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बंसल परिवार की खुदकुशी से CBI पर उठ रहे सवाल, जांच जरूरी

मानवाधिकार मामलों के उल्लंघन के ज्यादा से ज्यादा मामले सामने आने से सीबीआई की प्रतिष्ठा को ही चोट पहुंचेगी.

आर. के. राघवन
नजरिया
Updated:
बंसल परिवार की खुदकुशी के बाद सीबीआई की पूछताछ की प्रक्रिया में बदलाव की जरूरत बताई जा रही है (फोटो: Lijumol Joseph/ क्विंट)
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बंसल परिवार की खुदकुशी के बाद सीबीआई की पूछताछ की प्रक्रिया में बदलाव की जरूरत बताई जा रही है (फोटो: Lijumol Joseph/ क्विंट)
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दिल्ली के बंसल परिवार के चार लोगों की खुदकुशी की घटना बहुत डरावनी है. इसमें सीबीआई पर प्रताड़ना का गंभीर आरोप लगा है.

कॉरपोरेट मामलों के मंत्रालय के निलंबित वरिष्ठ अधिकारी बीके बंसल द्वारा छोड़ा गया नोट पढ़ना बहुत दुखदायी रहा. इसमें सबसे मर्मस्पर्शी बात थी सुसाइड नोट में सीबीआई अधिकारियों का नाम होना.

सीबीआई के लिए इससे बचने का आसान तरीका होगा ये कह देना कि एक भ्रष्ट अधिकारी सीबीआई की जांच को नहीं झेल सका. मुझे विश्वास है कि सीबीआई नेतृत्व यह आसान तरीका नहीं अपनाएगा. अगर उन्होंने ऐसा किया, तो वे न्यायपालिका के पास अपीलों की बाढ़ को न्‍योता देंगे.

मेरे विचार से तीन वरिष्ठ सीबीआई अधिकारियों के ऊपर लगाए गए आरोप की निष्पक्षता से जांच कराई जाए और इसमें पूरी तरह से पारदर्शिता बरती जाए. इस तरह की कार्रवाई से सीबीआई के प्रति भरोसा कायम होगा कि एजेंसी संवेदनशील मामलों में मानवाधिकार के दायरे में रहकर बेहतर तरीके से जांच कर सकती है.

बाहरी एजेंसी से करवानी चाहिए मामले की जांच

दूसरा सवाल यह है कि इस दुर्भाग्यपूर्ण घटना की आंतरिक जांच हो या फिर इसकी किसी स्वतंत्र एजेंसी से जांच कराई जानी चाहिए. मुझे पूरी उम्मीद है कि बाहरी एजेंसी से जांच की मांग की जाएगी.

अगर आंतरिक जांच का परिणाम बंसल द्वारा लगाए गए आरोपों को नकार देता है, तो यह बंसल के परिवार वालों को या फिर बाहरी एजेंसी से जांच की मांग करने वालों को संतुष्ट नहीं कर सकता है.

कॉरपोरेट मामलों के मंत्रालय में सीनियर अधिकारी बीके बंसल को सीबीआई ने 20 जुलाई, 2016 को गिरफ्तार किया था (फोटो: IANS)

क्या सीबीआई अपने अधिकारियों की जांच कर सकती है?

अब सीबीआई के खिलाफ लगाए गए आरोपों पर विचार करें. बंसल परिवार ने नाम के साथ कुछ सीबीआई अधिकारियों पर उनके साथ बुरा बर्ताव करने का आरोप लगाया है. 'प्रताड़ना' में शारीरिक यातना हो भी सकती है और नहीं भी.

केवल विस्तृत जांच के बाद ही इस बात का खुलासा हो सकता है कि बंसल परिवार के किसी सदस्य को शारीरिक यातना दी गई या नहीं. अगर जांच में शारीरिक प्रताड़ना के सबूत नहीं मिले, तो सीबीआई को थोड़ी राहत मिलेगी. किसी संदिग्ध या आरोपी को धमकी देना भी जांच में आपत्तिजनक होता है.

इस मामले में संभव है कि पूछताछ के दौरान अगर बंसल और उनके परिवार ने सहयोग न किया हो, तो सीबीआई अधिकारियों ने अपनमानजनक भाषा का इस्‍तेमाल किया हो. इसने बंसल परिवार को अत्यधिक कठोर कदम उठाने के लिए उकसाया था. इस तरह की मांग भी हो सकती है कि सीबीआई आधिकरियों के ऊपर आत्महत्या के लिए उकसाने का मुकदमा दर्ज की जाए.

कुछ लोग इस बात पर आश्चर्य कर सकते हैं कि सीबीआई अपने ही अधिकारियों के खिलाफ जांच कैसे कर सकेगी. यह कोई नई बात नहीं है. करीब पंद्रह साल पहले मैंने खुद ही अपने अधिकारियों के खिलाफ जांच के आदेश दिए थे. कुछ अन्य सीबीआई प्रमुखों ने भी बाद में ऐसे आदेश दिए हैं. पूर्व के ये उदाहरण वर्तमान सीबीआई निदेशक पर ऐसा करने के लिए दबाव बना सकेंगे. महत्वपूर्ण बात यह है कि पिछली जांच भ्रष्टाचार के मामलों से संबंधित थी.

बंसल का मामला कुछ अलग तरह का है. यहां, भ्रष्टाचार के आरोप में फंसे एक अधिकारी ने सरकारी अधिकारी के खिलाफ दुर्व्यवहार का आरोप लगाया है. चार बेशकीमती जिंदगियां समाप्त हुई हैं. इसे गंभीरता से लिया जाना चाहिए.

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पूछताछ की प्रक्रिया में सुधार की जरूरत

  • बंसल आत्महत्या मामले में बाहरी एजेंसी से जांच होनी चाहिए, क्योंकि आंतरिक जांच संबंधित पक्ष को संतुष्ट नहीं कर सकती है.
  • पहले भी सीबीआई ने अपने अधिकारियों के खिलाफ जांच की है, लेकिन वे मामले भ्रष्टाचार से संबंधित थे और प्रताड़ना का आरोप नहीं था.
  • पूछताछ का लिखित प्रमाण उचित है, हालांकि सीबीआई अधिकारी को आरोपियों के सही-सलामत छूट जाने की तादाद बढ़ने का डर होगा.

27 सितंबर, 2016 को बंसल के बेटे योगेश ने भी खुदकुशी कर ली थी (फोटो: IANS)

जांच प्रक्रिया में सुधार की जरूरत

एक सुझाव है कि सीबीआई की जांच की प्रक्रिया में सुधार किया जाए. सीबीआई को इस बात पर ध्‍यान देना चाहिए कि पूछताछ के दौरान मानवाध‍िकार का हनन न हो.

हो सकता है कि इसका कुछ सख्त सीबीआई जांचकर्ताओं द्वारा विरोध किया जाए, जिन्हें लगता है कि जांचकर्ताओं की आजादी छिनने से नतीजे नहीं निकलेंगे. अदालत में कई दोषी बाइज्जत छूट सकते हैं.

पर हमें देखना होगा कि एक लोकतंत्र में क्या ज्यादा महत्वपूर्ण है- आरोपियों से सभ्य व्यवहार या जांच के दौरान नियमों को ताक पर रखना? निश्चित रूप से ये बहुत लंबे समय से उठने वाले नैतिक सवाल हैं.

कड़े टेस्‍ट के बाद आईपीएस अधिकारी सीबीआई में शामिल किए जा रहे हैं?

अंतिम बिंदु यह है कि क्या किसी तरह हम सीबीआई जांचकर्ताओं को मनमानी करने से रोकने के लिए पर्याप्त बचाव के तरीकों का निर्माण कर सकते हैं. रोजाना निगरानी एक विकल्प हो सकती है. सीबीआई पर बढ़ते बोझ के साथ गहन निगरानी की उम्मीद करना अव्यावहारिक है. अंत में, यह सीबीआई में नियुक्त होने वालों के प्रवेश के समय प्रशिक्षण और आरोपी के प्रति मानवीय व्यवहार की भावना पर निर्भर करेगा.

सीबीआई में शामिल किए जाने वाले आईपीएस अधिकारियों का कड़ा टेस्‍ट लिए जाने की जरूरत है. सीबीआई में आने के लिए एड़ी-चोटी का जोर लगाने वाले एक आईपीएस अधिकारी को नियुक्ति को रोकना मुझे अच्छी तरह याद है. उसका मानवाधिकारों का रिकॉर्ड संदिग्ध था, इसलिए वह मुझे संस्थान का हिस्सा बनने के लिए ठीक नहीं लगा था. उस अधिकारी ने मुझे इसके लिए कभी माफ नहीं किया. राज्य से सीबीआई में आने वाले अधिकारियों का अच्छी तरह टेस्‍ट एक सभ्य और कानून की पाबंद सीबीआई के लिए अनिवार्य शर्त होनी चाहिए.

सीबीआई को अपनी प्रतिष्ठा के प्रति सर्तक होना चाहिए

सभी बातों का लब्बोलुआब यह है कि मानवाधिकार मामलों के उल्लंघन के ज्यादा से ज्यादा मामले सामने आने से सीबीआई की प्रतिष्ठा को ही चोट पहुंचेगी. एजेंसी को इसके प्रति सतर्क रहना होगा.

(लेखक सीबीआई के पूर्व निदेशक हैं. उनका ट्व‍िटर हैंडल है @rkraghu1. इस आलेख में प्रकाशित विचार उनके अपने हैं. आलेख के विचारों में क्‍व‍िंट की सहमति होना जरूरी नहीं है.)

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Published: 06 Oct 2016,01:12 PM IST

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