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‘बिन्दी’ के चक्कर में कम हो रही है ‘हिन्दी’ की खूबसूरती 

“पहले अखबार और रेडियो खबरें बताने के साथ हिन्दी सिखाते भी थे. फिर टेलीविजन आया और....”

हर्षवर्धन त्रिपाठी
नजरिया
Updated:


एक बिन्दी, हिन्दी को बिगाड़ रही है
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एक बिन्दी, हिन्दी को बिगाड़ रही है
(सांकेतिक तस्‍वीर: iStock)

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हर भाषा खूबसूरत होती है और हर किसी को अपनी भाषा सबसे खूबसूरत लगती है. अपनी मां जैसी. मेरी मां हिन्दी भाषा है. मातृभाषा के तौर पर मैं थोड़ा गहरा उतरूं, तो मातृभाषा हिन्दी नहीं अवधी है. लेकिन, देश की ऐसी कई बोलियों-भाषाओं के साथ हिन्दी ऐसी भाषा बनी, जो हिन्दी से मिलती जुलती बोली-भाषा वालों को अपनी मां जैसी लगती है. उतनी ही खूबसूरत, प्यारी अपनी मां जैसी. रस, रंग से भरपूर. हिन्दी भाषा की सबसे बड़ी खूबसूरती मुझे यही लगती है कि जैसा बोलो, वैसा ही लिख दो. बस इतना भर ध्यान में रहे तो शायद ही कभी गलती हो. ऐसा पता नहीं दुनिया की किसी और भाषा में सम्भव है या नहीं.

बोलते जाओ, लिखते जाओ. ऐसे ध्यान में नहीं आता, लगता है कि सभी भाषा तो जैसा बोलते जाओ वैसा ही लिखते जाओ लेकिन, अंग्रेजी में ऐसा भला कहां हो पाता है. अब ठीक है कि मुझे अंग्रेजी कम आती है, तो मैं इसे एक बहाने के तौर पर भी इस्तेमाल कर लेता हूं. लेकिन, जरा बताइए CUT – कट हुआ और PUT- पुट हो गया. अंग्रेजी के ये दो शब्द सिर्फ उदाहरण के लिए लिखे लेकिन, मेरी चिन्ता हिन्दी के लगातार अंग्रेजी जैसा होते जाने की है. हिन्दी की पूरी वर्णमाला धीरे-धीरे सिमटती जा रही है. अंग्रेजी की PSYCHOLOGY में P साइलेन्ट है और CH से क बनेगा. ये अनुमान लगाने जैसा ही तो है. ऐसे ही SCHEDULE को शेड्यूल या स्केड्यूल. लम्बे अर्से तक मैं VOXWAGEN को वॉक्सवैगन बोलता रहा. VOX फॉक्स हो सकता है, ये मेरे जैसे विशुद्ध् हिन्दीभाषी के लिए कल्पना में भी नहीं था क्योंकि, हम तो जैसे बोलते हैं, वैसे लिखने वाली भाषा जानते हैं. अंग्रेजी या दूसरी भाषाओं को जानने वालों के लिए हिन्दी सीखना इसलिए भी आसान हो जाता है. अंग्रेजी या दूसरी भाषाओं की तरह एक ही शब्द को अलग-अलग तरीके से बोलने की मुश्किल भी नहीं है.

हिन्दी में क से ज्ञ तक की वर्णमाला याद है और अ, आ, ... अं, अ: ठीक से याद है, तो लिखने-बोलने में कभी मुश्किल नहीं आएगी. हिन्दी के बारे में एक बात बार-बार कई अंग्रेजी विद्वान कह देते हैं कि हिन्दी कठिन कर दी गई है, इसमें नए शब्द नहीं जुड़ रहे इसीलिए हिन्दी तेजी से बढ़ नहीं रही है. मुझे इसका उल्टा लगता है. दरअसल, तथाकथित सर्वस्वीकार्य अंग्रेजी जैसी दिखने के चक्कर में हिन्दी एकरस होती जा रही है.

हिन्दी की खूबसूरती कम होती जा रही है. ‘स’, ‘श’ और ‘ष’ में तो बहुतायत अब अन्तर नहीं कर पाते हैं. सरौता, सीटी और षटकोण वाला ‘स’ अलग होता है, ये आज के पढ़ने वाले कितने बच्चे समझ पा रहे हैं इसलिए ‘प्रत्यूष’ पहले बोलचाल में ‘प्रत्यूस’ होता है और फिर लिखने में भी. छाते वाला ‘छ’ और क्षत्रिय वाला ‘क्ष’, इसका अन्तर समझाने की जरूरत किसी को नहीं दिख रही.
(फोटो: द क्विंट)

पहले अखबार और रेडियो खबरें बताने के साथ हिन्दी सिखाते भी थे. फिर टेलीविजन आया और हिन्दी से सबसे पहले आधा अक्षर और संयुक्ताक्षर गायब हो गया. अब ‘हिन्दी’ भी कहीं शायद ही लिखा मिले. हर जगह ‘हिन्दी’ को ‘हिंदी’ लिखा जाने लगा. बार-बार हम कहते-सुनते हैं कि हिन्दी भारतीय भाषाओं के माथे की ‘बिन्दी’ है लेकिन, इस ‘बिन्दी’ ने ‘हिन्दी’ से आधा अक्षर कब गायब कर दिया शायद ही हिन्दी के विद्वानों को सही-सही अन्दाजा लग सका हो. यहां तक कि अखबार से लेकर टेलीविजन तक का ‘सम्पादक’, ‘संपादक’ होकर रह गया. सिर्फ ‘सम्पादक’ ही ‘संपादक’ नहीं हुआ ‘परम्परा’, ‘परंपरा’ हो गई, ‘प्रारम्भ’, ‘प्रारंभ’ हो गया, ‘सम्बन्ध’, ‘संबंध’ हो गया, ‘निरन्तर’ ‘निरंतर’ हो गया.

इन शब्दों को मैंने इसलिए लिखा कि अंग्रेजी भाषा में एक ही अक्षर की अलग-अलग ध्वनि को लेकर जैसे हम हिन्दी के लोग उपहास करते थे. वैसे ही अब अंग्रेजी वाले हमारी ‘हिन्दी’ की ‘बिन्दी’ को लेकर पूछ सकते हैं कि एक ही बिन्दी से ‘आधा न’, ‘आधा म’ और ‘अं’ कैसे बन जाता है.

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टीवी पर लिखने की मजबूरी और फिर कम्प्यूटर में देरी से आई हिन्दी. उसके बाद अंग्रेजी स्कूलों में पढ़ते बच्चे. इन सब वजहों की पक्की बुनियाद ने ऐसी इमारत तैयार कर दी है कि अब हिन्दी वर्णमाला हिन्दी वालों को ही भूल गई है. हिन्दी को खतरा नई पीढ़ी के अंग्रेजी या दूसरी भाषाओं से आने वाले शब्दों के मेलजोल से कतई नहीं है. हां, हिन्दी को अंग्रेजी जैसा बनने से दिक्कत जरूर हो रही है.

हिन्दी के समाचार को उर्दू के खबर और अंग्रेजी के न्यूज लिखने, पढ़ने और बोलने से कतई दिक्कत नहीं है. हिन्दी की खूबसूरती ‘आई लव हिन्दी’ से बढ़ेगी ही लेकिन, हर जगह ‘बिन्दी’ ठेल देने से घट रही है. हिन्दी भाषा का विविध, व्यापक स्वरूप खत्म हो रहा है. हिन्दी को अंग्रेजी या किसी और भाषा से नहीं लड़ना है. हिन्दी को एकरस, एकरूप कर देने की प्रवृत्ति से लड़ना है. नहीं लड़े, तो ‘प्रवृत्ति’ कब ‘प्रव्रत्ति’ बन जाती है, इसका अन्दाजा लगाना मुश्किल हो जाता है.

फिर हम बच्चों को भले कहें कि ‘गृहमंत्री’ और ‘ग्रहमंत्री’ का भेद तुम्हें क्यों नहीं पता. ऐसे ही ‘कि’ और ‘की’ का भेद भी बच्चों को बता पाना भी मुश्किल होता जाएगा. हर भाषा की खूबसूरती उसकी अपनी खास बनावट की वजह से होती है. इस मामले में हिन्दी की सबसे बड़ी खूबसूरती यही है कि ये जैसे बोली जाती है, वैसे ही लिखी जाती है. हिन्दी की ये खूबसूरती बचा लेने भर से हिन्दी भाषा तेजी से बढ़ सकती है. हिन्दी विषय के तौर पर मैं एक औसत विद्यार्थी रहा हूं लेकिन, हिन्दी भाषा है ही ऐसी कि अच्छे से सिर्फ बोलना और लिखना सीख गए, तो भाषा के विद्वान की तरह ज्ञानी हो सकते हैं. इसलिए हिन्दी से मुझे प्रेम है, मोहब्बत है और इसलिए ये लवली लैंग्वेज है.

(हर्षवर्धन त्रिपाठी वरिष्‍ठ पत्रकार और जाने-माने हिंदी ब्लॉगर हैं. इस आर्टिकल में छपे विचार उनके अपने हैं. इसमें क्‍व‍िंट की सहमति होना जरूरी नहीं है)

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Published: 14 Aug 2017,05:17 PM IST

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