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हम सब पिछले 15 दिनों से ‘हर घर तिरंगा’, ‘आजादी का अमृत महोत्सव’ मनाने की बातें सुन रहे हैं लेकिन पिछले हफ्ते की दो घटनाओं ने भले ही हमारे झंडे को न झुकाया हो, उसने हम सभी का सर शर्म से जरूर झुका दिया है.
पहली घटना है राजस्थान के जालोर की. जरा पढ़िए जाने-माने पत्रकार रवीश कुमार इस दर्दनाक और शर्मनाक घटना को कैसे बयान करते हैं.
उन्होंने लिखा कि “एक सांस में पढ़िए, कैसे एक मास्टर ने पानी पीने पर दलित बच्चे को मार दिया. राजस्थान का एक जिला है जालोर. यहां के सरस्वती विद्या मंदिर के संचालक और अध्यापक शैल सिंह ने तीसरी कक्षा के छात्र इंद्र कुमार को इतना मारा, इतना मारा, कि वह मर गया. इंद्र को प्यास लगी थी, छोटा सा बच्चा, उसे क्या पता कि इस देश में जाति के हिसाब से मटकी रखी जाती है, उसे क्या पता कि उसकी जाति क्या है, जिससे समाज इतनी नफरत करता है, उसे तो प्यास लगी और वह मटकी से पानी पी गया.
अध्यापक शैल सिंह को सब पता था. उसे इतना पता था कि तीसरी कक्षा के इंद्र कुमार की जाति क्या है, अगर नहीं पता होता तो इंद्र पर इतना गुस्सा नहीं आता. मास्टर को गुस्सा आया ही इसलिए कि इंद्र कुमार अनुसूचित जाति का बच्चा था. इस छोटे से बच्चे को केवल मारा ही नहीं, जाति को लेकर गालियां देता रहा. इतना मारा कि बच्चे की आंख और कान में गंभीर चोटें आईं. बच्चा घायल हो गया. मां-बाप बच्चे को लेकर गुजरात के अहमदाबाद ले गए. एक बच्चे को इसलिए मार दिया गया क्योंकि वह दलित था."
क्या आजादी के बाद 75 सालों में कुछ नहीं बदला ? कहां से आ रही है ये इतनी नफरत ? कैसे पैदा हो रही है ये हिंसा ? शिक्षक ही जब भक्षक बन जाए तो बच्चों का, देश का भविष्य क्या होगा ?
दूसरी घटना जिस के कारण हमारा सर शर्म के कारण झुक जाना चाहिए वो है 2002 के गुजरात दंगों में बिलकिस बानो केस के 11 दोषियों की सजा माफ कर, उन्हें रिहा करना.
हत्या और बलात्कार के आरोप में लंबे चले केस के बाद आजीवन कारावास की सजा हुई. वो भी बड़ी मुश्किल से. गुजरात में क्या माहौल रहा है उससे सब वाकिफ हैं. तमाम धमकियों और डर के बावजूद बहादुर बिलकिस ने अदालत में गवाही दी, आरोपियों की पहचान की और सजा दिलाई.
सजा आजीवन कारावास की थी लेकिन 15 अगस्त 2022 को जब देश 76वां स्वतंत्रता दिवस मना रहा था और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी लाल किले के प्राचीर से महिलाओं के सम्मान करने की नसीहत दे रहे थे, उनकी पार्टी की ही गुजरात सरकार बिलकिस बानो केस के सभी बलात्कारियों और हत्यारों को उनकी सजा माफ कर जेल से रिहा कर रही थी. ये हमारे ही देश में हो रहा था जहां कुछ साल पहले “निर्भया” केस पर इतना बड़ा आंदोलन हुआ था. इतने नए कानून बने थे. बच्चियों और महिलाओं की सुरक्षा पर संसद के अंदर और बाहर कसीदे पढ़े गये थे. लेकिन शायद कुछ नहीं बदला, कुछ भी नहीं.
क्या फर्क है बिलकिस बानो केस और निर्भया केस के बलात्कारियों और हत्यारों में? निर्भया केस में सबको फांसी दी गई और गुजरात में सरकार बलात्कारियों और हत्यारों को रिहा कर रही है और लोग उनका सार्वजनिक अभिनंदन कर रहे हैं.
हम सब को ये याद रखना चाहिए कि गुजरात के दाहोद जिले के लिमखेडा तालुका के सिंगवाद गांव के सभी ग्यारह जघन्य अपराधों के सजायाफ्ता कैदी, हत्यारे, बलात्कारी राधेश्याम शाह, जसवंत नाई, गोविंद नाई, केसर वोहानिया, बाका वोहानिया, राजू सोनी, रमेश चंदाना, शैलेष भट्ट, बिपिन जोशी, प्रदीप मोधिया और मितेश भट्ट आज हमारे बीच सरकार की कृपा से आजाद घूम रहे हैं. सरकार अपना राज धर्म भूल रही हो तो कम से कम अदालत को तो अपना कानून याद रखना चाहिए. क्यों ? माई लॉर्ड!
(लेखक संजय अहिरवाल एनडीटीवी के मैनेजिंग एडिटर रह चुके हैं. फिलहाल, वह एपीजे सत्या यूनिवर्सिटी में स्कूल ऑफ जर्नलिज्म एंड मासकम्यूनिकेशन के हेड हैं. आर्टिकल में छपे विचार उनके अपने हैं. इसमें क्विंट की सहमति होना जरूरी नहीं है.)
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