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रेडियो, टीवी, होर्डिंग्स और सोशल मीडिया पर प्रसारित वीडियो के सहारे दर्जनों राज्यों और भाषाओं में चलने वाले चुनाव अभियान को गहराई से समझ पाना मुश्किल है, लेकिन यह एकदम साफ है कि कांग्रेस पार्टी (Congress) का मानना है कि हंसी सबसे बेहतर इलाज है, जबकि भारतीय जनता पार्टी (BJP) का मानना है कि डर ही जीत की कुंजी है.
बहुत कम लोग इस बात से असहमत होंगे कि मौजूदा लोकसभा चुनाव (Loksabha Election 2024) शायद कई सालों में सबसे ज्यादा कड़वाहट भरा चुनाव है, शायद भारत की आजादी के बाद से यह सबसे बदनुमा चुनाव है. यहां तक कि 1977 का चुनाव भी, जिसने उस समय की प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की विदाई तय की और 1975 के बाद की उनकी इमरजेंसी सरकार का खात्मा किया, उसके नतीजे एक बदनुमा चुनाव अभियान के बजाय ज्यादा गहरे थे.
लेकिन, इस कड़वाहट भरे मुकाबले का क्या कोई खुशनुमा पहलू भी है? या, इसके उलट सवाल यह है कि, क्या जरूरी है कि कड़वा ही बेहतर हो?
कंज्यूमर प्रोडक्ट्स के उलट, जिसमें हास्य बोध और गहरे संदेश विज्ञापनों के बुनियादी आधार होते हैं, राजनीति ज्यादातर सीधे आरोपों, दिमाग पर काबू पाने और नैरेटिव का इस्तेमाल करती है, जिसमें कल्पना की उड़ान के लिए ज्यादा जगह नहीं होती है.
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (PM Modi) निश्चित रूप से बीजेपी का चेहरा हैं, और “गारंटी” शब्द जिसे पिछले साल कर्नाटक विधानसभा चुनाव अभियान में कांग्रेस ने मशहूर किया था, अब उसपर पूरी तरह बीजेपी ने अपना अधिकार जमा लिया है. यह एक ऐसा खेल है, जिसमें किसी के साथ चिपक जाने वाले शब्दों का कोई ट्रेडमार्क और पेटेंट नहीं होता है.
अनाज और किसान सम्मान निधि मोदी की गारंटी अभियान का हिस्सा हैं, लेकिन यह पूरी तरह से साफ है कि जहां दोनों पार्टियां सामाजिक-आर्थिक कल्याण योजनाओं का वादा कर रही हैं वहां बीजेपी के विज्ञापन धार्मिक ध्रुवीकरण और “मुस्लिम तुष्टिकरण” पर केंद्रित हैं. जबकि कांग्रेस बड़े कारोबारियों और सत्तारूढ़ दल के बीच कथित नापाक सांठगांठ और ईडी और आयकर विभाग जैसी स्वतंत्र कानून लागू करने वाली एजेंसियों के राजनीतिक इस्तेमाल के आरोप लगाती और तंज करती है.
कांग्रेस के अभियान में संस्थानों का अनिश्चित रवैया हकीकत भी हो सकता है. भारतीय चुनाव आयोग धर्म से जुड़े अभियान के मुद्दे पर काफी हद तक खामोश रहा है, जिसके बारे में आलोचकों का कहना है कि यह जन प्रतिनिधित्व कानून के अलावा उसकी खुद की आदर्श आचार संहिता का भी उल्लंघन करता है.
मोदी के भाषणों में कभी-पेश नहीं किए गए विरासत टैक्स (inheritance tax) को एक तरीका बताया गया, जिसके सहारे लोगों की दौलत (मंगलसूत्र) “उन लोगों के लिए छीन लिया जाएगा जिनके कई-कई बच्चे हैं”, एक इंटरव्यू में मोदी से इस वीडियो पर सवाल पूछा गया तो वह साफ मुकर गए कि उनका इशारा मुसलमानों की ओर नहीं था. वीडियो में गैर-मुस्लिमों की संपत्ति को “उनके पसंदीदा समुदाय” में बांट देने की बात की गई थी. और हां, इसमें उसी सांस में “आक्रमणकारियों, लुटेरों और आतंकवादियों” और “हमारे मंदिरों के खंडहर” की भी बात कही गई थी.
तो इन सब के बावजूद क्या कुछ और सोचने-समझने की गुंजाइश बचती है?
इमेजिनेशन की बात करें तो कांग्रेस ने भी इसमें हास्य का पुट डालने के साथ कल्पना के लिए कुछ नहीं छोड़ा है. एक वायरल वीडियो में, एक गुब्बारे पर मोदी का चेहरा छपा है और इस पर उद्योगपति गौतम अडाणी का चेहरा आता-जाता है और अंत में अंगुली का नाखून चुभाने से गुब्बारा फूट जाता है. यह वोट की ताकत बताने का एक झकझोरने वाला नाटक है, जो नापाक गठजोड़ को तोड़ने के लिए एक शक्तिशाली उपाय के रूप में ईवीएम का बटन दबाने का संदेश देता है.
कांग्रेस के विज्ञापन में अडाणी के सीधे संदर्भ को नाजुक जगह पर चोट करने के तौर पर देखा जा सकता है. पीड़ित पक्ष, अडाणी, शायद इसे एक मजाक के तौर पर ले सकते हैं, या उनके लिए एक मजाकिया विज्ञापन को चलता देना छोड़ देना बेहतर है, बजाय इसके कि इसे मुद्दा बनाया जाए और यह और नुकसानदायक साबित हो.
कांग्रेस के एक विज्ञापन में एक टीवी एंकर को मोदी और गृह मंत्री अमित शाह द्वारा गले लगाते दिखाया गया है. यह अंदाजा लगाने के लिए कोई मेहनत नहीं करनी पड़ती है, वह एंकर अर्नब गोस्वामी की तरह दिखता है और बात करता है. कांग्रेस का एक और वीडियो जो कानून लागू करने वाली एजेंसियों का मजाक उड़ाता है, क्रिकेट मैच फिक्सिंग थीम पर आधारित है और सीधा वार करता है.
बीजेपी कांग्रेस की तरह ही बड़ी शिद्दत से महिला मतदाताओं को लुभाने में लगी है, लेकिन उसके एक विज्ञापन पर विवाद खड़ा हो गया जिसमें उसने मतदाताओं को दुल्हन की तरह दिखाया और इंडिया गठबंधन के नेताओं को दूल्हे की तरह कतार में खड़ा दिखाया. इसका टाइटल है “दूल्हा कौन है?”, गठबंधन में संभावित नेतृत्व संकट को लेकर विज्ञापन रूढ़िवादी हलकों में पसंद किया जा सकता था, लेकिन कम से कम एक महिला सांसद ने यह कहते हुए इसकी आलोचना की कि इसने मतदाता को केवल “दूल्हे की तलाश में महिला” के तौर पर दिखाया है.
यह सारी चीजें दिखाती हैं कि जनता कुछ विज्ञापनों पर हंस सकती है, लेकिन विपक्ष शायद ही कभी पंचलाइन पर मुस्कुराती है.
एनीमेशन ह्यूमर, जिसके बारे में आलोचक कहेंगे कि यह नफरत फैलाने वाले भाषणों को नए रूप में पेश करने जैसा है, जबकि ज्यादातर कांग्रेसी विज्ञापन उस चुटकुले की तरह हैं, जिन्हें सिर्फ खबरों और सामाजिक घटनाओं से परिचित कुछ लोग ही समझ सकते हैं.
यह समय के साथ ही पता चलेगा कि ढंके-छिपे तरीके का मजाक सीधे निशाना बनाने वाले वीडियो से बेहतर काम करता है या नहीं. हालांकि, कांग्रेस पार्टी का मानना है कि हंसी-मजाक से राजनीतिक तनाव दूर करने में मदद मिल सकती है.
गिनती का दिन करीब आ रहा है और तब तक आप अपनी स्याही लगी अंगुली को निहारते रह सकते हैं. अंत में, जो बात मायने रखती है वह पार्टियों द्वारा किए अनोखे मजाक नहीं हैं, बल्कि बैलेट बॉक्स की पेटियों से निकले नतीजे हैं.
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार और टिप्पणीकार हैं, जिन्होंने रॉयटर्स, इकोनॉमिक टाइम्स, बिजनेस स्टैंडर्ड और हिंदुस्तान टाइम्स के लिए काम किया है. उनसे एक्स पर @madversity पर संपर्क किया जा सकता है. यह एक ओपिनियन आर्टिकल है और यह लेखक के अपने विचार हैं. क्विंट हिंदी इसके लिए जिम्मेदार नहीं है.
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