Home Voices Opinion बिहार: नीतीश से ज्यादा मोदी की साख दांव पर,बेचैनी भी दिख रही
बिहार: नीतीश से ज्यादा मोदी की साख दांव पर,बेचैनी भी दिख रही
मोदी बिहार में 3 वर्चुअल रैलियां कर चुके हैं, जबकि अगले सात दिन में तीन और ऐसी रैलियां करने वाले हैं.
मनोज कुमार
नजरिया
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(फोटो : क्विंट)
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वीडियो एडिटर: विवेक गुप्ता
एंकर: शादाब मोइज़ी
अक्टूबर-नवंबर में होने वाला बिहार विधानसभा चुनाव कई मायने में महत्वपूर्ण हो गया है. वो इसलिए कि इस चुनाव में बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार से ज्यादा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की प्रतिष्ठा दांव पर लगी है.
अखबारों और टीवी न्यूज चैनलों पर समय-समय पर आनेवाले सर्वे बताते रहे हैं कि प्रधानमंत्री मोदी की लोकप्रियता अभी भी बरकरार है, पर क्या हकीकत यही है? 2014 और 2019 के लोकसभा चुनाव को अगर छोड़ दिया जाए तो पिछले पांच सालों में राज्यों में हुए विधानसभा चुनावों में बीजेपी किसी भी बड़े राज्य का चुनाव नहीं जीत पाई है. उत्तर प्रदेश और गुजरात इसके अपवाद हैं. ध्यान रहे ये सारे के सारे चुनाव मोदी के ही नेतृत्व में लड़े गए, जहां बीजेपी ने चुनाव जीतने के लिए पूरी ताकत लगा दी थी.
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8 नवंबर 2015 से 11 फरवरी 2020 तक देश के कुल 18 बड़े एवं राजनीतिक रूप से काफी महत्वपूर्ण माने जानेवाले राज्यों में विधानसभा चुनाव हुए. आश्चर्य कि बात यह है कि बीजेपी इनमें से 16 राज्यों में चुनाव हार गई. सिर्फ एक राज्य है यूपी जहां मुकम्मल जीत मिली. गुजरात में मुश्किल से जीती और हरियाणा में हारने के बाद गठबंधन की सरकार बनानी पड़ी. ये अलग बात है कि चुनाव हारने के बाद बीजेपी तोड़-फोड़ के जरिये इनमें से तीन राज्यों में सरकार बनाने में सफल रही. ये राज्य हैं-कर्नाटक, बिहार और मध्य प्रदेश. बाकि राज्यों में अभी भी बीजेपी की सरकार नहीं हैं.
जरा इस लिस्ट पर गौर फरमाएं
(फोटो: क्विंट)
क्यों बिहार है इतना महत्वपूर्ण
बिहार राजनीतिक दृष्टिकोण से एक महत्वपूर्ण राज्य है और देश की राजनीति की धुरी माना जाता है. ऐसे में मोदी के लिए बिहार का चुनाव काफी महत्वपूर्ण हो गया है. कई बड़े राज्यों में हार के बाद अगर बिहार में भी मोदी को नाकामी मिलती है, तो ये पूरे देश के लिए एक बड़ा संदेश होगा.
राजनीतिक विश्लेषक बताते हैं कि देश की राजधानी दिल्ली का चुनाव हारने के बाद मोदी बिहार जीतने के लिए कोई कसर बाकी नहीं रखना चाहते हैं. बीजेपी सपने में भी नहीं सोच रही थी कि वो दिल्ली का चुनाव इतनी बुरी तरह हार जाएगी. दिल्ली के चुनाव उस समय हुए थे, जब बीजेपी के हाथ में राजनितिक रूप कई महत्वपूर्ण मुद्दे थे, जैसे आर्टिकल 370 का खत्म होना, नागरिकता संसोधन विधेयक, सुप्रीम कोर्ट का राम मंदिर के पक्ष में फैसला, नेशनल रजिस्टर ऑफ सिटिजन्स और सुप्रीम कोर्ट का तीन तलाक पर रोक का फैसला.
इन सबके के अलावा, बीजेपी के पास कांग्रेस की 70 साल की नाकामी, पाकिस्तान, आतंकवाद और सर्जिकल स्ट्राइक का मुद्दा भी था. कपिल मिश्रा के आग उगलने वाले भाषणों की मैं चर्चा नहीं कर रहा हूं. बीजेपी ने इन सारे मुद्दों को जबरदस्त भुनाने की कोशिश की. बीजेपी को सपने में भी विश्वास नहीं था कि वो इतने सारे मुद्दों के बाद भी चुनाव हार जाएगी, लेकिन वह मात्र सात सीटों पर ही सिमट गयी.
जाहिर है इस करारी हार के बाद मोदी बिहार में काफी फूंक-फूंक कर कदम बढ़ा रहे हैं. मोदी बिहार चुनाव को लेकर कितने परेशान हैं. इसका अंदाजा आप उनके लगातार हो रहे वर्चुअल रैली से लगा सकते हैं. पिछले पांच दिनों में वो छोटी-छोटी परियोजनाओं के उद्घाटन के नाम पर अब तक तीन वर्चुअल रैलियां कर चुके हैं, जबकि अगले सात दिन में वो तीन और ऐसी रैलियां करने वाले हैं. ये ऐसी परियोजनाएं थीं जिनका उनके कैबिनेट के कोई भी मंत्री या बिहार के मुख्यमंत्री भी उद्घाटन कर सकते थे. जैसे-सीवर ट्रीटमेंट प्लांट और जलापूर्ति परियोजना का उद्घाटन, एलपीजी बॉटलिंग प्लांट का उद्घाटन और बिहार के लिए पशुपालन, मछली और डेयरी से सम्बंधित योजनाओं के शिलान्यास और उद्घाटन.
पटना स्थित अनुग्रह नारायण सिंह समाज अध्ययन संस्थान के पूर्व निदेशक डी एम दिवाकर कहते हैं, "प्रधानमंत्री के एक्शन में आज डेस्पेरशन (निराशा) साफ झलक रहा है. जिस तरह से वे नीतीश के साथ लटके हैं, उनकी बार-बार तारीफ कर रहे हैं, यह बताता है कि इतने वर्षों के बाद भी बीजेपी का अपना कोई नेतृत्व नहीं है. वो लगातार राज्यों का चुनाव हार रहे हैं और उनका कॉन्फिडेंस लेवल काफी नीचे आ चुका है."
दूसरे राजनितिक विश्लेषक सोरोर अहमद कहते हैं-
मोदी के लिए बिहार का चुनाव बहुत ही महत्वपूर्ण है. यह लॉक डाउन का रेफरेंडम है, लोगों में उनकी साख गिर रही है, एक के बाद एक राज्य बीजेपी के हाथ से निकलते जा रहे हैं और एक तरह से कहा जाए तो राज्यों का चुनाव उनके लिए ‘वोट ऑफ नो कॉन्फिडेंस मोशन’ होता जा रहा है. वो किसी भी तरह से बिहार का चुनाव जीतकर अपना मोरल हाई रखना चाहते हैं.”
वो फिर कहते हैं, "लेकिन सबसे आश्चर्य कि बात यह है कि प्रधानमंत्री नीतीश के साथ रहके भी 'डेस्पेरशन' में दिख रहे हैं जबकि चिंता नीतीश कुमार को होनी चाहिए थी, क्योंकि चुनाव हारने का सीधा मतलब है उनके राजनीतिक करियर का अंत. मोदी तो हारकर भी प्रधानमंत्री बने रह सकते हैं." अहमद एक जानेमाने पत्रकार हैं जो कई अखबारों में अपने कॉलम लिखते हैं.
इसके अलावा मोदी और केंद्र में बैठी उनकी सरकार ने बिहार से संबंधित कई कदम उठाये हैं जो बिहार चुनाव के लेकर उनकी चिंता को स्पष्ट करती हैं. पिछले तीन महीने में उठाये गए इन कदमों पर ध्यान दें-
गरीब कल्याण रोजगार योजना- यह योजना कोविड-19 से प्रभावित लाखों प्रवासी मजदूरों के लिए 20 मई 2020 को शुरू की गयी और इसकी मियाद मात्र 125 दिन की हैं. यानि यह अक्टूबर महीने के मध्य में खत्म हो जाएगी, तब तक बिहार के चुनाव भी अपने आखिरी पड़ाव पर होंगे. चुनाव आयोग बिहार चुनाव को किसी भी सूरत में 29 नवंबर के पहले संपन्न कराने की घोषणा कर चुका है. केवल चुनाव की तारीखों का ऐलान बाकी है.
प्रधानमंत्री गलवान घाटी हमले में बिहार रेजिमेंट के सैनिकों की वीरता का तारीफ कर चुके हैं. चीनी हमले में शहीद हुए कुल 20 भारतीय जवान में से 16 'बिहार रेजिमेंट' के थे लेकिन इनमें से ज्यादातर दूसरे राज्यों के जवान थे.
केंद्र सरकार बिहार में पैदा हुए फिल्म एक्टर सुशांत सिंह राजपूत के सुसाइड मामले की जांच सीबीआई को सौंप चुकी हैं. वैसे तो सुशांत ने आत्महत्या मुंबई में की, लेकिन केंद्र सरकार ने बिहार सरकार के रिकमेन्डेशन के आधार पर ही सीबीआई जांच का आदेश दिया. एक खास वर्ग से आने के अलावा, सुशांत के दूसरे फैन भी हैं, जिनपर NDA की नजर है.
मोदी कैबिनेट ने दरभंगा में अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) को मंजूरी दी.
महाराष्ट्र-बिहार के बीच अगस्त में पहली किसान स्पेशल पार्सल ट्रेन शुरू की गयी.
बिहार चुनाव के बीच मोदी ने अयोध्या में राम मंदिर का शिलान्यास किया.
मंदिर निर्माण के लिए गठित ट्रस्ट में बिहार से कामेश्वर चौपाल को शामिल किया गया. चौपाल जिन्होंने 1989 में राम मंदिर निर्माण के लिए हुए शिलान्यास कार्यक्रम में पहली ईंट रखी थी, बिहार से एकमात्र सदस्य हैं.
मंदिर शिलान्यास कार्यक्रम में जय श्री राम की जगह जय सियाराम का नारा लगा. मिथिलांचल से सीताजी के संबंध को लेकर सियासी पंडित इसे भी बिहार चुनाव से जोड़ रहे हैं.
बीजेपी ने नीतीश कुमार को एनडीए का मुख्यमंत्री चेहरा घोषित किया. ये स्थिति तब है जब बीजेपी यह दावा करती है कि पार्टी लोकप्रियता के शिखर पर है.
2015 में मोदी ने की थी थी 30 रैलियां
2015 में बिहार विधानसभा चुनाव के लिए प्रधानमंत्री ने अकेले 30 चुनावी रैलियों को संबोधित किया था जो किसी भी प्रधानमंत्री द्वारा किसी एक चुनाव में आयोजित होने वाली रैलियों के हिसाब से रिकॉर्ड था. बावजूद इसके बीजेपी चुनाव नहीं जीत सकी और मात्र 53 सीटों पर ही सिमटकर रह गयी. यह अलग बात है कि बाद में बीजेपी ने नीतीश को तोड़कर अपनी सरकार बना ली.
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