मेंबर्स के लिए
lock close icon
Home Created by potrace 1.16, written by Peter Selinger 2001-2019Voices Created by potrace 1.16, written by Peter Selinger 2001-2019Opinion Created by potrace 1.16, written by Peter Selinger 2001-2019चुनावी विज्ञापनों में कांग्रेस ने तंज का सहारा लिया, BJP ने नफरत और खौफ का

चुनावी विज्ञापनों में कांग्रेस ने तंज का सहारा लिया, BJP ने नफरत और खौफ का

BJP-Congress Advt. War: आत्मविश्वास से भरी कांग्रेस अपने विज्ञापनों और वीडियो में बीजेपी को ट्रोल कर रही है, नकल कर रही है और उसका मजाक बना रही है, जो हमें गुदगुदाते हैं.

माधवन नारायणन
नजरिया
Published:
<div class="paragraphs"><p>बीजेपी अभी भी सीधे वार करने वाले वीडियो और मजाक उड़ाने वाले कार्टून ही पसंद करती है जो कभी कभी हद पार कर जाते हैं, जिसके चलते कुछ विज्ञापन इंटरनेट पर बंद हो गए और हटा दिए गए हैं.</p></div>
i

बीजेपी अभी भी सीधे वार करने वाले वीडियो और मजाक उड़ाने वाले कार्टून ही पसंद करती है जो कभी कभी हद पार कर जाते हैं, जिसके चलते कुछ विज्ञापन इंटरनेट पर बंद हो गए और हटा दिए गए हैं.

(फोटो: कामरान अख्तर/द क्विंट)

advertisement

रेडियो, टीवी, होर्डिंग्स और सोशल मीडिया पर प्रसारित वीडियो के सहारे दर्जनों राज्यों और भाषाओं में चलने वाले चुनाव अभियान को गहराई से समझ पाना मुश्किल है, लेकिन यह एकदम साफ है कि कांग्रेस पार्टी (Congress) का मानना ​​है कि हंसी सबसे बेहतर इलाज है, जबकि भारतीय जनता पार्टी (BJP) का मानना है कि डर ही जीत की कुंजी है.

बहुत कम लोग इस बात से असहमत होंगे कि मौजूदा लोकसभा चुनाव (Loksabha Election 2024) शायद कई सालों में सबसे ज्यादा कड़वाहट भरा चुनाव है, शायद भारत की आजादी के बाद से यह सबसे बदनुमा चुनाव है. यहां तक कि 1977 का चुनाव भी, जिसने उस समय की प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की विदाई तय की और 1975 के बाद की उनकी इमरजेंसी सरकार का खात्मा किया, उसके नतीजे एक बदनुमा चुनाव अभियान के बजाय ज्यादा गहरे थे.

लेकिन, इस कड़वाहट भरे मुकाबले का क्या कोई खुशनुमा पहलू भी है? या, इसके उलट सवाल यह है कि, क्या जरूरी है कि कड़वा ही बेहतर हो?

बीजेपी के भाषणों में धार्मिक ध्रुवीकरण की गंध आती है और कांग्रेस के नेतृत्व वाले INDIA (इंडियन नेशनल डेवलपमेंटल इन्क्लूसिव एलायंस) के अभियान स्वायत्त संस्थाओं के पतन और संविधान पर आने वाले खतरे की बात करते हैं.

बीजेपी का भगवा अभियान लाल निशान को पार कर गया है

कंज्यूमर प्रोडक्ट्स के उलट, जिसमें हास्य बोध और गहरे संदेश विज्ञापनों के बुनियादी आधार होते हैं, राजनीति ज्यादातर सीधे आरोपों, दिमाग पर काबू पाने और नैरेटिव का इस्तेमाल करती है, जिसमें कल्पना की उड़ान के लिए ज्यादा जगह नहीं होती है.

इस बार ऐसा नहीं है. आत्मविश्वास से भरी कांग्रेस अपने विज्ञापनों और वीडियो में बीजेपी को ट्रोल कर रही है, नकल कर उसका मजाक उड़ा रही है. विज्ञापन में सही जगह चोट करते हैं और हम हंसने पर मजबूर हो जाते हैं. लेकिन बीजेपी अभी भी सीधे वार करने वाले वीडियो और मजाक उड़ाने वाले कार्टून ही पसंद करती है जो हद पार कर जाते हैं, जिसके चलते कुछ विज्ञापन इंटरनेट पर बंद हो गए और हटा दिए गए हैं.

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (PM Modi) निश्चित रूप से बीजेपी का चेहरा हैं, और “गारंटी” शब्द जिसे पिछले साल कर्नाटक विधानसभा चुनाव अभियान में कांग्रेस ने मशहूर किया था, अब उसपर पूरी तरह बीजेपी ने अपना अधिकार जमा लिया है. यह एक ऐसा खेल है, जिसमें किसी के साथ चिपक जाने वाले शब्दों का कोई ट्रेडमार्क और पेटेंट नहीं होता है.

अनाज और किसान सम्मान निधि मोदी की गारंटी अभियान का हिस्सा हैं, लेकिन यह पूरी तरह से साफ है कि जहां दोनों पार्टियां सामाजिक-आर्थिक कल्याण योजनाओं का वादा कर रही हैं वहां बीजेपी के विज्ञापन धार्मिक ध्रुवीकरण और “मुस्लिम तुष्टिकरण” पर केंद्रित हैं. जबकि कांग्रेस बड़े कारोबारियों और सत्तारूढ़ दल के बीच कथित नापाक सांठगांठ और ईडी और आयकर विभाग जैसी स्वतंत्र कानून लागू करने वाली एजेंसियों के राजनीतिक इस्तेमाल के आरोप लगाती और तंज करती है.

कांग्रेस के अभियान में संस्थानों का अनिश्चित रवैया हकीकत भी हो सकता है. भारतीय चुनाव आयोग धर्म से जुड़े अभियान के मुद्दे पर काफी हद तक खामोश रहा है, जिसके बारे में आलोचकों का कहना है कि यह जन प्रतिनिधित्व कानून के अलावा उसकी खुद की आदर्श आचार संहिता का भी उल्लंघन करता है.

लेकिन बीजेपी का भगवा अभियान खतरे के लाल निशान को तब पार कर गया जब उसने मुसलमानों के “तुष्टीकरण” को निशाना बनाया, जिसे कांग्रेस “समावेशी” कहती है.  मुसलमानों के लिए नौकरी में आरक्षण के खिलाफ साफ शब्दों और मुगल, मीट और “घुसपैठियों” के लगातार जिक्र के अलावा, बीजेपी ने अपने आधिकारिक इंस्टाग्राम हैंडल पर एक एनिमेटेड विज्ञापन दिया था, जो इतना विवादास्पद था कि बाद में हटाना भी पड़ा.

मोदी के भाषणों में कभी-पेश नहीं किए गए विरासत टैक्स (inheritance tax) को एक तरीका बताया गया, जिसके सहारे लोगों की दौलत (मंगलसूत्र) “उन लोगों के लिए छीन लिया जाएगा जिनके कई-कई बच्चे हैं”, एक इंटरव्यू में मोदी से इस वीडियो पर सवाल पूछा गया तो वह साफ मुकर गए कि उनका इशारा मुसलमानों की ओर नहीं था. वीडियो में गैर-मुस्लिमों की संपत्ति को “उनके पसंदीदा समुदाय” में बांट देने की बात की गई थी. और हां, इसमें उसी सांस में “आक्रमणकारियों, लुटेरों और आतंकवादियों” और “हमारे मंदिरों के खंडहर” की भी बात कही गई थी.

तो इन सब के बावजूद क्या कुछ और सोचने-समझने की गुंजाइश बचती है?

बीजेपी के नफरती भाषणों को साफ-सुथरा बताना

इमेजिनेशन की बात करें तो कांग्रेस ने भी इसमें हास्य का पुट डालने के साथ कल्पना के लिए कुछ नहीं छोड़ा है. एक वायरल वीडियो में, एक गुब्बारे पर मोदी का चेहरा छपा है और इस पर उद्योगपति गौतम अडाणी का चेहरा आता-जाता है और अंत में अंगुली का नाखून चुभाने से गुब्बारा फूट जाता है. यह वोट की ताकत बताने का एक झकझोरने वाला नाटक है, जो नापाक गठजोड़ को तोड़ने के लिए एक शक्तिशाली उपाय के रूप में ईवीएम का बटन दबाने का संदेश देता है.

ADVERTISEMENT
ADVERTISEMENT
एक और विज्ञापन है, जिसमें कांग्रेस पार्टी केंद्रीय मंत्री स्मृति इरानी के टीवी एक्ट्रेस के तौर पर उनके पुराने दिनों की नकल करते हुए खुलकर उनका मजाक उड़ाती है. विज्ञापन कांग्रेस पार्टी की महालक्ष्मी योजना पर केंद्रित है, जिसमें महिलाओं को सालाना 1 लाख रुपये देने का वादा किया गया है. इस विज्ञापन में टीवी सीरियल 'कहानी घर-घर की', जिसने स्मृति ईरानी को मशहूर किया, का थीम सांग बजता है जबकि “तुलसी” नाम की एक कैरेक्टर (सीरियल में इरानी का कैरेक्टर) ) को योजना का लाभ लेने वालों की लाइन में खड़ा दिखाया गया है. गुब्बारे वाले विज्ञापन में एक “आम आदमी” भी है, जिसका नाम “अमित” (शाह नहीं, लेकिन आपको इशारा मिल जाता है) है.

कांग्रेस के विज्ञापन में अडाणी के सीधे संदर्भ को नाजुक जगह पर चोट करने के तौर पर देखा जा सकता है. पीड़ित पक्ष, अडाणी, शायद इसे एक मजाक के तौर पर ले सकते हैं, या उनके लिए एक मजाकिया विज्ञापन को चलता देना छोड़ देना बेहतर है, बजाय इसके कि इसे मुद्दा बनाया जाए और यह और नुकसानदायक साबित हो.

कांग्रेस के एक विज्ञापन में एक टीवी एंकर को मोदी और गृह मंत्री अमित शाह द्वारा गले लगाते दिखाया गया है. यह अंदाजा लगाने के लिए कोई मेहनत नहीं करनी पड़ती है, वह एंकर अर्नब गोस्वामी की तरह दिखता है और बात करता है. कांग्रेस का एक और वीडियो जो कानून लागू करने वाली एजेंसियों का मजाक उड़ाता है, क्रिकेट मैच फिक्सिंग थीम पर आधारित है और सीधा वार करता है.

बीजेपी कांग्रेस की तरह ही बड़ी शिद्दत से महिला मतदाताओं को लुभाने में लगी है, लेकिन उसके एक विज्ञापन पर विवाद खड़ा हो गया जिसमें उसने मतदाताओं को दुल्हन की तरह दिखाया और इंडिया गठबंधन के नेताओं को दूल्हे की तरह कतार में खड़ा दिखाया. इसका टाइटल है “दूल्हा कौन है?”, गठबंधन में संभावित नेतृत्व संकट को लेकर विज्ञापन रूढ़िवादी हलकों में पसंद किया जा सकता था, लेकिन कम से कम एक महिला सांसद ने यह कहते हुए इसकी आलोचना की कि इसने मतदाता को केवल “दूल्हे की तलाश में महिला” के तौर पर दिखाया है.

यह सारी चीजें दिखाती हैं कि जनता कुछ विज्ञापनों पर हंस सकती है, लेकिन विपक्ष शायद ही कभी पंचलाइन पर मुस्कुराती है.

इस साल एक दुर्लभ मामले में चुनाव आयोग ने 'एक्स' से कर्नाटक बीजेपी के उस वीडियो को हटाने के लिए कहा, जिसमें अन्य पिछड़ा वर्ग (OBC) के लिए आरक्षित नौकरी कोटा में मुस्लिम सब-कोटा बनाने के लिए राज्य की कांग्रेस सरकार का मजाक उड़ाया गया था. वीडियो में आधिकारिक तौर पर सभी समुदायों का पिछड़ा वर्ग शामिल है, लेकिन अक्सर यह गलत समझा जाता है कि यह सिर्फ हिंदू जातियों के लिए है. अंडा-थीम वाला विज्ञापन जिसमें कांग्रेस नेता राहुल गांधी को मुसलमानों को खाना खिलाते दिखाया गया है, सोचने-समझने के लिए कोई गुंजाइश नहीं छोड़ता है और साफ तौर से किसी भी समुदाय को निशाना नहीं बनाने के मोदी के दावे की पोल खोलता है.

एनीमेशन ह्यूमर, जिसके बारे में आलोचक कहेंगे कि यह नफरत फैलाने वाले भाषणों को नए रूप में पेश करने जैसा है, जबकि ज्यादातर कांग्रेसी विज्ञापन उस चुटकुले की तरह हैं, जिन्हें सिर्फ खबरों और सामाजिक घटनाओं से परिचित कुछ लोग ही समझ सकते हैं.

यह समय के साथ ही पता चलेगा कि ढंके-छिपे तरीके का मजाक सीधे निशाना बनाने वाले वीडियो से बेहतर काम करता है या नहीं. हालांकि, कांग्रेस पार्टी का मानना है कि हंसी-मजाक से राजनीतिक तनाव दूर करने में मदद मिल सकती है.

गिनती का दिन करीब आ रहा है और तब तक आप अपनी स्याही लगी अंगुली को निहारते रह सकते हैं. अंत में, जो बात मायने रखती है वह पार्टियों द्वारा किए अनोखे मजाक नहीं हैं, बल्कि बैलेट बॉक्स की पेटियों से निकले नतीजे हैं.

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार और टिप्पणीकार हैं, जिन्होंने रॉयटर्स, इकोनॉमिक टाइम्स, बिजनेस स्टैंडर्ड और हिंदुस्तान टाइम्स के लिए काम किया है. उनसे एक्स पर @madversity पर संपर्क किया जा सकता है. यह एक ओपिनियन आर्टिकल है और यह लेखक के अपने विचार हैं. क्विंट हिंदी इसके लिए जिम्मेदार नहीं है.

(द क्विंट में, हम केवल अपने दर्शकों के प्रति जवाबदेह हैं. सदस्य बनकर हमारी पत्रकारिता को आकार देने में सक्रिय भूमिका निभाएं. क्योंकि सच्चाई इसके लायक है.)

(क्विंट हिन्दी, हर मुद्दे पर बनता आपकी आवाज, करता है सवाल. आज ही मेंबर बनें और हमारी पत्रकारिता को आकार देने में सक्रिय भूमिका निभाएं.)

अनलॉक करने के लिए मेंबर बनें
  • साइट पर सभी पेड कंटेंट का एक्सेस
  • क्विंट पर बिना ऐड के सबकुछ पढ़ें
  • स्पेशल प्रोजेक्ट का सबसे पहला प्रीव्यू
आगे बढ़ें

Published: undefined

ADVERTISEMENT
SCROLL FOR NEXT