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बिहार में सरकारी स्कूलों के हजारों गरीब बच्चों के भविष्य पर बुलडोजर चलना जारी है. कहानी गया की है कि जहां पिछले एक दशक से सरकारी स्कूलों इमारतों को नक्सली निशाना बना रहे हैं, पिछले एक साल से कोरोना से पढ़ाई में दिक्कत हो रही है और अब सरकार की स्कूल बिल्डिंग तोड़ रही है. सरकार ये डेमोलिशन वाहनों की रफ्तार बढ़ाने के नाम पर कर रही है, ये अलग बात है कि इससे बच्चों को भविष्य अटक सकता है. ये सारे स्कूल दक्षिण बिहार के गया जिले में हैं और नेशनल हाईवे-83 के किनारे स्थित हैं.
इन टूटने वाले स्कूलों में छह गया जिले के बेलागंज ब्लॉक में, तीन बोध गया ब्लॉक में और एक डोभी ब्लॉक में स्थित हैं. इन 10 स्कूलों में तीन प्राथमिक विद्यालय, चार मध्य विद्यालय और बाकी हाई स्कूल हैं. इन स्कूलों में करीब 2,000 से ज्यादा बच्चे पढ़ाई कर रहे थे.
बेलागंज के सामाजिक कार्यकर्ता महेश शर्मा कहते हैं- ''अभी स्कूल के लिए नयी जमीन तलाशी ही जा रही है. जमीन मिलने के बाद अगर लगातार काम चला तो भी नए स्कूल भवन के निर्माण में करीब एक साल लगेगा. फिर, गया जिला पूरे बिहार में भीषण गर्मी और लू को लेकर जाना जाता है. ऐसे में इस गर्मीं में बच्चे कहां पढ़ेंगे?"
बेलागंज के मुखिया रंजीत दास कहते हैं कि अभिभवाक अपने बच्चों कि पढ़ाई को लेकर काफी चिंतित हैं और उन्हें यह समझ में नहीं आ रहा कि वे अपने बच्चों को बगल के महंगे प्राइवेट स्कूलों में नामांकन करवाएं या घर के खर्चे का जुगाड़ करें.
क्षेत्रीय उप-निदेशक (शिक्षा) रामसागर प्रसाद सिंह ने बताया कि विभाग ने मुआवजे के लिए भारतीय राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण को एक एस्टीमेट भेज दिया है. "लेकिन जब तक ध्वस्त किए गए स्कूल भवनों के निर्माण के लिए जमीन नहीं मिलती और मुआवजे की राशि नहीं मिल जाती, स्कूल भवन का निर्माण कैसे किया जा सकता है?" उनके अनुसार इन सारे स्कूल भवनों के निर्माण पर करीब 3.84 करोड़ रुपये खर्च आएंगे और इनके निर्माण के लिए जमीन तोड़े गए स्कूलों के पास में खोजना होगा ताकि बच्चों के स्कूल आने-जाने में कोई दिक्क्त न हो.
गया को स्कूलों पर खतरा नया नहीं है. जिले में नक्सलियों ने 2010 से अबतक करीब 20 स्कूल भवनों को विस्फोटक से उड़ा दिया है. और ये सिलसिला अब भी जारी है. माओवादियों का कहना है कि इन स्कूलों का इस्तेमाल सुरक्षा बलों को ठहराने और उनके खिलाफ अभियान चलाने में हो रहा है. एक समय स्थिति ऐसी आ गयी थी कि अपनी पढ़ाई को लेकर चिंतित मासूम विद्यार्थियों ने नक्सलियों को एक मार्मिक पत्र लिख डाला था.
अपनी चिट्ठी में बच्चों ने यह भी लिखा कि अपनी शिक्षा के लिए गरीब वर्ग के बच्चे ही सरकारी स्कूलों पर पूरी तरह से निर्भर हैं क्योंकि वे महंगे निजी स्कूलों के ट्यूशन फी का भार नहीं उठा सकते.
एक तीसरा फैक्टर भी है जिसने बच्चों की पढ़ाई को पिछले एक साल से बाधित कर रखा है और वह है कोरोना वायरस. जहां बीता पूरा साल बच्चों की पढ़ाई इस वैश्विक महामारी की भेंट चढ़ गई, वही इस साल भी कोरोना के दूसरी लहर के चलते राज्य सरकार को सारे स्कूल, कॉलेज और कोचिंग संस्थान अगले एक सप्ताह तक (11 अप्रैल) तक बंद करने पड़े हैं. जिस तरह से कोरोना की रफ्तार बढ़ रही है, उससे इसकी कोई गारंटी नहीं कि 11 अप्रैल के बाद भी स्कूल खुलेंगे
यूनिसेफ की एक ताजा रिपोर्ट के अनुसार, कोरोनोवायरस लॉकडाउन के कारण पिछले साल (2020 में) देश में करीब 15 लाख स्कूल बंद रहे, जिसके चलते इन स्कूलों में नामांकित करीब 24 करोड़ 70 लाख बच्चों की पढ़ाई बुरी तरह बाधित रही. नीति आयोग की एक रिपोर्ट बताती है कि बिहार "स्कूल शिक्षा गुणवत्ता सूचकांक" के मामले में नीचे से दूसरे स्थान पर है.
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Published: 06 Apr 2021,02:39 PM IST