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भारतीय जनता पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह के लखनऊ के तीन दिन के दौरे से पहले ही पार्टी ने विपक्ष के तीन विधायक तोड़कर अपने पाले में कर लिए. ये तीनों एमएलसी यानी विधान परिषद के सदस्य हैं, जिन्होंने शनिवार को विधान परिषद की सदस्यता से इस्तीफा दे दिया है. इसके बाद कुछ और विधायक बीजेपी में आने की कतार में हैं.
शनिवार को इस्तीफा देने वालों में बीएसपी के जयवीर सिंह हैं, तो समाजवादी पार्टी के यशवंत सिंह और बुक्कल नवाब. तीनों के इस्तीफे की वजह रोचक और अलग-अलग हैं. पर इन इस्तीफों का राजनीतिक मकसद योगी सरकार के दिग्गज नेताओं को बिना विधानसभा का कोई चुनाव लड़े पिछले दरवाजे से विधान परिषद की सदस्यता लेना है. इस मकसद में बीजेपी कामयाब हो गई है.
समाजवादी पार्टी के दो विधायकों के इस्तीफे पर पूर्व मुख्यमंत्री और समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष ने कहा-
दरअसल, उत्तर प्रदेश में विपक्षी दल उपचुनाव के जरिए राजनीतिक माहौल बदलने की तैयारी में थे. वो पुराना नारा याद दिला रहे थे. 'आजमगढ़ से चिकमंगलूर, उसके बाद समस्तीपुर. फतेहपुर भी फतेह करेंगे दिल्ली नहीं अब अधिक दूर'.
जनता पार्टी जब सत्ता में आई तो आजमगढ़ से मोहसिना किदवई की जीत से माहौल बदला था, जिसके बाद इंदिरा गांधी ने चिकमंगलूर से जीत दर्ज कराकर कांग्रेस में जान फूंक दी थी. विपक्ष भी इसी राह पर चलने की तैयारी में था कि योगी सरकार का कोई न कोई मंत्री आने वाले उप चुनाव में किसी तरह घेर लिया जाए.
लेकिन बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह ने जो काम बिहार और गुजरात में किया उसे उत्तर प्रदेश में आसानी से दोहरा दिया. दो विधायकों के खिलाफ जांच चल रही थी इसलिए उन्हें तोड़ना कोई मुश्किल नहीं था.
बीएसपी के ठाकुर जयवीर सिंह, पश्चिमी उत्तर प्रदेश में बीएसपी के कद्दावर नेता रहे हैं. जयवीर सिंह ने इस्तीफा देते हुए कहा
दूसरी तरफ मुलायम सिंह के करीबी माने जाने वाले विधायक बुक्कल नवाब ने कहा कि वो काफी समय से पार्टी में घुटन महसूस कर रहे थे, इसलिए इस्तीफा दे दिया.
कहा यह भी जा रहा है कि वो एक ही संपत्ति का दो बार मुआवजा लेने के मामले में फंसे हुए हैं जिसकी सरकार जांच करवा रही है. ऐसे में वो बहुत आसान शिकार थे बीजेपी के लिए और वे अंततः तोड़ ही लिए गए.
समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष अखिलेश यादव ने चीन और पाकिस्तान को लेकर कोई टिपण्णी की थी जिसका हवाला देकर यशवंत सिंह ने पार्टी छोड़ दी. वैसे यशवंत सिंह उत्तर प्रदेश के राजनीतिक गलियारों में कद्दावर राजपूत विधायकों के उस खेमे के संचालक माने जाते हैं जो कभी किसी पार्टी के दायरे में नहीं बंधे. इनका नेतृत्व रघुराज प्रताप सिंह उर्फ राजा भैया करते हैं. ये खेमा जब भी जाता है एक साथ किसी दल में जाता है.
राजा भैया भी उनके साथ हैं. राजा भैया का वैसे भी समाजवादी पार्टी के मुखिया अखिलेश यादव से बहुत अच्छा संबंध नहीं रहा था, मजबूरी के मंत्री थे. अब वो योगी के साथ मंच साझा कर चुके हैं. इसलिए यशवंत सिंह की विदेश नीति के रहस्य को आसानी से समझा जा सकता है.
इन नेताओं के बाद समाजवादी पार्टी के दिग्गज नेता शिवपाल यादव और एक एमएलसी मधुकर जेटली के साथ दो और विधायकों के पाला बदलने की तैयारी है. शिवपाल यादव तो लगातार बीजेपी का साथ दे रहे हैं और राष्ट्रपति चुनाव में रामनाथ कोंविद को वोट भी किया. पर वोट के ठीक बाद गोमती रिवर फ्रंट की जांच का ऐलान कर सरकार ने उनपर दबाव बढ़ा दिया है. यह मामला उनके ही मंत्रालय का है.
उन्होंने एक बार फिर कहा कि पार्टी का नेतृत्व मुलायम सिंह को दिया जाए, नहीं तो और विधायक भी पार्टी छोड़ेंगे.
इसी तरह जितने नेताओं को विधानसभा के उपचुनाव से बचाना है उतने ही विधायक इस्तीफा देंगे.
बहरहाल, विपक्ष के लिए ये झटका है. कांग्रेस के महासचिव और एमएलसी दीपक सिंह ने कहा
लेकिन बीजेपी के वरिष्ठ नेता अमित पूरी ने कहा, “उत्तर प्रदेश में कथित रूप से महागठबंधन की कवायद से पहले ही गुब्बारा फट चुका है. अंतरात्मा की आवाजें जाग गई है. ये पहले अपना घर सुधारें फिर रिश्ते जोड़ने निकलें.”
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