली हैं. अमूमन, पाकिस्तानी खुफिया एजेंसी, आईएसआई के इशारे पर सीमा पार भेजे जाने वाले ये नोट एक ही झटके में बेकार हो गए हैं. आईएसआई इन नकली नोटों के कारोबार से हर साल 500 करोड़ रुपये का मुनाफा कमाती रही है.
लिहाजा आईएसआई के नकली नोटों का धंधा फिलहाल ठप हो गया. जब तक वह इसका कोई नया तोड़ नहीं निकाल लेती तब तक यह गोरखधंधा बंद ही रहेगा. इस कदम से इस्लामी, माओवादी आतंकवाद, कई देशों में ड्रग्स और हथियार का धंधा करने वालों और अन्य उग्रवादियों की अंडरग्राउंड फाइनेंसिंग फिलहाल तो बंद ही हो गई है.
मोदी जी के अचानक ऐलान से काला धन जमा कर रखने वालों कारोबारियों, राजनीतिक नेताओं, पेशेवरों, व्यवसायियों, उद्योगपतियों, कंस्ट्रक्शन दिग्गजों, और बिल्डरों के सामने बड़ी समस्या पैदा हो गई है. इन जैसों के अलावा काला धन रखने वाले दूसरे लोगों मसलन रेस्तरां मालिकों, रियल एस्टेट-प्रॉपर्टी मालिकों, किसानों, सर्विस प्रोवाइडरों को बेमन से ही सही पैसे सरकारी सिस्टम (देश की आधिकारिक अर्थव्यवयवस्था) में डालने ही होंगे.
ऐसे लोगों का मानना है कि देकर भी काफी कुछ बच जाएगा. हाल की आय खुलासा स्कीम (आईडीएस) के तहत ऐसे लोगों की जेब से 65,000 करोड़ रुपये निकाले गए. यह रकम ऐसे लोगों के काले धन पर लगाए गए 45 फीसदी जुर्माने से जुटाई गई.
लेकिन आईडीएस के तहत खुलासे और अब घोषित नियम में बड़ा अंतर है. सबसे अहम यह है कि इस बार आपको बड़े नोटों के तौर पर जमा अपने सारे धन को 30 दिसंबर तक बैंक या डाक घर में अनिवार्य तौर पर जमा करना होगा. 31 मार्च, 2017 तक आरबीआई के निर्धारित केंद्रों पर घोषणापत्र भर कर भी रकम जमा कर सकते हैं. 30 दिसंबर तक पैसा जमा करने वालों और उनके पैन नंबर पर सीसीटीवी कैमरों की नजर रहेगी.
बड़ी मछिलयों को अब भी बच निकलनेकी उम्मीद है. बचने के नए रास्तों से उनकी उम्मीदें जिंदा है. वो टैक्स भरने के वक्त बही-खातों की रिवर्स इंजीनयिरंग पेश कर रास्ता निकालेंगी. चार्टर्ड अकाउंटेट इस अवसर से मोटी कमाई की उम्मीद कर सकते हैं.
हालांकि अधिकतर बड़ी मछलियां सामने नहीं आना चाहेंगी. वे बैंक के जरिए पैसा निकालना चाहेंगी. वे अपने स्वामित्व वाली कंपनियों की बैलेंस शीट को नया रूप देंगी. क्रॉस होल्डिंग का सहारा लेंगी, अकाउंट के कई मद तैयार करेंगी या एक साथ कई कंपनियां बना डालेंगी.
इन सारे हालातों के बावजूद उन 50 फीसदी लोगों के हाथ का पैसा बाहर निकल जाएगा, जो गांवों में रहते हैं. साथ ही उन शहरी लोगों का पैसा भी बाहर निकलेगा जो अपनी बड़ी रकम ‘कृषि आय’ के रूप में घोषित कर टैक्स बचाते रहे हैं और काला धन जमा करते रहे हैं. उन्हें भी अब बैंकों की राह पकड़नी होगी.
इधर, जन-धन योजना के तहत बड़ी तादाद में खोले गए बैंक खातों के खाली रहने की खबरें आती रही हैं. अब अचानक इन खातों में नकदी की बाढ़ आ जाएगी. भले ही इनमें कुछ हजार रुपये जमा होंगे फिर भी बैंकों के पास कम से कम कुछ लाख करोड़ रुपये तो आ ही जाएंगे.
अगर बैंकिंग सिस्टम में 15 लाख करोड़ रुपये आ जाते हैं तो बैंकों की एनपीए की समस्या काफी हद तक आसान हो जाएगी. बैंकों के पास भी लोगों को कर्ज देने के लिए बड़ी रकम की व्यवस्था हो जाएगी.
पीएम मोदी के 500 और 1000 रुपये के नोट के अचानक बंद करने के फैसले का असर रियल एस्टेट और ज्वैलरी सेक्टर के कामकाज पर भी पड़ेगा और यह सकारात्मक होगा. पहले-पहल तो इन सेक्टरों को झटका लगेगा. लेकिन आगे जाकर कानूनी सौदे होंगे. सही तौर पर टैक्स आएगा और स्टांप ड्यूटी से जुड़ा गोरखधंधा कम होगा. चुनावी चंदे की व्यवस्था में भी सुधार दिखेगा.
भारत में 1946 के दौरान में 1000 और 10,000 के बैंक नोट हटाए जा चुके हैं. 1978 में भी ऐसा किया गया था. 1954 में 1000, 5000 और 10000 रुपए के नोट शुरू हुए थे. उन्हें एक बार फिर बंद किया गया. इसके पीछे भी नकली नोटों का गोरखधंधा बंद करने और काले धन पर लगाम लगाने का मकसद था.
उस वक्त आधिकारिक अर्थव्यवस्था (वास्तविक अर्थव्यवस्था) 20 करोड़ डॉलर की थी. आज हमारी अर्थव्यवस्था 2.3 ट्रिलियन करोड़ डॉलर की है. और बड़े नोट भले ही पहले की तुलना में कम हों लेकिन ज्यादातर ये अमीरों के हाथ में ही हैं. आज की तारीख में समानांतर नकदी अर्थव्यवस्था वास्तविक अर्थव्यवस्था के 25 फीसदी तक पहुंच चुकी है.
सरकार के अचानक फैसले के कई आलोचक भी हैं. इनका कहना है कि इससे असुविधा, अराजकता पैदा होगी. अभी भी ज्यादातर काला धन विदेश ही जाता है. फिर भी अगर 15 लाख करोड़ रुपये के नोटों को रातोंरात बंद कर बैंकों की ओर मोड़ दिया गया तो इसका कम फायदा नहीं होगा.
(गौतम मुखर्जी फौरी कमेंटटर और विश्लेषक हैं. उनसे @gautammuk पर संपर्क किया जा सकता है. उनके इस लेख के विचारों से द क्विंट का सहमत होना जरूरी नहीं है.)
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